ऐसे लोग बहुतया हैं जो किसी धर्म को मानने वाले परिवार में जन्म लेते हैं परवरिश पाते हैं लेकिन व्यस्क होने पर उन्हें परम्‌ ज्ञान की प्राप्ति होती है और वे उस धर्म आदि को ढकोसला बता दुत्कार देते हैं। ठीक है, आज़ाद देश है और हर किसी को अपनी-२ आस्था रखने की स्वतंत्रता है।

मैं भी ऐसे कई लोगों को जानता हूँ जिनकी परवरिश हिन्दू परिवेश में हुई लेकिन वे हिन्दू धर्म को ढकोसला ही मानते हैं। मेरी नज़र में यह कुछ गलत नहीं है, हर व्यक्ति को अपनी सोच रखने का अधिकार है। अब ऐसे कुछ लोगों में विज्ञान के झण्डाबरदारों को भी मैं जानता हूँ जो अपने को विज्ञानी जताते हैं कि हर कार्य उनका मानो वैज्ञानिक तर्क से ही होता है बिना वैज्ञानिक ठप्पे वाले तर्क के वे कोई कार्य नहीं करते।

लेकिन ऐसे लोगों से यदि एक प्रश्न किया जाए – क्या आप मरने के बाद अपने शव को बिजली वाले शमशान में जलवाना पसंद करेंगे या फिर अपने अंग दान करेंगे – तो ऐसे प्रश्न पर कुछ लोग असहज हो जाते हैं और कुछ नाराज़ हो जाते हैं कि क्या बकवास है। यानि कि हिन्दू धर्म को ढकोसला बता दिए लेकिन मरने के बाद क्रिया आदि हिन्दू शमशान में पण्डित से हिन्दू रीति से ही करवाना पसंद करेंगे। विज्ञान का झण्डा हर कार्य में दिखा देंगे, अपने आप को रॉकेफेलर (Rockefeller) परिवार से भी बड़ा परोपकारी दिखलाएँगे (सिर्फ़ दूसरों को प्रवचन देने के मामले में) लेकिन मरने के बाद अपने अंग दान करने के नाम पर असहज हो जाते हैं।

इस तरह के व्यक्तियों को अथेईस्ट (atheist) या एनलाईटन्ड (enlightened) नहीं ढकोसलेबाज़ कहते हैं! 😉