मैं?

मैं इस विश्व के जीवन मंच पर अदना सा किरदार हूँ जो अपनी भूमिका न्यायपूर्वक और मन लगाकर निभाने का प्रयत्न कर रहा है। पढ़ाई लिखाई के हिसाब से विज्ञान का इंफोर्मेशन टेक्नॉलोजी में स्नातक हूँ और पेशे से सॉफ़्टवेयर इंजीनियर (software engineer) हूँ तथा अब तक के अपने प्रोफेशनल जीवनकाल में कई भूमिकाएँ निभाई हैं – एकल सॉफ्टवेयर इंजीनियर की, मैनेजर की, टेक्निकल आर्किटेक्ट की, आदि। पढ़ाई तो कंप्यूटर पर इंस्टॉल होने और चलने वाले सॉफ़्टवेयरों को बनाने की करी, लेकिन जब से इंटरनेट को देखा और हॉटमेल/याहू ईमेल को प्रयोग करा तो मन में उत्सुक्ता हुई कि यह कैसे कार्य करता है, बिना इंस्टॉल हुए बिना कंप्यूटर पर लोड हुए। तभी से इंटरनेट के ज़रिए ब्राऊज़र में उपलब्ध हो सकने वाले सॉफ़्टवेयरों में मन रम गया और स्वयं इनके बारे में पढ़ इसी दिशा में अपने करियर की गाड़ी को मोड़ दिया।

ब्लॉगों/चिट्ठों से मेरा परिचय सन्‌ 1999 के मध्य में तब हुआ था जब एक तकनीकी मासिक मत्रिका में मैंने ब्लॉगर.कॉम के बारे में पढ़ा था और यह जाना था कि ब्लॉग क्या होता है और कैसे ब्लॉगर.कॉम सेवा हर व्यक्ति को फोकट में ब्लॉग बनाने देती है। शौक-२ में मैंने भी अपना ब्लॉग बना डाला, टैस्ट पोस्ट के अतिरिक्त उस पर थोड़े समय तक हल्की फुल्की पोस्ट करता रहा। लेकिन यह महंगा शौक था क्योंकि उस समय मुझे कंप्यूटर और इंटरनेट सिर्फ़ साइबर कैफ़े में या स्कूल के पुस्तकालय में ही उपलब्ध थे और मेरी टंकण गति बहुत कम थी। इसलिए वर्ष के अंत तक आते-२ मैंने अपने ब्लॉग को तिलांजिली दे डाली, लेकिन ब्लॉग पढ़ना नहीं छोड़ा। उस समय अधिकतर ब्लॉगर.कॉम के ब्लॉगर अपनी दिनचर्या संबन्धित मसौदा अपने ब्लॉग पर लिखते थे जैसे उन्होंने दिन में क्या खाया, कहाँ गए, क्या किया आदि, लेकिन कुछेक अच्छे ब्लॉगर थे जो अन्य विषयों पर भी लिखते थे तो इनके ब्लॉग पते मैंने एक पर्ची पर लिख के रख लिए और जब भी इंटरनेट मुहैया होता तब इन 2-3 ब्लॉगों को भी देख डालता था।

सिर्फ़ ब्लॉग पढ़ने का यह चलन सन् 2004 तक चलता रहा। उस वर्ष मार्च में मुझे लगा कि मेरा अपना ब्लॉग भी होना चाहिए अब लेकिन मन किसी फ्री के होस्ट पर डालने का नहीं था, ब्लॉगर.कॉम 5 साल पहले दौड़ लगा के अब सो चुका था, मूवेबल टाइप (movable type) बहुत हॉट (hot) चीज़ थी और वर्डप्रैस भी उभर के आ रहा था। पर्ल से तो मेरा तब से बैर था जब से कॉलेज के तीसरे सिमेस्टर में आमना सामना हुआ था, लेकिन फिर भी मूवेबल टाइप के रुआब की खातिर उसको अपने कंप्यूटर पर इंस्टॉल कर मूवेबल टाइप की टैस्टिंग की, लेकिन वो इंस्टॉल हो कर नहीं दिया। उसके बाद वर्डप्रैस की ओर आस लगाई लेकिन उसने भी नखरे दिखाए। खीज कर बोस्ट-मशीन नाम के देशी सॉफ़्टवेयर को पकड़ा, मामूली सा बिना टशन वाला सॉफ़्टवेयर था, थोड़ा नाज़ नखरा दिखा चल गया तो 1 अप्रैल 2004(जिस दिन जीमेल लाँच हुई थी) को बारह बजते ही मैंने ब्लॉग लेखन की दुनिया में पुनः कदम रखा!! 🙂 इधर मैं उस सॉफ़्टवेयर से संतुष्ट नहीं था, वर्डप्रैस पर नज़र थी, मन में निश्चय किया कि इसको इंस्टॉल करके ही मानूँगा, दिक्कतें आई लेकिन आखिरकार लगभग एक सप्ताह बाद मैंने वर्डप्रैस पर स्थानांतरण कर ही लिया। लेकिन उस ब्लॉग पर मेरा तकनीकी लेखन करने का ही इरादा था और समय के साथ-२ यह एक निश्चित दिशा पकड़ता गया।

अपना ब्लॉग आरंभ करने के एक वर्ष बाद 8 अप्रैल 2005 को एक ग्रुप ब्लॉग, डिजिट ब्लॉग (diGit Blog), की स्थापना की। हम दो लोगों ने शुरुआत की, एकाध और ब्लॉगर को पकड़ अपनी टीम में डाला और टेक्नॉलोजी के सफ़र पर निकल चले। शुरुआती दौर में यह ब्लॉग मेरे डोमेन के एक भाग में ही अपना ठीया बनाए हुए था। हमारी पहली उपलब्धी आई जब इसका ट्रैफ़िक इतना बढ़ गया कि यह मेरे डोमेन के होस्टिंग पर समाए नहीं समा रहा था, तो इसका अपना डोमेन लेकर इसको अलग से होस्ट किया। दूसरी बड़ी उपलब्धी तब आई जब अक्तूबर 2005 में बीबीसी वर्ल्ड (BBC World) पर प्रसारित होने वाले तकनीकी कार्यक्रम क्लिक ऑनलाईन (click online) में इस ब्लॉग का ज़िक्र प्रस्तुतकर्ता केट रसल (kate russell) ने किया। उस कार्यक्रम के बाद एकाएक ही डिजिट ब्लॉग का ट्रैफ़िक तीन गुणा बढ़ गया और इस कारण 12 घंटे यह ब्लॉग इंटरनेट से गायब रहा क्योंकि ट्रैफ़िक इसकी होस्टिंग की सीमा से आगे निकल गया था

नवंबर 2005 में मैंने पहले से रजिस्टर कराए हुए वर्डप्रैस.कॉम ब्लॉग पर अपना पहला हिन्दी ब्लॉग आरंभ किया। शीघ्र ही पता चला कि पहले से बहुत से लोग हिन्दी ब्लॉग जगत में खूंटा गाड़े बैठे हैं, अकेला मैं ही फन्ने खां नहीं हूँ!! 😉 धीरे-२ हिन्दी ब्लॉगरों से परिचय बढ़ा, किसी से प्रेम-आदर का आदान प्रदान हुआ तो किसी से पहले झगड़े और बाद में मित्र बने। अक्षरग्राम जैसे सशक्त मंच और नारद के बारे में जानकारी मिली। पंकज (नरूला) भाई और जीतू भाई को मुझ में पता नहीं क्या दिखा (स्वामी जी तो पहले ही चिट्ठाकार ईमेल लिस्ट पर मुझे खड़का चुके थे) कि मुझको अक्षरग्राम से तकनीकी रूप से जोड़ लिया। परिचर्चा फ़ोरम की स्थापना हुई जो कि हिंदी भाषा में शायद पहली ऑनलाइन फ़ोरम थी। अक्षरग्राम तकनीकी टीम की स्थापना हुई (अक्षरग्राम की सभी वेबसाइटों का खांसी-ज़ुकाम देखने के लिए) तो उसमें वाइल्ड कार्ड एन्ट्री मिली। प्रयोग के तौर पर आरंभ हुआ यह हिन्दी ब्लॉग मेरे लिए प्रयोग से कुछ अधिक ही बन गया, यहाँ मैं खुल कर अपने गैर-तकनीकी विचार पहली बार प्रकट कर पाया और अपनी भाषा में लिख आज़ादी का एक अनूठा एहसास महसूस हुआ। इधर जनवरी 2006 में अपने वीडियो ब्लॉग की शुरुआत करी और कुछ ही दिन बाद अपनी पहली पॉडकॉस्ट भी कर डाली। इस ब्लॉग पर अधिक तो कुछ कार्य नहीं हुआ पर जितना हुआ उसमें मज़ा आया।

समय बीता, आवश्यकता महसूस हुई और अपने ब्लॉग लेखन में वापसी के तीन वर्ष बाद अप्रैल 2007 में खान-पान का ग्रुप ब्लॉग स्पाईसी आइस (Spicy Ice) खोल डाला। इससे काफ़ी आशाएँ थी लेकिन इसकी कहानी भी अधिक समय तक नहीं चली। इससे जुड़े सभी लोगों के अपने-२ जीवन की व्यस्तताओं के चलते यह मामला कुछ समय बाद साबुन के झाग़ की तरह बैठ गया और फिर दोबारा न उठा।

फोटोग्राफ़ी? कब कैसे क्या यह सब संक्षेप में अंग्रेज़ी में यहाँ पढ़िए। 🙂

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