क्या हमारा भारत एक लोकतंत्र है? कहने को तो भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश भी है परन्तु यहाँ रहने वाले जानते हैं कि यहाँ कितनी धर्मनिरपेक्षता है। परन्तु अब तो प्रश्न भारत के तानाशाही होने या न होने का है, क्योंकि इस प्रश्न के उत्तर से सिद्ध होगा कि यहाँ के नागरिकों को अपना जीवन अपने ढंग से जीने की स्वतंत्रता है कि नहीं। अभी तक हमारे जीवन में बहुत सी ऐसी घटनाएँ घटी होंगी जिससे हमारा लोकतंत्र पर विश्वास डगमगाया होगा या लगभग छूट ही गया होगा, पर हम किसी तरह उस स्वर्ण डोरी को पकड़े रहे। परन्तु हर बात की, विश्वास की, एक सीमा होती है।

क्या हम वाकई स्वतंत्र हैं?

शायद नहीं… !! इस बात को मज़बूत करता है मेरठ पुलिस का शर्मनाक ऑपरेशन मजनू जिसके तहत पुलिसकर्मियों ने मेरठ के गांधी पार्क में घूम रहे युवा जोड़ों की जमकर पिटाई की। वे जोड़े न तो कोई छेड़खानी कर रहे थे न कोई अश्लील हरकत, उनका दोष सिर्फ़ इतना था कि विपरीत लिंग के जोड़ों का साथ घूमना फ़िरना हमारे समाज के तथाकथित ठेकेदारों की नज़र में अनैतिक है!! 🙄 और पुलिस ने समाज की इस कथित अनैतिकता को सुधारने की ठानी जबकी चोर लुटेरे जिन्हें पकड़ना पुलिस का कर्तव्य है, छुट्टे सांडों की तरह घूमते हैं(क्योंकि वे हर सप्ताह/माह नज़राना पहुँचाते हैं)। 🙄 और तो और, पुलिसवालों ने टीवी चैनलों को इस अपनी इस परपीड़क क्रिया को प्रसारित करने के लिए निमंत्रण भी दे डाला। तो बजरंग दल, भवानी सेना, विश्व-हिन्दु-परिशद आदि नैतिक ठेकेदारों की कमी थी कि अब पुलिस वालों ने भी यह टूटी बीन फ़ूंकनी शुरु कर दी? क्या स्वतंत्रता नाम की कोई चीज़ है कि नहीं? क्या भारतीय संविधान में यह लिखा है कि एक लड़का और लड़की का साथ में घूमना फ़िरना अपराध है? यदि नहीं तो फ़िर उन पुलिसकर्मियों ने उन जोड़ों को पीट कर एक अपराध किया है जिसके लिए उन्हें दण्ड मिलना चाहिए(जो कि नहीं मिलेगा, भारतीय कानून ज़िन्दाबाद)। पर ऐसी कोई आशा रखना बेकार है, क्योंकि जाँच होगी, उसके बाद रिपोर्ट आएगी, फ़िर सरकारी मशीनरी में कोई हरकत होगी। और मज़ेदार बात यह है कि जैसे ही इस घटना का समाचार फ़ैला, मानवाधिकार और महिला अधिकार संगठन अपनी अपनी रोटियाँ सेंकने चले आए!! 🙄

यदि इतने पर ही बहुत होता तो गनीमत थी, पर इससे तो आग में घी पड़ गया। इस ऑपरेशन के कुछ दिन बाद हमारे समाज के नैतिक ठेकेदार सड़क पर पुलिस के समर्थन में उतर आए और उन्होने गांधी पार्क में साथ घूम रहे दो जोड़ों की पिटाई कर उन्हें पुलिस के हवाले कर दिया। इन ठेकेदारों में बजरंग दल, भवानी सेना, विश्व-हिन्दु-परिशद और भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ता शामिल थे। इन तथाकथित नैतिकता के ठेकेदारों का कहना है कि टीवी चैनल बेवजह इस मामले को तूल दे रहे हैं क्योकि शरारती तत्वों को सबक सिखाने के लिए पुलिस इस तरह की शर्मनाक हरकतें करती रहती है!! तो इसका मतलब यह हुआ कि लड़का-लड़की का साथ घूमना एक अनैतिक और शर्मनाक बात है? नैतिकता का ढोल पीटने वालों के समर्थन में खड़े होने वाले शायद यह न जानते होंगे कि यह ठेकेदार शायद ढके छुपे में स्वयँ भी अश्लील साहित्य और फ़िल्मों का रस लेते होंगे जोकि सर्वदा उचित है क्योंकि वह ढके छुपे हो रहा है और वैसे भी चोर वही होता है जो पकड़ा जाए, जो न पकड़ा गया वह चोर कहाँ हुआ। और यदि अपने को सीना ठोक कर हिन्दु कहने वाले लोग ऐसी सोच रखते हैं तो क्यों पूजते हैं वे देवकी नंदन श्री कृष्ण को जो कि न जाने कितनी गोपियों संग अकेले घूमा फ़िरा करते थे और रास रचाते थे? क्यों राधा-कृष्ण की जोड़ी को पूजा और अमर प्रेम की मिसाल माना जाता है जबकि दोनो का कभी विवाह नहीं हुआ और हमारे नैतिक ठेकेदारों के सिद्धांतों के अनुसार जिनका प्रेम अनैतिक है, पापी है!! और अजंता-ऐल्लोरा की गुफ़ाओं पर नक्काशी तथा कामसूत्र की रचना तो शायद परग्रही कर गए थे!! 🙄

क्या हम मध्यकालीन युग में जी रहे हैं या किसी इस्लामी देश में? क्योंकि लड़कियों और औरतों को ढक छुपा कर रख़ने की प्रथा तो वहाँ की है और वे ही लड़का लड़की का साथ घूमना अनैतिक मानते है!!

यदि उन्नति की ओर बढना है तो हमारे समाज को इस संकीर्ण और रूढिवादी सोच को त्यागना होगा!! परन्तु यह सब कहने पढने सुनने से कुछ नहीं होने वाला, क्योंकि इन नैतिकता के ठेकेदारों को अपनी छाती पर मूँग दलने के लिए हमने स्वयँ बिठाया है। ये हमारे कमज़ोर, हीन और रूढिवादी समाज की ही उपज हैं। यदि लोगों में वाकई इस जघन्य ऑपरेशन के प्रति आक्रोश होता, तो उन्होने उन पुलिसकर्मियों और नैतिकता के ठेकेदारों की जमकर पिटाई कर दी होती जिन्होने अपनी संकीर्ण सोचों को दूसरों पर लादने का कष्ट किया था। यदि ऐसा हो जाता तो कदाचित फ़िर कोई नैतिकता की ऐसी ठेकेदारी करने से पहले हज़ार बार सोचता। पर ऐसा हुआ नहीं क्योंकि हर कोई यह सोचता है कि वह लफ़ड़े में क्यों पड़े(सही बात है, आप भी ऐसा सोचते हैं और मैं भी)।

फ़िर भी, ऐसा कभी न कभी तो होगा, इसी सोच के साथ हम जिए जा रहें हैं!!

स्वयंमेव जयते… 😉