अंधेर नगरी चौपट राजा, बजा रहा है सबका बाजा!! आतंकवाद का है राज, लोगों का जीना है दुश्वार। कश्मीर में तो आतंकवाद का राज है ही, पंजाब में भी कोई नई बात नहीं है, पूर्वी राज्यों में तो अंधेर है ही, लेकिन इतने पर ही बस कहाँ, अब तो बंगलूर जैसा आधुनिक शहर भी अछूता नहीं रहा!! बंगलूर में हुए आतंक के नंगे नाच का जिम्मेदार चाहे जो भी हो, प्रश्न है कि उन्हे पकड़ने के लिए और सज़ा दिलाने के लिए हमारा उत्कृष्ट प्रशासन क्या कर रहा है? और उससे भी बड़ा प्रश्न है कि क्या हमारी सरकार हमारी रक्षा करने में समर्थ है कि नहीं?

और ये प्रश्न इसलिए उठता है क्योकि यह बात आम हो चुकी है कि सरकार को बंगलूर पर आतंकवादी हमले की खुफ़िया विभाग से पहले ही चेतावनी मिल चुकी थी, पर नतीजा वही रहा जो कि चेतावनी न मिलने पर होता। चेतावनी मिलना तो अलग बात है, सड़ी हुई नाकाम सुरक्षा व्यवस्था की पोल तो वैसे भी खुलनी ही थी, क्योंकि अधिकतर सुरक्षा व्यवस्था तो मंत्रियों आदि के लिए खर्च हो जाती है, जनता का क्या है, उसकी सुरक्षा ज़रूरी थोड़े ही है। बंगलूर में हो रही “ऑपरेशनल रिसर्च सोसायटी ऑफ इंडिया” की बैठक में भारत के कुछ सर्वश्रेष्ठ बुद्धिजीवी भाग ले रहे थे, लेकिन शायद प्रशासन की निगाह में उनके जीवन की कीमत एक पान के मूल्य से अधिक न थी।

बंगलूर, जो कि इस समय भारतीय टेक्नॉलोजी का केन्द्र है, वहाँ पर तो सुरक्षा व्यवस्था भी अधिक और आधुनिक होनी चाहिए, पर ऐसी आशा करना भी “आशा” का अपमान करना है। अब समय बदल रहा है, राजनीतिक नेताओं की जगह अब बड़े व्यवसायी, वैज्ञानिक और टेक्नॉलोजी कम्पनीयों के मालिक-बड़े अधिकारी बनेंगे क्योंकि मौजूदादौर में ये वो लोग हैं जिनके न होने पर अर्थव्यवस्था डगमगा सकती है। लेकिन हमारे नेता तो फ़िर कुछ अलग ही किस्म के जीव होते जो कि सदैव ही यह समझेंगे कि वे ही सबसे अधिक महत्वपूर्ण हैं, स्वयंमेव जयते!!

अब तो यही हाल है भइये कि सब कुछ राम भरोसे चल रहा है, जो बच गया सो बच गया, जो लुढ़क गया सो लुढ़क गया। सरकार तो निकम्मी है जो कि कुछ कर तो नहीं सकती, सिर्फ़ बकवास कर सकती है और बड़बोलेपन की मारी है!!