आठ महीने पुराने राष्ट्रपति शासन की समाप्ती के साथ ही बिहार में हुआ लालू राज का अन्त और नीतिश के आ गए मजे!! 15 साल बाद बिहार में पहली बार ऐसी सरकार बनी है जो कि लालू के नेतृत्व में नहीं है। गौरतलब है कि लालू को जब पुलिस हिरासत में लेकर जेल भेजा गया था तो वो अपनी जगह अपनी धर्मपत्नी श्रीमती राबड़ी देवी को बिहार की मुख़्यमन्त्री बना गए थे, जैसे कि मुख़्यमन्त्री पद न हुआ घर की ख़ेती हो गई!! पर अब वो दिन बीत गए रे भैया, सुख के दिन आयो रे(बिहारियों के लिए)!! 😉
आज नीतिश कुमार ने पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान में 13 अन्य पार्टी सदस्यों के साथ बिहार के तेईस्वें(23) मुख़्यमन्त्री के रूप में शपथ ली। बिहार में भाजपा के अध्यक्ष, श्री सुशील कुमार मोदी, उप-मुख़्यमन्त्री के रूप में कार्यभार सम्भालेंगे। इस ऐतिहासिक मौके पर(आख़िर 15 साल बाद कोई नई सरकार आई है) कई गणमान्य लोग उपस्थित रहे जिनमें पूर्व-प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, मध्यप्रदेश मुख़्यमन्त्री बाबूलाल गौर, उड़ीसा मुख़्यमन्त्री नवीन पटनायक, झारखंड मुख़्यमन्त्री अर्जुन मुन्डा आदि प्रमुख थे।
तो अब विचार करने वाली बात यह है कि इस तख़्तापलट से क्या बिहार का कुछ भला होगा? जहाँ अन्य राज्य प्रगति करते जा रहे हैं वहीं लालू राज के चलते अब तक बिहार एक पिछड़ा राज्य बना रहा जो कि अब भी 18वीं शताब्दी में जी रहा है। व्यापारियों का दुकान चलाना मुश्किल था, लालू के घर में कुछ उत्सव हो तो मेहमानों की आवभगत के लिए दुकानें लूट ली जाती थी, शोरूमों से नई गाड़ियाँ उठा ली जाती थी, फ़र्नीचर ईत्यादी भी दुकानों से ज़बरन बिना मोल दिए उठा लिया जाता था, जैसा कि लालू की बेटी की शादी के अवसर पर हुआ था। कहने का अर्थ है कि अब तक बिहार में अंधेर नगरी, चौपट राजा वाला हिसाब था। क्या अब नई सरकार आने से कुछ सुधार की आशा की जा सकती है? या फ़िर एक गया दूसरा आया वाली बात होने वाली है?
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