नहीं भई नहीं, मैं यहाँ किसी अश्लील बात आदि नहीं पर नहीं चर्चा करने वाला, परन्तु आज की मेरी यह बकवास अश्लीलता के काफ़ी नज़दीक अवश्य है। इसलिए यदि आप अपने को असुखद महसूस करें या आप १८ वर्ष की आयु से कम के हैं तो कहीं और जाईये, इससे आगे पढ़ने पर आप किसी भी परिणाम के स्वयं उत्तरदायी होंगे। 🙂
बात अश्लीलता से ही शुरू होती है, या कहें वेश्यावृत्ति से। वेश्यावृत्ति कोई नई चीज़ नहीं है, यह सदियों पुराना धंधा है और कदाचित् मानव इतिहास के सबसे पहले व्यापारों में से एक है। और अन्य व्यापारों की तरह ही इसकी उत्पत्ति का कारण भी मनुष्य आवश्यकता है। अब इसको अपने शब्दों में मेरे एक परिचित ने कहा:
पेट को खाना चाहिए, और पेट के नीचे वाले को जुगाड़ चाहिए
इन शब्दों में पूरे भाव का समावेश है। पुरातन काल से ही कुछ लोग सेक्स को मात्र जीवन उत्पत्ति का माध्यम मानते आ रहे हैं जबकि कुछ समझदार लोग इसे जीवन उत्पत्ति के माध्यम से अधिक मानते हैं। क्योंकि पुरातन काल से ही समाज पुरूष प्रधान अधिक रहा है, इसलिए पुरूषों की कामुकता पूरी करने के लिए वेश्यालय होते थे। महिलाओं के लिए ऐसे “जुगाड़” खुले आम उपलब्ध नहीं थे इसलिए लोक लाज का लिहाज़ करते हुए उन्हें या तो अपनी इच्छाओं का गला घोट देना पड़ता था या फ़िर अपनी इच्छा पूर्ती के लिए चोरी छुपे कोई “जुगाड़” करना पड़ता था। परन्तु अन्त पन्त बात यह है कि पुरातन काल में वेश्यालय सार्वजनिक थे और कोई पाबन्दी नहीं थी।
अब यदि सदियों के सफ़र के बाद हम आज के समाज में आते हैं, तो हाल यह है कि वेश्यालय तो आज भी हैं, पर पाबन्दी रिक्त नहीं हैं। कुछ देशों की सरकारों ने अक्ल से काम लिया है और वेश्यावृत्ति को कानूनी रूप से पाबन्दियों से मुक्त कर दिया है बशर्ते वे कुछ नियमों का पालन करें। कानूनी मान्यता को पाने और बनाए रखने के लिए इनके ठेकेदारों ने उन नियमों को स्वीकार भी किया है। पर फ़िर भी बहुत से समाज ऐसे हैं जो कि इसे एक अभिशाप के रूप में देखते हैं, और ढ़ोंग की चादर ओढ़े हुए हैं, जैसे हमारा भारतीय समाज!! रात के अन्धेरे में बन्द दरवाज़ों के पीछे लोग जिस आनन्द की प्राप्ति करते हैं, दिन के उजाले में वही लोग महात्मा बने इन कृत्यों का विरोध करते हैं!!
सबसे हास्यप्रद है हमारे मीडिया का दृष्टिकोण। प्रतिदिन समाचार पत्रों में “मसाज पार्लर”, “ऐस्कॉर्ट सेवा” आदि के रंगीन विज्ञापन छपते हैं जिसमें लगभग खुलेआम इनकी वास्तविक सेवा(यानि कि वेश्यावृत्ति) के बारे में बताया गया होता है। अब कोई निहायत ही बेअक्ल जन्म से मूर्ख व्यक्ति ही होगा जो इन विज्ञापनों और इनकी सेवाओं का अर्थ न जानता हो, परन्तु ये विज्ञापन खुलेआम अखबारों में छपते हैं, चाहे वह टाईम्स आफ़ इंडिया हो या हिन्दुस्तान टाईम्स, या कोई अन्य छोटा-बड़ा अखबार, पाठक की तबीयत रंगीन कर देने का दावा करने वाले इस तरह के रंगीन विज्ञापन लगभग पूरे पूरे पृष्ठ पर होते हैं। पर समय आने पर ये ही लोग बढ़ती वेश्यावृत्ति और प्रशासन की उसको रोकने में असमर्थता पर लम्बे लम्बे लेख लिख डालते हैं। अरे भई, यह तो निरा दोगलापन हुआ न, एक तरफ़ तो वेश्यावृत्ति का प्रचार करों और दूसरी ओर उसको रोक पाने में प्रशासन की नाकामयाबी पर व्यंग कसो!!
जहाँ तक मुझे ज्ञात है, वेश्यावृत्ति भारत में कानूनी रूप से मान्य नहीं है। पर उसके गैरकानूनी होने से क्या लाभ है? क्या वह कम हो गई है? क्या दिल्ली की जी.बी. रोड और मुम्बई के कमाठीपुरा इलाके के बारे में सरकार अन्जान है? बिलकुल नहीं। तो फ़िर क्यों नहीं इस देश के सर्वेसर्वा वेश्यावृत्ति को कानूनी रूप से मान्यता देकर उस पर नियंत्रण रखने का प्रयास करती?
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