अभी कुछ ही दिन पहले “द क्रानिकल्स आफ़ नारनिया – द लायन, द विच एण्ड द वार्डरोब” देखने के बाद मन में आया कि शृंखला के बाकी उपन्यास लाकर पढ़ डालूँ, कहानी बड़ी रोचक लग रही है और साथ ही सोचा कि रॉबर्ट लडलम के आखिर में आए एकाध उपन्यास जो नहीं पढ़ें हैं, लगे हाथ वह भी ले आएँ, क्योंकि विश्व पुस्तक मेले में तो अपना भाग्य ने साथ न दिया। परसों सांय का समय था, ७ बज रहे थे, जाना था साउथ-एक्स स्थित बुकमार्क पर, लगभग २३ किलोमीटर का रास्ता था, और ८ बजे दुकान बंद हो जाती है। और इस समय रिंग रोड पर यातायात की भीड़, तौबा!!
खैर, फ़टाफ़ट तैयार होकर निकल पड़ा, नारायणा तक सब ठीक रहा, यातायात की कोई समस्या नहीं। नारायणा पार करते ही मुझे खाली सड़क मिली, बहुत दिन बाद रिंग रोड पर चलाने का अवसर मिला था, और नारायणा से धौला कुआँ तक की सड़क तो मेरी मनपसन्द थी क्योंकि यहाँ गाड़ी हो या मोटरसाईकल, भगाने का पूरा मौका मिलता है। 😀 तो बस फ़िर क्या था, एक्सीलेटर घुमाया और मेरी मोटरसाईकल कुछ ही पलों में हवा से बातें कर रही थी, रफ़्तार लगभग ८५ किलोमीटर प्रति घंटा थी। बरार स्क्वायर पर लाल बत्ती मिली और गति कम कर एक टोयोटा कोरोला के बगल में रोक दी। नज़र घुमाई तो गाड़ी में एक सजेधजे दम्पत्ती को देखा, उम्र चालीस-पचास के आस पास रही होगी। और गाड़ी को चला रहा था एक लल्लू सा दिखने वाला चालक।
अब बरार स्क्वायर के बाद की सड़क नारायणा के बाद से अभी तक की सड़क के मुकाबले अधिक बढ़िया है, यहाँ अधिक गति मिल सकती है। तो जब देखा कि अपनी हरी बत्ती होने वाली है, तो मोटरसाईकल गियर में डाल अपन तैयार हो लिए और जैसे ही सिग्नल बदला, मोटरसाईकल दौड़ा ली। मात्र ८ सेकन्ड में गति शून्य से ८० किलोमीटर प्रति घंटा हो चुकी थी, पर तभी एक हार्न की आवाज़ आई और देखा कि वही टोयोटा भागी चली आ रही थी। तेज़ी से मेरे बाजू में आई और फ़िर आगे निकल गई। न जाने मुझे अचानक क्या हो गया, मैंने भी एक्सीलेटर घुमा अपनी गति बढ़ाई, मैं उस टोयोटा से आगे निकल जाना चाहता था। स्पीडोमीटर की सुईं ९५ को छू रही थी जब मैं उस टोयोटा के बगल में पहुँचा, कदाचित् उस लल्लू ड्राईवर को मुझसे रेस लगाने की तड़प हो उठी थी जो उसने गति बढ़ाई। दिमाग मेरा भी घूम चुका था सो इसलिए मैंने भी गति बढ़ाई। मुझे ज्ञात था कि मेरी ग्रैप्टर का उस टोयोटा से कोई मुकाबला नहीं था, परन्तु फ़िर भी, जहाँ तक हो सकेगा मैंने वहाँ तक उसे टक्कर देने की ठान ली थी, और वह भी मूड में लग रह था। 😉 गति बढ़ाते बढ़ाते १०० किलोमीटर पार कर ११० किलोमीटर प्रति घंटा हो चुकी थी, मेरी मोटरसाईकल दम साधे उड़ी जा रही थी। पर अब शायद उस ड्राईवर के लिए अति हो चुकी थी, या फ़िर पीछे बैठे उम्रदराज़ दम्पत्ती ने उसे हौले होने के लिए कहा होगा। बहरहाल जो भी हुआ, उस बन्दे ने आगे रेस लगाने का इरादा छोड़ अपनी गाड़ी की गति कम कर ली, और धौला कुआँ के आते आते मैं रेस जीत चुका था, तथा आगे यातायात भी मिलने की संभावना थी, सो मैंने भी अपनी गति लगभग ८० किलोमीटर प्रति घंटा कर ली, पर ११० पर कुछ मिनट चलाने के बाद ८० की गति ऐसी लग रही थी कि मानो बहुत धीमे चल रहा हूँ। ह्यात पहुँचने तक गति इतनी ही रही, उसके बाद सड़क पर भीड़ के कारण गति कम करनी पड़ गई। कुछ लोग कदाचित् सोचें कि ११० की गति में ऐसी कौन सी बड़ी बात है। ठीक भी है, ये गति कोई ज्यादा तो नहीं है, परन्तु जो शख्स अभी तक सारा जीवन दिल्ली में रहा हो और यहीं गाड़ी इत्यादि चलाई हो, उसके लिए बड़ी बात है, यहाँ की सड़कों पर यदि ६० से ऊपर की गति मिल जाए तो बड़ी बात है, और वैसे भी मैंने अभी तक अधिकतम १२५ किलोमीटर की गति पकड़ी है, वह भी अपनी मोटरसाईकल पर, और १०० से ऊपर की गति मोटरसाईकल पर पाने पर जो एहसास होता है, वह शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता, वह तो केवल महसूस किया जा सकता है!! 😀
बहरहाल जिस काम के लिए घर से निकला था वह तो न हुआ, बुकमार्क तक पहुँचते पहुँचते लगभग ८ बज चुके थे, मात्र ५ मिनट शेष थे, और दुकान बंद हो चुकी थी। 🙁 सोचा कि चलो साउथ-एक्स की मार्किट में मौजूद टैकसन्स में चला जाए, वह अभी खुला था, शायद वहाँ मेरी सारी नहीं तो कुछ किताबें ही मिल जाएँ, परन्तु पार्किंग में मोटरसाईकल खड़ी ही की थी कि परिचारक तुरन्त पर्ची काटने और पैसे लेने आ गया। उससे शीघ्र निपट के जैसे ही टैकसन्स पर पहुँचा, वह भी बन्द हो रही थी। यानी कि ४५ किलोमीटर का रास्ता बेकार ही नापा, पेट्रोल फ़ूँका वह अलग!! परन्तु जाते समय जो तेज़ गति से चलाने का मौका मिला, उसने कुछ ढाढस बंधाया, और दिमाग के बंद द्वार भी खोले। वापस घर जाते समय ६०-६५ से तेज़ जाने का अवसर नहीं मिला। वापसी में मैं अंदर सरोजिनी नगर से होता हुआ सफ़दरजंग स्टेशन की ओर से आया, यह इलाका एकदम सुनसान पड़ा रहता है, यहाँ पर कुछ झुग्गी-झोंपड़ियों के अलावा कुछ नहीं है और स्टेशन के द्वार के बाहर का इलाका किसी फ़िल्म में दिखाए छोटे से हिलस्टेशन के जैसा प्रतीत होता है। मौका मिला तो अगली बार वहाँ कि फ़ोटो खींच डालूँगा। 🙂
खैर फ़िर किसी और दिन सही, एकाध दिन बाद फ़िर ट्राई करेंगे, इस बार थोड़ा जल्द निकलने का प्रयत्न करूँगा ताकि खाली हाथ न लौटना पड़े, तेज़ गति से भगाने का अवसर तो फ़िर मिलेगा, पर सोचता हूँ कि उससे पहले मोटरसाईकल का दाना-पानी चैक करा लूँ जो कि बहुत समय से नहीं हुआ है, ताकि वह और बढ़िया तरीके से भागे!! 😉
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