तीर कमान वाले खेमे के छोटे तीर, यानि अपने पंकज बेंगानी, शनिवार को दिल्ली आए। क्या कहा? कौन तीर? कौन पंकज? अरे वही फ़ोटू-शाप सिखाने वाले मास्साब!! हाँ ईब पहचान लिया ना!! 😀 हाँ तो वो दिल्ली आए थे अपने भाँजे की बारात निकालने, मतबल यार उनकी धर्मपत्नी की बहन के लड़के के विवाह में शिरकत करने। अहमदाबाद से चलने से पहले याहू पर मिले थे पिछले रोज़, बोले भाग रिया हूँ!! तो मैं बोला कि भाग रिये हो तो याहू पर क्या कर रिये हो? मोबाईल वगैरह से गठबंधन किए हैं का!! तो उत्तर दिया कि बस अभी लौह पथ गामिनी पकड़ने के लिए निकल रिये हैं। क्या कहा? लौह पथ गामिनी? अरे ई हिन्दी का बिलाग है, तो अब टिरेन का हिन्दी मा यही तो बोला जाएगा ना!! हाँ तो खैर, अगले दिन(शनिवार को) हमका फ़ोनवा लगाए रहे कि ऊ पहुँच गए हैं, हमार दर्शन करना चाहत हैं। तो हम बोले कि भई अभी तो मुमकिन नाही है, कल वल मिलेंगे। पर फ़िर पुनर्विचार किए और सोचे कि चलो दर्शन दे देते हैं, तबियत से फ़िर मिल लेंगे। तो हम पहुँच गए मिलने, पहले ही कहे दिए थे कि 10 मिनट से अधिक समय नहीं दे पाएँगे। हम पहुँचे तो ऊ भौजाई(अपनी नहीं, हमार, यानि उनकी शरीकेहयात) को ले हमसे मिलने आ गए। तो हम पंकज भाई से हाथ ही मिलाए, और कुछ नहीं मिलाया। 😉 तभी पता चला, कि जिस भाँजे के विवाह में आए हैं, ऊ और कोई नहीं बल्कि हमार साथ क्रिकेट खेला मित्र है, बल्ले भई!! तो समय अधिक नहीं था अण्टी में, इसलिए फ़िर लम्बे दर्शन का वर दे हम पतली गली से कट लिए।

बाद में इधर उधर हम भी फ़ुनवा घुमाए, मामला सैट किया और ई तय हुआ कि मंगलवार को वापस लौह पथ गामिनी पकड़ने से पहले श्रद्धालु लोग पंकज भाई के दर्शन कर लें। तो हम बिगुल बजा दिए, कि जिनका फ़ुनवा नहीं लगाए थे ऊ भी अपनी हाज़िरी लगा सकें। और उधर हमार बिगुल की गूँज कानपुर में भी गूँज गई। फ़ुरसतिया जी, जो ताज़े ताज़े ब्लॉगर भेंटवार्ता से दो-चार होकर गुज़रे थे, ऊ घबरा गए और कहे दिए कि दिल्ली वाले अध्याय में फ़िजिकली मौजूद तो ना होंगे पर बातों में रहेंगे। हम भी सनक गए, सोचा कि ई बहुत इतरा रिये हैं, इनका बातों में भी नाही रखेंगे। पर का ऐसा हो सकत है? नाही!! तो आगे की तो पूछो ही मत!! 😉

खैर, पंकज भाई को अगुवा कर मोटरसाईकल पर पीछे टिकाया और कनॉट प्लेस की ओर दौड़ लिए। रास्ते में जगदीश जी को फ़ुनवा लगाए के पूछ लिए कि कहाँ हैं, तो बोले कि बस पहुँचने वाले हैं। मन ही मन उनकी तकदीर से जल भुन के रह गए। जब घर के बाजू से मेट्रो कनॉट प्लेस निकलती हो तो ऐसी तकदीर वाले से कौन नहीं रश्क करेगा!! तो हम वैसे ही हमेशा की तरह लेट हो रहे थे। और ऊपर से सूरज बाऊ इतने मेहरबान कि गर्मी पे गर्मी बरसाए जा रहे थे, उनकी हमें तन्दूरी मानस बनाने की कोशिश जारी थी। पर हम भी ढीठ ठहरे, जैसे तैसे पहुँच गए। पार्क कर तुरत फ़ुरत कैफ़े कॉफ़ी डे की ओर लपक लिए। द्वार के समीप ही जगदीश जी मुस्कुराते हुए विराजे हुए थे, तो केवल हाथ मिलाया और अंदर की ओर सोफ़े की तरफ़ बढ़ लिए। थोड़ी देर इधर उधर की बाते होती रही, तभी एक नौजवान अन्दर आए और नीरज के रूप में अपना परिचय दिया। अब हमने तो साफ़ कह दिया, कि हमे तो बहुत निराशा हुई उन्हें देख। उन्होंने पूछा काहे तो हम बोले कि हम तो किसी बुढ़ऊ की आशा कर रिये थे!! 😉 😀

तो बस अब गर्मी कुछ अधिक ही लग री थी। कंजूस मक्खी चूस कैफ़े कॉफ़ी डे वाले, कमबख्त एसी वगैरह कुछ नहीं चला रखा था, इसलिए हम बोले कि कुछ ठंडा मंगाया जाए। नीरज जी तो बोले कि ऊ तो गर्म चाय ही सुड़केंगे, तो हम तो बर्फ़ घुटी हुई स्मूदी मंगा लिए, पंकज और जगदीश जी ने ठंडी कॉफ़ी लेने की सोची। कमबख्त बैरा, हमारे पेय रख ऐसा दुड़की हुआ कि जैसे भूत देख लिया हो। कई बार बुलाया पर “अभी आता हूँ” वाला इशारा कर हर बार कट लिया। टुच्ची सर्विस का कहीं नमूना देखना हो तो इसी कैफ़े में जाईएगा!!

नीरज जी अपने पत्रकारिता के किस्से सुनाने लगे, कुछ गुप्त बातें भी बताई। क्या कहा? कौन सी गुप्त बातें? अब बता दी तो गुप्त काहे रहेंगी!! 😉 बहरहाल, फ़िर जब दोबारा उनकी ओर ध्यान गया तो पता चला कि ऊ सृजनशिल्पी से बतिया रहे हैं। अचानक ही फ़ुनवा हमका पकड़ा दिए, तो हम भी उनसे दुआ सलाम कर लिए और आने के लिए कहा, तो बोले कि आधे घंटे तक आ रहे हैं। हम बोले कि इतने में आ जाओ क्योंकि उसके बाद हम दुकान बढ़ा देंगे। उसके बाद हम लोग कुछ और बतियाते रहे। ब्लॉगर भेंटवार्ता का ज़िक्र आया तो नियमित भेंटवार्ता करने का प्रस्ताव दिया गया। हम बोले कि हर महीने रख सकते हैं। फ़ुरसत में फ़ुरसतिया जी को भी याद कर लिया(अब तो प्रसन्न हैं ना?) और उनकी ताज़ी ताज़ी गर्मा गर्म पोस्ट के बारे में भी सुना। बस जाने के लिए उठ ही गए थे कि नीरज जी बाहर से सृजनशिल्पी जी को लिवा लाए, साथ उनके एक मित्र भी आए थे। अपने साथ वो कुछ सरकारी मिठाई ले आए थे, तो ऊ का भोग सभी ने लगाया। बस फ़िर समय हो चला था, तो हम बोले कि एकठौ फ़ोटू वगैरह तो हो जाए, तो उसके लिए सभी बाहर आ गए ताकि पोज़ सही बन सके। 😛


( वाएँ से दाएँ: पंकज बेंगानी, सृजनशिल्पी, नीरज दीवान, सृजनशिल्पी के मित्र तथा जगदीश भाटिया )


उसके बाद मैं और पंकज भाई निकल लिए। कदाचित्‌ जगदीश जी भी निकल लिए थे, पर शायद बाकी लोग कुछ देर बतियाने के लिए रूक रहे थे। वापस पहुँच पंकज भाई को उनकी ससुराल में छोड़ा। हमको रूकने के लिए बोल वो अंदर लपक लिए। तभी दुल्हे(वैसे ब्याह सोमवार निपट लिया था) का छोटा भाई दिखा, वो भी अपने साथ छुटपन से खेला हुआ है, तो दुआ सलाम करने वो भी आ गया, हम बोले कि तेरे मौसा को छोड़ने आए हैं, जल्दी में था, सांय मिलने को कह निकल लिया, बात लगता है हमेशा की तरह उसके ऊपर से ऐसे निकल गई जैसे सचिन के ऊपर से ब्रैट ली की बाँऊंसर। तभी भौजाई को लिए पंकज भाई बाहर आए। जैसे कि ऐसे मौकों पर कहा जाता है, भौजाई ने हमको अहमदाबाद आने का न्यौता दिया, तो हम बोले कि गर्मी कम कराओ वहाँ और हम आ जाएँगे। 😉 दिल्ली की तो झेली नहीं जाती, अहमदाबाद की कहाँ से झेलेंगे!! 😛 बस उसके बाद अलविदा कह हम वापस अपने आशियाने की ओर हो लिए।

छोटी ही सही पर यह मुलाकात सभी के साथ बढिया रही। और अभी तो फ़िर मुलाकात होगी, गुलाबी शहर जयपुर इसी सप्ताहांत को जा रिये हैं, वहाँ बड़े तीर संजय भाई से मुलाकात होगी। अब उसके बारे में तो वहाँ से आने के बाद ही लिखेंगे, पहले से कैसे लिख दें, अपना नास्त्रेदमस से दूर दूर का कोई नाता नहीं है!! 😉