आज के हिन्दुस्तान टाईम्स में खबर छपी है(अब हमने आदत के विपरीत आज का अखबार पढ़ ही लिया, क्या करें, कुछ और पढ़ने के लिए हाथ में आया ही नहीं) कि कुछ समझदार अधिकारी अपनी समझ का भरपूर उपयोग कर रहे हैं। कैसे? अभी बताते हैं।
उत्तर प्रदेश के मेरठ शहर के ज़िलाधीश ने कॉर्पोरेशन के चुनाव सही तरीके से करवाने के लिए चुनाव के दिन सुबह 8 बजे से सांय साढ़े पाँच तक के लिए सभी मोबाईल नेटवर्क बंद करवा दिए। चकरा गए? घबराईये नहीं, ये साहब अकेले बेअक्ल नहीं हैं। इनके जोड़ीदार और भी हैं जो सरकारी खर्चे पर ऐश कर रहे हैं। एक और के बारे में जानिए। ये हैं करनाल के पुलिस एसपी साहब। इन्होंने 29 अक्टूबर को हरयाणा स्टेट स्टॉफ़ सेलेक्शन कमीशन के पर्चे के चलते लोक हित में सुबह पौने दस बजे से दोपहर 12 बजे तक सभी परीक्षा भवनों के इलाकों में मोबाईल नेटवर्क बंद करवा दिए।
क्या बात है। इन दोनों समझदार अधिकारियों को तो तुरंत निलंबित कर देना चाहिए। यदि ऐसे अक्ल वाले लोग रहेंगे तो बहुत खतरा है। हमारे प्रशासन तंत्र में दो तरह के साँप हैं। एक वे हैं सुस्त हैं, आलसियों और पुराने फ़र्नीचर की तरह पड़े रहते है और कुछ नहीं करते, इनको अंग्रेज़ी में fixtures कहा जाता है। और साँपों की दूसरी जाती से यकीनन ये दोनों महानुभाव हैं जो बहुत ज़्यादा अक्ल रखते हैं। अब इन दोनों में अधिक खतरनाक को ये दूसरी जाती के साँप हैं क्योंकि इनका ज़हर तेज़ है, और ये आलसी भी कम हैं, अर्थात् काटने के लिए ये आपके पास भी आ सकते हैं और ज़हर तो खैर इनका तेज़ है ही। इसलिए पहले इनका सफ़ाया आवश्यक है, सुस्त साँपों से इतना खतरा नहीं जितना इनसे है।
आगे क्या करेंगे ये लोग? स्कूल/कॉलेज की परीक्षा होगी तो उसमें भी मोबाईल नेटवर्क आदि बंद करवा देंगे। 🙄 क्या इनको इतनी अक्ल नहीं कि परीक्षा भवन में अंदर जाने वाले परीक्षार्थी को मोबाईल के साथ ना जाने दिया जाए? या फ़िर उस भवन में mobile frequency jammer लगा दिए जाएँ जिससे वहाँ मोबाईल काम ही ना करें? कम से कम एक पुलिस वाले से तो इतनी समझदारी की उम्मीद नहीं थी। क्या जब किसी अपराधी को पकड़ना होता है तो इलाके के सारे मार्गों पर पहरा लगा प्रत्येक आने-जाने वाले को जाँचते हैं कि सभी का आना-जाना रोक देते हैं कि जब तक कोई पकड़ा नहीं जाता तब तक ना कोई आएगा ना कोई जाएगा?? और उस दूसरे समझदार को जिलाधीश किसने बना दिया, उसमें अक्ल तो चपरासी जितनी है, जो पूरे दिन के लिए पूरे शहर के नेटवर्कों को बंद करवा दिया!!
हद है, इससे अधिक अक्ल तो स्कूल/कॉलेजों के शिक्षकों में होती है जो परीक्षा से पहले सभी विद्यार्थियों के मोबाईल बंद करवा अपने पास रखवा लेते हैं। पर बात फ़िर यह भी है कि जिसके पास जितनी ताकत होती है वह उसी के दायरे में कार्य करता है। अब शिक्षकों के पास तो मोबाईल नेटवर्क बंद करवाने की ताकत नहीं होती न, तो इसलिए जो है उसी से काम चलाते हैं। अब वैसे देखा जाए तो मोबाईल नेटवर्क आदि बंद करवाने की ताकत तो जिलाधीश और एसपी के पास भी नहीं होती, डिपार्टमेन्ट ऑफ़ टेलीकम्यूनिकेशन के अतिरिक्त कोई नहीं बंद करवा सकता। तो इन बुद्धिजीवियों ने न केवल अनुचित हरकत की बल्कि औकात से बढ़कर कार्य भी किया है, इसके लिए तो इनको डबल शाबाशी मिलनी चाहिए, अर्थात् दोगुने समय के लिए निलंबित करना चाहिए!!
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