आज करीब एक साल बाद जामा मस्जिद के पास स्थित करीम होटल में खाना खाने गया। मन ही मन करीम के तन्दूरी चिकन के बारे में सोच सोच लड्डू फूट रहे थे!! 😉 😀
रविवार और ठण्ड का मौसम होने के कारण अच्छी खासी भीड़ थी, लगभग 20 मिनट प्रतीक्षा करने के बाद टेबल मिली। थोड़ी और प्रतीक्षा के बाद लज़ीज़ तन्दूरी चिकन भी सामने था, लेकिन पहला निवाला मुँह में लेते ही सारा मज़ा किरकिरा हो गया। करीम होटल के स्वादिष्ट खाने की जो लज़ीज़ यादें मन में बसी थी वो सारी की सारी धराशाई हो गई। मैंने कई जगह तन्दूरी चिकन खाया है, कहीं अच्छा तो कहीं बेकार, लेकिन इतना बेस्वाद कहीं नहीं खाया था अभी तक। समय के साथ बदलाव आते हैं लेकिन क्या स्वाद बढ़िया से घटिया और बद् से बद्तर हो जाता है?
अभी कुछ दिन पहले मेरे मित्र संतोष ने बताया था कि हाल ही में जब पहली बार अपनी पत्नी के साथ करीम होटल गए तो उन्हें तन्दूरी चिकन में कोई मज़ा नहीं आया, उसका स्तर इतना नहीं था जितना नाम सुना था। संतोष की बात सुन मुझे विश्वास नहीं आया, मैंने कहा कि हो सकता है कि उस दिन अच्छा नहीं बना हो या संतोष का ही मुँह का स्वाद खराब हो, लेकिन आज स्वयं खाने के बाद मुझे विश्वास हो गया। एक वर्ष में करीम होटल के खाने का स्वाद वाकई गिर गया है। 🙁
आज भी करीम के बरसों के जमाए नाम का ही नतीजा है कि कई लोग सिर्फ़ नाम सुनकर पहली बार खाने आते हैं। लेकिन स्वाद के इस गिरते स्तर के चलते कब तक नाम बना रहेगा? अब तो अगली बार जाने से पहले मुझे भी सोचना होगा।
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