बस अभी अभी थोड़ी देर पहले इंडिया टीवी के स्टूडियो से वापस लौटा हूँ। क्यों? अरे अनायस ही अपने नीरज भाई को सायं करीब सात बजे मेरी याद आ गई, बोले कि रात बारह बजे एक प्रोग्राम ज़िन्दा प्रसारित होगा, मतलब लाइव प्रसारित होगा और उसमे क्या मैं आ सकता हूँ। उन्होंने बताया कि इंटरनेट पर लोगों के बनते संबन्धों और उनकी खूबियों तथा खामियों पर चर्चा होगी, मेरे साथ दो-तीन और एक्सपर्ट होंगे जो कि चर्चा करेंगे, बोले तो अपनी विशेषज्ञ वाली राय देंगे। अपने को विशेषज्ञ करार दिए जाते ही अपन तो फूल के कुप्पा हो गए, और जब यह पत चला कि भले लोग एक गाड़ी सेवा में लगा देंगे जो लेने भी आ जाएगी और छोड़ भी जाएगी तो फ़िर क्या था, अपन तैयार हो गए। लेकिन जैसे कि किसी साक्षात्कार में कहा जाता है कि आपको कुछ समय बाद कन्फ़र्म किया जाएगा तो उसी तरह नीरज भाई ने कहा कि पक्का करके वो थोड़ी देर में बताएँगे। तो थोड़ी देर बाद फ़ुनवा बजा और नीरज भाई बोले कि हमारा सेलेक्शन हो गया है। 😉
ठीक समय पर गाड़ी लेने पहुँच गई, अपन तैयार बैठे थे, सो तुरंत निकल लिए। अब ड्राईवर साहब ज़रा आराम से कायदे-कानून को ध्यान में रखते हुए 40-45 किलोमीटर की गति से चला रहे थे तो हम कार्यक्रम आरम्भ होने से केवल कुछ मिनट पहले ही पहुँचे। स्टूडियो पहुँचते ही नीरज भाई आअकर गले मिले और अपना ऑफ़िस दिखाया जहाँ वो विराजमान होते हैं, जो कि ऑफ़िस कम और रिकॉर्डरूम अधिक लग रिया था। 😉 उसके बाद उन्होंने कार्यक्रम आदि के बारे में बताया और फ़िर अपने एक सहकर्मी के हवाले कर नीरज भाई अपने घर निकल लिए। अब ऊ सहकर्मी महोदय ने विशेषज्ञ पैनल की अन्य सदस्या निरूपमा जी से मिलवाया जो कि एस्कॉर्ट हॉस्पिटल में मनोवैज्ञानिक हैं और फ़िर पैनल के तीसरे और अंतिम विशेषज्ञ पवन दुग्गल जी भी आ गए जो कि सर्वोच्च न्यायालय में वकील हैं। तदोपरांत हम लोगों को मेक-अप कक्ष में ले जाया गया जहाँ थोड़ा हम लोगों को शाहिद कपूर बनाने का प्रयास किया गया। 😉 उसके बाद सीधे प्रसारण कक्ष में जहाँ कार्यक्रम शूट होना था।
अब कार्यक्रम में क्या हुआ यह तो आपने देख ही लिया होगा, नहीं देखा तो नीरज भाई से दरख़्वास्त की जाए कि कार्यक्रम का वीडियो उपलब्ध करवाया जाए। लेकिन इतना कहूँगा कि रात 12 से 3 बजे के कार्यक्रम में भी लोगों का रिस्पॉन्स काफ़ी अच्छा था, कई लोग पूरे भारत में कार्यक्रम देख रहे थे और फ़ोन कर अपने प्रश्न आदि पूछ रहे थे। तीन घंटे कब और कैसे बीत गए पता ही नहीं चला, समय अदृश्य पंखों पर उड़ान भरता रहा और कार्यक्रम समाप्त हो गया। पवन जी और निरूपमा जी से विदा ली और अपने बसेरे पर वापस आ गए।
जितनी भी चर्चा वहाँ हुई, उससे अपने तौर पर मैं यही निश्कर्ष निकालूँगा कि लोगों के मन में भ्रांति काफ़ी आधिक है। वास्तविक संसार में कोई प्रेम संबन्ध या व्यवसायिक संबन्ध असफ़ल हो जाए तो अलग बात है लेकिन इंटरनेट के ज़रिए यदि ऐसा हो तो इंटरनेट पर लांछन लगा दिया जाता है। यह बेवकूफ़ी भी है, अज्ञान भी बहुत है, लेकिन अभी सुबह के पाँच बजने वाले हैं, सोने का समय हो आया है इसलिए इस विषय पर भी फ़िर कभी। 🙂
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