फ़िल्में आदि सभी देखते हैं, कई दशकों से ये लोगों के मनोरंजन का सबसे अधिक लोकप्रिय माध्यम रहीं हैं। पर कुछ फ़िल्में ऐसी होती हैं जो सदाबहार होती हैं, जो बहुत अच्छी होती हैं, जिन्हें आप कितनी ही बार देख लें, पर जी नहीं भरता। हर किसी की कोई न कोई ऐसी फ़िल्म अवश्य होगी जो उसे बहुत पसंद होगी।

मैं अधिक फ़िल्में नहीं देखता, बस अभी पिछले कुछ महीनों में इतनी फ़िल्में देखी हैं जितनी उससे पहले जीवन में कभी नहीं देखी। इसका एक कारण यह भी है कि पढ़ाई समाप्त होने के कारण अपने समय के स्वयं मालिक हैं, चाहे जो वो करने की स्वतंत्रता है, होमवर्क आदि करने का कोई लफ़ड़ा नहीं है!! 😀

और कुछ(निम्न) फ़िल्में मुझे भी इतनी पसन्द हैं कि उन्हें कई बार देख लेने के बाद भी मेरा मन नहीं भरता!!

  1. गॉन विद द विन्ड – हॉलीवुड की यह क्लासिक फ़िल्म मुझे बहुत बढ़िया लगी। आरम्भ में कुछ बोरिन्ग अवश्य लगती है पर समझने का प्रयत्न किया जाए तो लगभग डेढ़ सौ वर्ष पूर्व हुए अमरीकी गृह युद्ध की पृष्ठभूमि में स्थित इसकी कहानी अच्छी लगेगी और साथ ही अच्छा लगेगा ह्रेट बटलर का अभिनय। यह फ़िल्म ग्यारहवीं में मेरी अंग्रेज़ी की अध्यापिका ने पूरी कक्षा को दिखाई थी।
  2. चुपके चुपके – यह उन कुछ हिन्दी फ़िल्मों में से एक है जो मुझे बहुत पसंद हैं। इसमें जबरदस्त हास्य है, ओमप्रकाश जी की तो बात ही अलग है, धरमेन्द्र और अमिताभ ने भी जो अभिनय किया है, ऐसा मैंने फ़िर कभी नहीं देखा, असरानी साहब तो मात्र दर्शक बनें सब देखते ही रह गए!! 🙂
  3. स्टॉर वार्स – ६ फ़िल्मों की इस श्रृंखला का कोई जवाब नहीं, यह वाकई में लाजवाब है। कहानी इतनी ज़ोरदार नहीं है जितना ज़ोरदार अभिनय आदि है। इसकी आखिरी ३ फ़िल्में पहले आई थीं(१९७०-८० के दशकों में) और पहली की ३ फ़िल्में १९९० के बाद आईं हैं। अब जिन लोगों ने उन्हें इसी कड़ी में देखा उनकी तो नहीं जानता परन्तु मैंने इसे सही कड़ी में, यानि १-२-३-४-५-६ में ही देखा है और मुझे यह बहुत अच्छी लगी। असल कहानी तो इसमें यह है कि कैसे एक नायक खलनायक बन जाता है और फ़िर कैसे उसकी अंत में वापसी होती है। स्पेशल इफ़ेक्टस आदि को यदि नज़रअंदाज़ भी कर दें(बहुत कठिन है) तो भी जिस तरह से कलाकारों, अभिनय और कहानी ने समां बाँधा है, वह अद्वितीय है।
  4. जो जीता वोही सिकन्दर – १९९० के दशक में आई आमिर खान की यह फ़िल्म वाकई बहुत अच्छी है, यदि इसे समझने के भाव से देखा जाए। जिस तरह से इसमें एक लापरवाह, आवारा, मस्तमौला, असफ़ल लड़के को एक समझदार और ज़िम्मेदार व्यक्ति में तब्दील होते हुए और फ़िर सफ़ल होते हुए दिखाया गया है वह वाकई बहुत अच्छा है। ऐसी कोशिश बहुत सी फ़िल्मों में की गई है(हाल ही में रितिक रोशन की “लक्ष्य” इसी तर्ज पर बनी थी) पर मेरे अनुसार वो भाव जो आपको अंदर तक स्पर्श कर जाए, उसे प्रेषित करने में कदाचित् ही कोई सफ़ल हुआ है।
  5. द लीग़ आफ़ ऐक्सट्राआर्डिनरी जेन्टलमेन – सूपर हीरो प्रकार की फ़िल्म परन्तु बेकार या बोर नहीं, बहुत बढ़िया। शॉन कॉनरी तथा नसीरुद्दीन शॉह का अभिनय वाकई बहुत बढ़िया है।
  6. द हन्ट फ़ॉर रेड आक्टोबर – एक और शॉन कानरी की बेहतरीन फ़िल्म, बहुत ही बढ़िया साथ दिया ऐलेक बाल्डविन ने। शॉन एक रूसी अणु पन्डुब्बी के कप्तान होते हैं और शीत युद्ध के दौरान उस उच्च तकनीक की बनी आवाज़ रहित अणु पन्डुब्बी को लेकर चल देते हैं अमरीका से हाथ मिलाने। और फ़िर शुरू होता है चूहे बिल्ली का खेल जिसमें रूसी करते हैं उस पन्डुब्बी को डुबाने का और अमरीकी ऐजेन्ट ऐलेक बाल्डविन करते हैं प्रयास उसे बचाने का।
  7. ग्लैडिएटर – प्राचीन रोमन शासन और उस समय में होने वाले ग्लैडिएटरों के खूनी खेलों पर बनी यह फ़िल्म मेरी देखी गई अभी तक की सर्वश्रेष्ठ फ़िल्मों में से एक है। रस्सल क्रो ने जो अभिनय दिया है वह मैंने अभी तक की उनकी किसी फ़िल्म में नहीं देखा(“अ ब्यूटिफ़ुल माईन्ड” में भी नहीं)। फ़िल्म की कहानी दिल को छू जाती है, कि कैसे एक सेनापति गुलाम बनता है, गुलाम से ग्लैडिएटर और ग्लैडिएटर से जनता का नायक जो कातिल बादशाह से अपने परिवार की निर्मम हत्या का प्रतिशोध लेता है।
  8. द मॉस्क आफ़ ज़ोरो – कैलीफ़ोर्निया(अमेरिका) की लोककथाओं का नायक और मज़लूमों का मसीहा ज़ोरो, उसकी भूमिका में ऐनटोनियो बान्देरास, साथ में हसीन कैथरीन ज़ेटा जोन्स और ऐन्थोनी हॉपकिन्स, बहुत ही बढ़िया फ़िल्म।
  9. मेन आफ़ आनर – क्यूबा गुडिन्ग जूनियर और रॉबर्ट डि नेरो के बेहतरीन अभिनय से सज्जित यह फ़िल्म प्रेरणा देने वाली है। कुछ लोगों को बेशक यह बोर लगे पर यह कभी न हारने की प्रेरणा देती है और एक वास्तविक जीवन के नायक पर आधारित है।
  10. ओम जय जगदीश – बॉक्स आफ़िस पर बेशक यह फ़िल्म न चली हो, पर अनुपम खेर द्वारा निर्देशित यह पहली फ़िल्म वाकई बहुत अच्छी है। फ़िल्म की कहानी ऐसी है जो दिल को छू जाती है, और इसमें फ़िल्म के मधुर संगीत तथा अनिल कपूर के बेहतरीन अभिनय का पूरा योगदान है।
  11. अशोक – मेरा मानना है कि बॉक्स आफ़िस पर किसी फ़िल्म का चलना न चलना उसकी गुणवत्ता का प्रमाण पत्र नहीं है, क्यों कि आवश्यक नहीं कि हर बार लोगों को फ़िल्म का भाव गहराई से समझ आ सके। २००० वर्ष से भी पूर्व पाटलीपुत्र से पूरे भारत पर राज्य करने वाले मौर्य वंश के सम्राट अशोक पर बनी इस फ़िल्म के मामले में भी ऐसा ही है। शाहरूख खान का अभिनय बेशक उनका सर्वश्रेष्ठ न रहा हो, परन्तु फ़िल्म में कोई कमी नहीं छोड़ी। अनु मलिक के दिए मधुर संगीत से लेकर फ़िल्म की मार्मिक कहानी तक, सभी कुछ उत्तम श्रेणी का है।
  12. द लॉर्ड आफ़ द रिंग्स – ३ फ़िल्मों की यह श्रृंखला जबरदस्त है, प्रत्येक फ़िल्म अपने जीते हुए आस्कर की वाजिब हकदार है। निर्देशक पीटर जैकसन ने जिस तरह इस कहानी को परदे पर साकार किया है वह प्रशंसनीय है। काफ़ी कटी होने के बावजूद कहानी बंधी हुई लगती है, समां बंधा रहता है, लगता ही नहीं कि कहीं से कहानी कटी हुई है(शायद “हैरी पॉटर” बनाने वालों कुछ सीख की आवश्यकता है)। विग्गो मोर्टेन्सन और आयन मैककैलन का अभिनय बहुत अच्छा है, ओर्लैन्डों ब्लूम ने भी बहुत अच्छा अभिनय किया है। इन फ़िल्मों के बारें में कोई क्या कहे, इनके बारें में जानने के किए शब्द कम हैं, देख कर ही जाना जा सकता है कि क्या बात हो रही है। 🙂
  13. किन्ग आर्थर – लगभग १६०० वर्ष पूर्व के अंग्रेज़ी लोककथाओं के नायक पर बनी यह फ़िल्म बेशक आस्करों की होड़ में शामिल न हुई हो, पर मेरे अनुसार यह बहुत अच्छी फ़िल्म है, इसको मैं कितनी ही बार देख चुका हूँ, पर जी नहीं भरा है।
  14. बैटमैन बिगिन्स – मेरी अभी तक की देखी सभी बैटमैन फ़िल्मों में सबसे बढ़िया यही है। इससे पहले आई जार्ज क्लूनी की बैटमैन फ़िल्में इसके सामने कुछ नहीं लगती। क्रिस्चियन बेल का अभिनय शानदार है, और उतनी ही बढ़िया संगत की है लिआम नीसन ने अपने बेहतरीन अभिनय से। कहानी तो बढ़िया है ही, हांस ज़िम्मर का पार्श्व संगीत अद्वितीय है।
  15. द क्रानिकल्स आफ़ नारनिया – हाल ही में आई इस फ़िल्म के बारें में कुछ पढ़ने से अच्छा है कि आप इसे देख ही लें, क्योंकि इस फ़िल्म के बारे में शब्दों में कुछ कहना बहुत कठिन है और वह इसके साथ पूर्ण न्याय भी न होगा। 🙂

फ़िल्में तो रोज़ ही बनती रहती हैं पर ऐसी फ़िल्में जो आपको अन्दर तक छू जाएँ कभी कभी ही बनती हैं। कुछेक फ़िल्में और भी हैं जो मुझे बेहद पसन्द हैं, पर क्योंकि अब मुझे नीन्द आ रही है(सुबह के ४ बजे हैं), इसलिए मैं उन फ़िल्मों को “फ़िर कभी” के लिए छोड़ देता हूँ। 😉

मैं यह सोचता हूँ कि यदि आपने इन फ़िल्मों में से कोई भी नहीं देखी तो आपने कोई अच्छी फ़िल्म देखी ही नहीं है। 😉 तो जो फ़िल्म नहीं देखी है उसे शीघ्र ही देख अपने आप को कृतार्थ करें। 🙂