अभी तक जीवन की (छोटी)यात्रा के मेरे जो अनुभव रहे हैं, उनका निचोड़ यह कहता है कि यदि आज के समय में भगवा वस्त्र पहने किसी व्यक्ति को खुद को साधु, संत या सन्यासी बताते हुए देख लो तो उस पर कतई विश्वास न करो क्यों कि आजकल तो भिख़ारी और ढ़ोंगी भी भगवा वस्त्र पहनते हैं। साथ ही मेरे अनुभवानुसार, आयुर्वेदिक चिकित्सा महज एक बकवास है क्यों कि जितने भी आयुर्वेद से चिकित्सा करने वाले हैं, उनमें से निन्यानवें प्रतिशत तो ढ़ोंगी और ठग हैं, और बाकी एक प्रतिशत आपको मिलेंगे नहीं!! मैंने बहुत से आयुर्वेद से चिकित्सा करने वालों के बारे में सुना, बहुत से लोग मिले जो कि शपथ उठा के कहते थे कि उन्हे लाभ हुआ है, पर अंत में जाके यही निकलता था कि वे सब ठग-बदमाश होते थे। इसलिए मेरा इस चिकित्सा पद्धति से विश्वास उठ गया है, और ऐसा ही होम्योपैथिक चिकित्सा पद्धति के साथ भी है। मैं तो केवल यह जानता व मानता हूँ कि एलॉपथी से चिकित्सा कराओ और झट-पट आराम पाओ!! 😉

अब यह स्वामी रामदेव को ही लीजिए, अभी इनका एक विवाद ठंडा नहीं हुआ, कि वे एक नई सनसनी फ़ैलाने को तैयार हैं। मौके(मिलती लोक प्रसिद्धि) का पूरा लाभ उठाते हुए उन्होने कुछ नई बातें कही हैं। पहले तो उन्होने यह घोषणा की कि उनके औषधालय में बनने वाली हर औषधि पर अब उसको बनाने में प्रयोग हुए तत्वों का पूरा ब्यौरा लिखा होगा, जोकि वैसे तो कानूनी रूप से आवश्यक तो नहीं है, परन्तु वे ऐसी पहल करेंगे(और पारदर्शीता लाएँगे)!!

दूसरी बात फ़िर उन्होने उठाई आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति और भारत में उसकी दुर्दशा की। उन्होने कहा कि केन्द्रिय बजट में एलॉपथी चिकित्सा के लिए 97 प्रतिशत और आयुर्वेद तथा अन्य भारतीय चिकित्सा पद्धतियों के लिए मात्र 3 प्रतिशत धनराशी दी जाती है। और उन्होने माँग की कि यह उलट के, आयुर्वेदिक चिकित्सा के लिए 97 प्रतिशत और एलॉपथी के लिए 3 प्रतिशत धनराशी दी जानी चाहिए।

मैं इस बात का शुक्र मनाता हूँ कि स्वामी रामदेव वित्त मंत्री के सलाहकार आदि नहीं हैं वरना देश की जनता, जो कि वैसे भी मर रही है, वह और तेज़ी से मरना शुरु कर देती!! आयुर्वेद एलॉपथी के आने से पहले भी था, पहले भी लोग बुखार में नीम के पत्तों को उबाल के पीते थे, सोने-चाँदी इत्यादि से औषधियाँ बनती थी, परन्तु एलॉपथी का आविष्कार क्यों कर हुआ? सिर्फ़ इसलिए क्योंकि एलॉपथी से रोगी को लाभ जल्दी होता था और सस्ते में होता था। जिस मर्ज़ की दवा में सोने-चाँदी आदि का प्रयोग होता है, उसी मर्ज़ की दवा कुछ रसायनों से बनाई जाती है(जो कि सस्ते होते हैं) और आयुर्वेदिक दवा की अपेक्षा आम आदमी की पहुँच में होती है!! यदि स्वामी जी का वश चले तो वे हम सभी को धोती में लपेट दें और काढ़ा-सत्तू पर जीवन व्यतीत कराएँ!!

मैं यह नहीं जानता कि स्वामी रामदेव कितने सही हैं और कितने गलत, लेकिन मैं इतना जानता हूँ कि अर्थशास्त्र की उन्हे समझ नहीं है और जीवन का सामान्य ज्ञान यह है कि मनुष्य को जिस विषय की जानकारी न हो, उस विषय में उसे अपनी टाँग नहीं अड़ानी चाहिए। इसलिए स्वामी जी को चाहिए कि वे अपना मायाजाल बुनें और एक समझदार ख़िलाड़ी की तरह उन विषयों के बारे में टिप्पणी न करें जो उनकी पहुँच से बाहर हैं!!

और स्वामी रामदेव के जो अनुयायी यह समझ रहे हों कि मैं उनकी निन्दा कर रहा हूँ तो वे यह जान लें कि मैं ऐसा बिलकुल नहीं कर रहा हूँ और यदि वे अपने विचार प्रकट करना चाहें तो शांतिपूर्ण ढ़ंग से सभ्य भाषा में कर सकते हैं, अन्यथा उनकी टिप्पणियाँ मिटा दी जाएँगी और स्वामी जी से उनकी शिकायत कर दी जाएगी क्योंकि स्वामी जी ने अपने समर्थकों से शांतिपूर्ण तरीके से विरोध करने को कहा है!! 😉