बहुत दिनों बाद कुछ लिख रहा हूँ। क्यों? यूँ ही, खुरक मच रही थी कि काफ़ी दिन हो गए कुछ लिखा नहीं, सो इसलिए कुछ लिख डालते हैं। पिछली बार जब कुछ लिखा था तो हंगामा हो गया था!! विषय कुछ शीघ्रग्राही था, या यूँ कहें कि समाज के एक वर्ग ने इसे ऐसा बना रखा है। बहरहाल अब उस बवाल से उठी धूल बैठ चुकी है। पर इस बीच न लिखने का कारण यह नहीं था। बल्कि कोई एक कारण न होकर कई कारण हैं जिनका थोड़ा थोड़ा योगदान रहा है, जैसे कि एकाएक मेरा कुछ अधिक व्यस्त हो जाना, फ़िर इस सप्ताह के आरम्भ में वर्डप्रैस डॉट कॉम पर हुई समस्या के कारण इस ब्लॉग की ऐसी की तैसी फ़िर जाना(जिसे कि हांलाकि बाद में सुलटा लिया गया था)। साथ ही एक ऊब सी होने लगी थी, मैंने अपने किसी अन्य ब्लॉग पर भी काफ़ी अरसे से कुछ नहीं लिखा है। अगर इतना पर्याप्त नहीं था तो एक बड़ा कारण था कि कुछ अन्य चीज़ों की ओर ध्यान केन्द्रित हो गया था(है) और उस समय ब्लॉग पर कुछ लिखना समय की बर्बादी लगा। मेरे साथ ऐसा अक्सर होता है कि किसी नई चीज़ की ओर आकर्षण बढ़ता है और फ़िर उस पर ध्यान केन्द्रित करने के लिए किसी मौजूदा क्रिया का बलिदान देना पड़ता है, भई अब समय तो आखिर अपनी अंटी में उतना ही है न, आकर्षण के साथ साथ वो थोड़े ही बढ़ता है!! 😉

इधर लोग बाग़ बराबर अपनी अपनी छतियाने में लगे हुए थे(फ़िलहाल रूक गए, भई आखिर कितना छतियाएँगे)। एकबारगी तो मुझे लगा कि कही यह बर्ड फ़्लू की तरह न फ़ैल जाए, क्योंकि उस हाल में अपने को इसके टलने तक नारद दर्शन के लिए जाना बन्द करना पड़ता, नहीं तो अपने बीमार होने का खतरा होता। वैसे तो अपन इससे पूरी तरह निरापद हैं पर फ़िर भी क्या भरोसा, जाने कब क्या हो जाए!! 😉

बस अब बहुत हुआ, सुबह हो रही है(६ बजने को हैं), सप्ताहांत है(सारा का सारा यहाँ ही थोड़े न बिताना है) और एक लंबी नींद लेने की इच्छा है(इच्छा ही रहेगी), इसलिए अब बक-बक बंद करते हैं। खुरक उतर चुकी है, तो इसलिए अभी कुछ और समय तक नहीं उठने वाली, अभ्यास हो गया है लंबे समय तक दबाने का(खुरक को, और किसे!!), इसलिए न जाने अब फ़िर कब हों हम यहाँ …..