अभी एकाध दिन पहले मैं यूट्यूब पर एक वीडियो देख रहा था, जो कि एबीसी न्यूज़ के एक प्रसारण की रिकॉर्डिंग है जिसका शीर्षक दिया गया है “भारत उदय“। अब इस वीडियो में भारत के तेज़ी से होते विकास को भी बताया गया है, पर भारत को दिखाया गया है मुम्बई के स्लम इलाकों से लेकर दिल्ली की सब्ज़ी मन्डियों आदि तक। एक बात मुझे समझ नहीं आती, और वह यह कि इन अमरीकियों आदि को भारत में बस यही दिखाई देता है, स्लम इलाके, नंग धड़ंग घूमते बच्चे, गरीबी रेखा के नीचे रहते लोग? क्या इनको वातानुकूलित शॉपिंग मॉल, मैकडॉनल्ड के रेस्तरां, बरिस्ता आदि के कॉफ़ी पब, कनॉट प्लेस इलाके की बढ़िया सड़कें, नई दिल्ली मुम्बई आदि की सड़कों पर घूमती महंगी गाड़ियाँ, दुनिया में सबसे ज्यादा लखपतियों की तादाद नहीं दिखाई देते? 🙄
वे कहते हैं कि हम बहुत सड़े हुए हैं, सड़के सड़ी हुई हैं, पर क्या उन्होंने सोचा है कि अपनी आज़ादी के ५०-६० वर्ष बाद वे लोग कहाँ थे? इतना तो मैं विश्वास के साथ कह सकता हूँ कि सन् १८४० के आसपास वे इतने उन्नत नहीं थे जितने हम अपनी स्वतंत्रता के ५०-६० वर्ष बाद आज हैं। जहाँ अपनी आज़ादी की अर्ध शताब्दी के बाद हम हवाई जहाज़ पर सवार एक आर्थिक ताकत के रूप में उभर कर आ रहे हैं, वही वे लोग अपनी स्वतंत्रता की अर्ध शताब्दी घोड़ा गाड़ी में रेंगते हुए और काले अफ़्रीकी ग़ुलामों को पीटते हुए मना रहे थे!! तो कैसे वे अपनी तुलना हम से कर सकते हैं जबकि उनको उन्नत होने के लिए २०० वर्ष से ऊपर का समय मिला है और हमें उसका मात्र एक चौथाई हिस्सा!! अपनी स्वतंत्रता के २०० वर्ष बाद तो हम इतने आगे निकल जाएँगे कि अमरीका पीछे कहीं अपने अवशेषों को समेटता बैठा रह जाएगा!!
लेकिन ऐसा नहीं है कि इस वीडियो में भारत के बारे में कुछ गलत दिखाया गया है। बल्कि इसमें तो यह दिखाया गया है कि किस तरह भारत तेज़ी से उभर कर आ रहा है अंतर्राष्ट्रीय मंच पर और किस तरह वह अमरीका को टक्कर देने वाला है क्योंकि जवान खून की भारत के पास कमी नहीं है। चीन जो कि अभी तेज़ी से आर्थिक शक्ति के रूप में उभर रहा है, उनकी काम काजी जनसंख्या अब बूढ़ी होती जा रही है, जवान खून की कमी है और जैसा कि इस वीडियो में बताया गया है, वे लोग अमीर होने से पहले बूढ़े हो जाएँगे। तो यदि अगली अर्धशताब्दी को देखा जाए तो चीन भारत का कोई बड़ा प्रतिद्वन्द्वी नहीं है।
परन्तु बात यह है कि अमरीकी आदि अपनी संकीर्ण सोच और दृष्टि से कब निकलेंगे? क्या अमरीका में झुग्गी झोपड़ियाँ आदि नहीं हैं? क्या वहाँ प्रत्येक व्यक्ति मर्सीडीज़ और फ़रारी में घूमता है? बिलकुल नहीं, तो फ़िर यहाँ के स्लम को देखकर आश्चर्य कैसा और क्यों इसको भारत की पहचान बताया जाता है? अमरीकी सदैव ही अपनी संकीर्ण सोच का शिकार रहे हैं, अपने को सर्वश्रेष्ठ और अजेय समझने वाले अमरीकियों को समय समय पर इसका भयंकर मोल चुकाना पड़ा है, चाहे वह पर्ल हारबर पर अपने पैसिफ़िक जहाज़ी बेड़े के विनाश से या फ़िर न्यूयार्क में वर्ल्ड ट्रेड टॉवर के विध्वंस से, पर फ़िर भी कुत्ते की दुम टेढ़ी ही रहती है, सीधी नहीं होती।
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