ना, यह कोई धार्मिक अथवा आध्यात्मिक प्रवचन नहीं है, यह तो एक और यात्रा का विवरण है। हाँ, लगता है कि जुलाई का महीना मेरे लिए यात्राओं का महीना ही था, एक ही माह में दो-दो यात्राएँ!! अभी जयपुर यात्रा और ब्लॉगर भेंटवार्ता की यादें ताज़ा ही थीं कि मैं निकल पड़ा एक और यात्रा पर।
इस बार रूख था कलसी की ओर, प्रसिद्ध पांवटा साहिब से थोड़ा आगे, देहरादून से लगभग 50 किलोमीटर पहले, हिमाचल और उत्तरांचल की सीमाओं पर बसा एक छोटा सा कस्बा, जहाँ रखी है इतिहास की एक धरोहर। कौन सी धरोहर? बताएँगे भई, समय आने पर सब बताएँगे, सब्र रखो। 🙂
हाँ, तो इस यात्रा की प्लानिंग आदि अपनी जयपुर यात्रा से पहले ही आरम्भ हो गई थी। जयपुर यात्रा और इसके बीच मात्र एक सप्ताहांत था, और लगभग 14 दिन। समय तेज़ी से सरकता गया और हर यात्रा से पहले के जो लटके-झटके, नाज-नखरे, रूठना-मनाना, यानि कि मान मनौव्वल जैसा कि अपेक्षित था, हुआ, पूरे जोशो-खरोश से हुआ। 😉 एक ने कहा कि बरसात का मौसम है, नहीं जाएँगे, पहाड़ों में फ़ंस जाएँगे, तो दूसरे ने सुझाव दिया कि चलो आगरा चलते हैं या जयपुर चलते हैं। हम भी ढीठों की तरह अड़े रहे कि जयपुर से दो सप्ताह पहले आए हैं और आगरा बरसात में कोई खूबसूरत नहीं हो जाता, जाएँगे तो अब कलसी ही जाएँगे नहीं तो हम कहीं नहीं जा रहे, जिसे जहाँ जाना है चला जाए। 😉 😛 शब्दों और विचारों का तूफ़ान थमा, लोग जाने के लिए तैयार हुए, गाड़ी हमारे द्वारे आई और हम निकल चले। आशा के विपरीत मुझे मिला के आठ लोग निकल चले थे, कहाँ लग रहा था कि कोई नहीं जाएगा और कहाँ आठ लोग जा रहे थे, वाह रे मानस बुद्धि!! 🙂
तो 21 जुलाई 2006 की रात्रि हम निकल चले। पर यह ध्यान नहीं रहा कि शिवरात्रि आ रही है, काँवड़ उठा लोग आ रहे होंगे और मुख्य मार्गों पर भीड़ और यातायात धीमा होगा। पर खैर, हम बाग़पत-साहरनपुर के रास्ते लग लिए क्योंकि इस पर काँवड़ियों का आना जाना नहीं था। किस्मत हमेशा की तरह ज़ोरों पर थी, रास्ता इतना खराब और टूटा फ़ूटा कि बस पूछो ही मत, खाली सड़क पर भी गाड़ी तेज़ नहीं जा सकती थी, और गाड़ी ठसाठस भरी हुई थी, आठ हम लोग और नौंवा वाहनचालक। 😉 हंसी मज़ाक और टाँग-खिचाई के चलते रास्ता आराम से कट रहा था कि अचानक बीयाबन में मार्ग पर गाड़ी रोकनी पड़ी, आगे ट्रकों की पंक्ति रूकी पड़ी थी, दोनों ओर, जाम लगा हुआ था। अब कोई पूछे कि दोनो ओर खेत और जंगल, बीच में टूटी-फ़ूटी सड़क, सुबह के 3 बजे जाम लगने का क्या अर्थ। तभी हमारे रेजिडेन्ट जासूस संतोष तफ़तीश करने गाड़ी से उतर आगे गए और हम लोग भी उतर टाँगें सीधी करने लगे। थोड़ी देर में संतोष वापस आए और बताया कि पुलिस वाले ट्रकों से वसूली कर रहे थे जिसके कारण जाम लगा हुआ था, संतोष ने उन्हें 3-4 गालियाँ सुनाईं तो वे डंडे के माफ़िक सीधे हुए और रास्ता खोला। अब कोई सोचे कि ऐसा कैसे हो सकता है, यूपी पुलिस को हूल दे सके ऐसा कौन हो सकता है, तो भई समझ जाओ, कोई पहुँचा हुआ बन्दा होगा जो ऐसा कर सके, संतोष चाहते तो उन वसूली करते पुलिसियों की “गंगाजल” स्टाईल क्लास भी ले सकते थे पर अपनी शराफ़त के सदके छोड़ दिया। 😉
बहरहाल, हम ऊपर-नीचे होते, हिलते डुलाते, वातानुकूलित गाड़ी की मौज लेते अपने रास्ते लगे रहे। कुछेक गाँवों आदि से भी गुज़रे, शनिवार की सुबह हो आई थी, खेतों को देखा, लोगों की सुबह की चहल पहल देखी, स्कूल जाते बच्चे देखे, भई अब सभी हमारी तरह बेकार तो नहीं बैठे हैं ना कि सप्ताहांत की छुट्टी मनाएँ!! 😉 बीच में एकाध बार रूककर सभी ने गाड़ी से बाहर आ अपनी अपनी टाँगें और अन्य सामान सीधा किया, खेतों के बीच सुबह सवेरे का नज़ारा बहुत उत्तम था सो कैमरे आदि अपनी अपनी गुफ़ाओं से निकल हरकत में आ गए।
आखिरकार हम विकासनगर पहुँचे और फ़िर पूछते पाछते डाक पत्थर नामक जगह जहाँ पर मौजूद था गढ़वाल मण्डल विकास निगम का यात्री निवास जिसमें हमारा आरक्षण था। तुरत फ़ुरत हमें हमारे कमरे सौंप दिए गए और अपना सामान पटक मैं नीचे पहुँच गया जहाँ संतोष पहले से ही तस्वीरें आदि लेने में व्यस्त थे। अनीशा तस्वीरें ले चुकी थीं तथा किसी और की कोई दिलचस्पी नहीं थी। पर वहाँ से सामने वेग से बहती यमुना नदी और दूर नज़र आते चक्राता पहाड़ों का जो नज़ारा था वो वाकई देखने योग्य था, तस्वीरें उस नज़ारे को बयान नहीं कर सकती!!
तो बस फ़िर क्या था, संतोष के साथ मैं भी फ़टा-फ़ट तस्वीरें अपने कैमरे में कैद करने में व्यस्त हो गया।
परन्तु नज़ारे से अधिक दिलचस्पी संतोष को पेड़ों पर बैठने वाली चिड़ियाओं और फूलों पर बैठने वाली तितलियों में थी, सो वे उनकी तस्वीरें लिए जा रहे थे, चुपके से उनके निकट पहुँच जैसे एक बाघ अपने शिकार के निकट पहुँचता है।
मेरे कैमरे में संतोष के कैमरे जितना दम ना था, इसलिए मैंने उन पक्षियों और तितलियों की तस्वीरें लेने की चेष्टा नहीं की, लेकिन यात्री निवास के छोटे से बाग़ और उसमें लगे रंग बिरंगे फूलों ने मुझे आकर्षित किया और मैंने झट उनकी तस्वीरें ले डाली।
अगलें अंक में ज़ारी …..
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