तो रविवार १९ फरवरी २००६ को एक और ब्लॉगर भेंटवार्ता थी, या यूँ कहें कि फ़्लॉगर भेंटवार्ता थी। 😉 सुबह सवेरे समय में यात्रा करने जाने के कारण मैं वैसे ही नहीं सोया था, क्योंकि रात सोने में देर हो गई थी और फ़िर २-३ घंटे सोकर क्या करता, ठीक समय पर उठ न पाता!! वापस आकर भी भारत-पाकिस्तान का मैच देखने का लोभ सोने न दे। आखिरकार सोचा कि थोड़ी नींद ले ली जाए, क्योंकि सांय ब्लॉगर भेंटवार्ता के लिए कनॉट प्लेस जाना था और नींद के अभाव से पीड़ित आँखों के संग ड्राईविंग करना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है। शाम भी हो गई और निश्चित समय पर मेरी घड़ियों में अलार्म भी बज उठा। फ़टाफ़ट तैयार हो मैं कनॉट प्लेस के निकट स्थित जंतर मंतर की ओर चल दिया।
यह भेंटवार्ता उसी समूह की थी जिनकी एक भेंटवार्ता पिछले महीने २९ तारीख को भी थी जिसमें मैं गया तो था, परन्तु इन साहबान के ऐन मौके पर स्थान बदल देने के कारण अपनी उपस्थिति नहीं लगा पाया था। तो इस बार सोचा कि इससे पहले इस बार भी स्थान बदल जाए, मुझे निश्चित स्थान पर समय पर पहुँच जाना चाहिए!! 😉 पर हुआ कुछ अलग ही, मैं सांयकाल के ठीक ४:४५ बजे और निश्चित समय से पूरे १५ मिनट पहले जंतर मंतर के प्रवेश द्वार के बाहर खड़ा उन असंदिग्ध चेहरों को तलाश रहा था जो ब्लॉगर होने की चुगली करते हों। 😉
परन्तु ऐसा कोई न मिला, मैं ही सबसे पहले पहुँचा था, सो इसलिए उस संध्या के आतित्थेय अमित केन्डुरकर को मैंने यह पूछने के लिए फ़ोन लगाया कि वह कब तक आ रहें हैं। उत्तर मिला १०-१५ मिनट, सो मैं प्रतीक्षा करने लगा। कुछ ५ ही मिनट बीते होंगे कि कुर्ता धारी एक साहब पास आए और पूछा कि क्या मैं किसी की प्रतीक्षा कर रहा हूँ!! अब मैं कोई कन्या होता तो कदाचित् इस प्रश्न का कुछ अलग ही अर्थ निकलता और उसका परिणाम भी भिन्न होता। 😉 परन्तु मेरी खुराफ़ाती बुद्धि ने ताड़ लिया कि यह साहब ब्लॉगर भेंटवार्ता के लिए ही आए हैं, सो मैंने ऐसा कहा, और परिचय का आदान प्रदान हुआ। पता चला कि वे स्टिंग आपरेशन करने वाले पत्रकारों के समूह डीआईजी के मेम्बर मायाभूषण हैं, वही जिनकी दिल्लीब्लॉगर समुदाय में प्रेषित कल्पित प्रमोशनल ईमेलों के कारण मैंने कुछ उग्र प्रतिक्रिया की थी, परन्तु मामला बाद में बर्फ़ के नीचे दबा दिया गया। 🙂 बहरहाल, ५ बज गए थे, और मैंने यह सोच राहत की श्वास ली कि अकेले प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ेगी। अभी हम लोग बतिया ही रहे थे कि एक आकर्षक कन्या ने हम दोनों के पास आकर पूछा कि क्या हम लोग ब्लॉगर भेंटवार्ता के लिए आए हैं। हमारे सहमति में सिर हिलाने पर उन्होंने बताया कि वे भी इसी शुभ काज के लिए पधारी हैं। परिचय का आदान-प्रदान हुआ और पता चला कि उनका नाम स्मिता है और वे भी एक पत्रकार हैं। मैं यह सोचने पर विवश हो गया कि क्या दिल्ली में अधिकतर ब्लॉगर पत्रकार ही हैं? क्योंकि जिस पिछली ब्लॉगर भेंटवार्ता में मैं गया था वहाँ भी लगभग सभी ब्लॉगर पत्रकार ही थे!! फ़िर मैंने सोचा कि कदाचित् दोष मुझ जैसे लोगों का ही है, यदि मेरे जैसे लोग ब्लॉग जैसी तकनीकी चीज़ों को प्रयोग करना इतना आसान नहीं बना देते तो यह न होता!! 😉
बहरहाल अपनी इस आत्मग्लानि को अपने भीतर ही दबा, उन दोनो पत्रकार ब्लॉगरों से बतियाने लगा!! 😉 लगभग ५:१७ पर मेज़बान महोदय का फ़ोन आया यह पूछने के लिए कि हम लोग कहाँ पर हैं। अब मज़ेदार बात यह है कि वे मुझसे ३-४ कदम की दूरी पर खड़े ही यह पूछ रहे थे, सो मैंने हाथ हिला अपनी ओर उनका ध्यान आकर्षित किया। परिचय के बाद हमने तय किया कि हमें जंतर मंतर के अंदर चल देना चाहिए और वहाँ प्रतीक्षा करनी चाहिए। तो हम चारों ने अपनी अपनी जेबें ५-५ रूपये से ढीली करी और अंदर चल दिए जहाँ पर बहुत से देसी-विदेशी पर्यटक टहल रहे थे और कुछेक अपने कैमरों द्वारा छायाचित्र भी ले रहे थे। अब कैमरा तो मेरे पास भी था, परन्तु उसे निकाल कर फ़ोटो लेने में आलस्य सा लगा, तो इसलिए यह विचार अपने आप ही मन से रफ़ूचक्कर हो लिया। एक जगह खड़े हो हम लोग बातें करने लगे। कोई विषय नहीं था, जो मन में आ रहा था वह बोले जा रहे थे। गूगल की बात भी हुई और उसकी बदलती विचारधारा तथा हाल ही में उसके द्वारा अपनी चीनी वेबसाईट पर संषोधित खोज परिणाम दिखाने की स्वीकृति पर मेरे और स्मिता के बीच एक प्रकार की छोटी सी बहस भी हुई। समय बीता और जब लगभग ६:१५ पर सांझपरी का अमित को फ़ोन आया कि प्रवेशद्वार पर बैठे चौकीदार उन्हें अंदर नहीं आने दे रहे तो हम लोगों ने ही बाहर चलने का निर्णय लिया। 😉 बाहर सांझपरी के साथ एक और बंधु उपस्थित थे, परिचय के पश्चात पता चला कि उनका नाम पुनीत है और वे पहले ब्लॉगर हुआ करते थे परन्तु अब काफ़ी समय से जिन्होंने ब्लॉगिंग को ठन्डे बस्ते में डाल रखा है।
चूँकि जन्तर-मन्तर बंद हो चुका था, इसलिए हमने पास के किसी रेस्तरां आदि में चलने का निर्णय लिया, वैसे भी वहाँ बाहर खड़े रहकर शाम खोटी करने का कम से कम मेरा तो कोई इरादा नहीं था। तो मैंने सुझाव दिया कि यदि कोई दारू वगैरह मारनी है तो पास ही में dv8 है, अन्यथा कॉफ़ी इत्यादि के लिए बरिस्ता चलते हैं। बरिस्ता का नाम सुनते ही सांझपरी बोली कि वहाँ बहुत शोरगुल होता है और वह बहुत भरा रहता है, सो मैंने उत्तर दिया कि यदि शोरगुल से दूर किसी एकांत स्थान पर ही जाना था तो कनॉट प्लेस आने की क्या आवश्यकता थी, क्योंकि यहाँ तो शोरगुल आदि ही मिलेगा। तो हम सर्वसम्मति से बरिस्ता की ओर बढ़ चले। परन्तु आगे निकल गए अमित और मायाभूषण कैफ़े कॉफ़ी डे में प्रवेश कर गए, तो मैंने सोचा कि कहीं तो जाना ही है, यहीं सही। 🙂 पहली मंज़िल पर पीछे एक कोने में एक बड़ी सी कॉफ़ी टेबल और सोफ़े दिखाई दिए और हम वहीं जा कर पसर गए। कुछ देर बाद अजय भी उपस्थित हो गए।
बातें चल पड़ी और कुछ देर बाद मैं, अमित और अजय, पेय पदार्थ लेने नीचे पहुँच गए। तापमान अधिक था, गर्मी लग रही थी, सो कॉफ़ी लेने का तो प्रश्न ही नहीं था। अमित अपना और अन्य इच्छुक व्यक्तियों का आर्डर देकर चले गए, मैं और अजय मीनू हाथ में लिए अनिश्चित से खड़े रहे। मैंने करौंदे की स्मूदी लेने का निश्चय किया, तो अजय ने भी एक अन्य स्वाद की स्मूदी ही ली। वापस ऊपर आए अभी अधिक देर नहीं हुई थी कि हम लोगों के पेय आ गए। करौंदे की स्मूदी जो मैंने ली थी, गर्म माहौल में बर्फ़ के चूरे से अटी पड़ी वह बहुत ही बढ़िया लग रही थी। 😀 बातें चलती रहीं और समय व्यतीत होता रहा। जल्द ही स्मिता ने विदा ली। उसके बाद हम बैठे बतिया रहे थे। सांझपरी ने कोई शीतल अथवा गर्म पेय नहीं लिया था, उन्हें जीवन अमृत यानि कि पानी की तलब लग रही थी। वेटर से पूछा तो पता चला कि पानी तो उपलब्ध नहीं है, मिनरल वॉटर उपलब्ध है जिसकी बोतल नीचे से खरीदी जा सकती है!! थोड़ी देर बाद एक वेटर आकर हमें फोकट में कैडबरी के बॉईट्स नामक छोटे चॉकलेट क्रिस्प के छोटे पैकेट दे गया, प्रत्येक व्यक्ति के लिए एक। सभी ग्राहकों को यह बाँटे जा रहे थे, शायद उस दिन रेस्तरां वालों की कमाई अधिक हुई थी या फ़िर कदाचित् मैनेजर की बीवी का जन्मदिन था, जो भी हो, कारण नहीं पूछा, दिमाग खपाने की क्या आवश्यकता, कुछ दे ही रहा था न, ले थोड़े ही रहा था!! 😉
बातें चलती रही और हम लोग बतियाते रहे। कोई विशेष विषय नहीं था, बस यूँ ही बतिया रहे थे, तो इसलिए मैंने Ctrl-Alt-Del दबा अपने दिमाग का आपरेटिंग सिस्टम को “हाईबरनेट” करा दिया, क्योंकि सोचने की तो इस माहौल में कोई आबश्यकता ही नहीं थी इसलिए छोटी काम चलाऊ मेमोरी ही पर्याप्त थी। 😉 कुछ समय बाद सभी उठ खड़े हुए, तो मैं भी उठ खड़ा हुआ और सबके साथ बाहर की ओर चल दिया(अकेला बैठा क्या करता अंदर??)। वापस जंतर मंतर की ओर चल दिए क्योंकि सभी की गाड़ियाँ आदि वहीं खड़ी थी सिवाय अजय के। जीवन भारती की इमारत के बाजू में पहुँच हम खड़े हो गए और पुनः बतियाने लगे। विषय ब्लॉगों का था, तो इस पर सांझपरी ने पूछ कि जब हम लोग अंदर कैफ़े कॉफ़ी डे में बैठे थे तो तब क्यों न यह चर्चा हुई और सड़क पर खड़े रह यह सब करने की क्या तुक बनी। परन्तु उस टिप्पणी को लगभग अनदेखा कर हम लोग लगे रहे, मुझे तो अब याद भी नहीं कि क्या बात कर रहे थे!! 😉
कुछ मिनट बाद सब ने एक दूसरे से विदा ली, अजय वापस एन ब्लॉक की ओर बढ़ गए, शायद उन्होंने कैफ़े कॉफ़ी डे के सामने की ओर वाली पार्किंग में अपनी गाड़ी खड़ी की थी। मैंने डॉ लाल पैथ लैब के निकट अपनी मोटरसाईकिल खड़ी की थी, तो इसलिए जंतर मंतर की ओर जाते उन लोगों से विदा ली और अपनी मोटरसाईकिल की ओर बढ़ गया। रात्रि घिर आई थी और लगभग सवा ९ बजे मैं घर पहुँच गया, और तब मैंने देखा कि पूरे दिन में १०० किलोमीटर से अधिक मोटरसाईकिल चल ली थी, सुबह “हिस्ट्री वाल्क” के लिए महरौली गया था और सांय ब्लॉगर भेंटवार्ता के लिए कनॉट प्लेस। आजकल मेरे लिए एक दिन में ५० किलोमीटर मोटरसाईकिल चलाना भी बड़ी बात है तो इसलिए कुछ अचरज अवश्य हुआ!! 🙂
इस संध्या का अमित द्वारा लिखित अंग्रेज़ी संस्करण यहाँ उपलब्ध है।
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