ऐसा क्यों होता है कि कुछ चीज़ों पर हम यह जानते बूझते भी काबू नहीं रख पाते कि अति बुरी है। वैसे तो अति हर चीज़ की बुरी होती है, पर यह ज्ञान रखने के बाद भी क्यों हम काबू नहीं रख पाते? यह बहस का मुद्दा है, क्योंकि इसका संबन्ध मनुष्य की इच्छा शक्ति से है, जितना व्यक्ति का मन पर संयम होगा, उतना ही वह ऐसी स्थिति में आने से बचेगा। परन्तु दोषहीन कोई नहीं होता, किसी का भी अपने मन पर पूरा नियंत्रण नहीं होता, यह तो प्रकृति का नियम है। प्रत्येक व्यक्ति की कुछ कमज़ोरियाँ होती हैं जिनके आगे वह विवश हो जाता है। पर यह तो तय है कि इसके पीछे क्या चिंतन है और मन पर संयम कैसे रखा जाए, इसका उत्तर तो कोई महान बुद्धिजीवी ही दे सकता है!! 🙂
अब यदि मन में प्रश्न उठ रहा हो कि मैं दार्शनिकों की तरह ऐसी गंभीर बकवास क्यों कर रहा हूँ तो उसका भी एक कारण है। मैं अभी अभी घर में घुसा हूँ, सुबह ग्यारह बजे का निकला दोस्तों के साथ क्रिकेट खेला जा रहा था, और सात घंटे ऐसी की तैसी करा के सोचा कि बस बहुत हुआ, अब घर चला जाए!! हाल ऐसे हो रहे हैं कि जैसे बस अभी के अभी गिर पड़ूँगा, फ़िर भी सनक देखो, चिट्ठा लिखने बैठ गया!! 🙁 क्या करें, कन्ट्रोल नहीं होता!!
अब कुछ और चीज़े भी हैं जिन पर नियंत्रण नहीं साधा जाता। जैसे मुझे पूरी-छोले बहुत पसंद हैं, और कढ़ी-चावल, तो इन्हें मैं हमेशा अधिक खा जाता हूँ और फ़िर हाजमोला खा कर ऐसी की तैसी होने से रोकने की कोशिश करता हूँ, तौबा। वैसे तो मुझे प्रत्येक मिठाई पसंद है, चाहे रसमलाई हो या बंगाली रसगुल्ले, संदेश हो या (देसी घी में बनें)बेसन अथवा गोंद के लड्डू, गाजर का हलवा हो या मूँग की दाल का, परन्तु एक मिठाई जो मुझे औरों से अधिक पसंद है वह है गुंजिया और इसे भी मैं कुछ अधिक ही खा लेता हूँ और फ़िर पेट में गड़बड़ हो ही जाती है। 🙁 हर बार ऐसा होने पर सोचता हूँ कि बस अब की बार ऐसा नहीं करूँगा, नियंत्रित मात्रा में ही खाऊँगा, परन्तु क्या करें, सामने आते ही सब कुछ भूल जाता हूँ, नियंत्रण बेचारा एक ओर ही खड़ा रह जाता है!!
वैसे शुक्र है कि कोई ऐब नहीं है, न सुट्टा मारने का और न ही बाटली का, न ही पाऊडर का और न ही लड़की का, नहीं तो पता नहीं क्या होता मेरा, मैं तो जीवन की बहार देखे बिना ही पतली गली से कट लेता।
हाँ, तो अब मन कर रहा है कि बस बिस्तर पर पड़ूँ और गहरी नींद में डूब जाऊँ, पर कमबख्त दिमाग इसकी आज्ञा नहीं देता, कहता है कि छह दिन बाद तो छुट्टी मिली है, कुछ भले काम करो, अपने लिए कुछ कोड वोड लिख डालो!! हाय ये सत्यानाशी दिमाग, जब आज्ञापालन करवाने का समय होता है तब तो कमज़ोर पड़ जाता है, और जब …..
बस अब और नहीं लिख सकता, यह तो अपनी खीज मिटाने के लिए इतना लिख दिया अन्यथा …..
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