दो मैच बेजान पिचों पर खेलने के बाद जब आखिरी टैस्ट मैच में कुछ जानदार हरी पिच मिली, तो लोगों को कुछ आशा बंधी कि आखिरकार मैच में हार-जीत का निर्णय होगा। कप्तान साहब राहुल “दीवार” द्रविड़ ने जब टॉस जीत क्षेत्ररक्षण का निर्णय लिया तो भंवे तो उठी पर यह सोच मन को तसल्ली दी कि अच्छा है, वरना रावलपिंडी एक्सप्रैस इस हरी पट्टी पर भारतीय बल्लेबाज़ी को उड़ा ले जाती। जब इरफ़ान पठान ने हैट-ट्रिक ली, तो मन में अनार-फ़ुलझड़ियाँ फ़ूटने-जलने लगे, पाकिस्तानी बल्लेबाज़ों को झटपट गिरते देख ऐसा लगा कि मानो दीपावली आ गई हो। पर अपने बल्लेबाज़ भी कहाँ कम हैं, प्रतियोगिता की भावना तो उनमें सदैव से ही रहती है, पैविलियन में फ़टाफ़ट वापस लौट आराम करने की तो उन्हें भी जल्दी थी, इसलिए पाकिस्तानी गेन्दबाज़ों को अपने विकेट उपहार स्वरूप प्रदान कर वे भी वापस लौटने लगे। दूसरे दिन के अंत तक सभी निपट लिए थे। तो यानि कि तीन दिन बचे रहे और दो पारियाँ, यानि कि यदि कुछ असाधारण न हो तो खेल का निर्णय पक्का था।

दूसरी पारी में पाकिस्तानी न जाने कौन सी घुट्टी पी आए कि आऊट होने का नाम ही नहीं ले रहे। सब के सब पचास पचास रन ठोक कर जा रहे थे। और यह तो कमाल ही हो गया, सात बल्लेबाज़ों ने अर्धशतक बना एक नया कीर्तीमान खड़ा कर दिया और ६०७ रन का लक्ष्य भारत के सामने रखा। कोच साहब, श्रीमान ग्रेग चैपल को कदाचित् मैं कभी न समझ पाऊँ, वे ऐसे क्षण में भी मसखरी करने से बाज़ नही आए और कहते फ़िर रहे थे कि मैच अभी भी भारत की पकड़ में है। 🙄 उन्हें कितना समय हो गया भारतीय टीम के साथ, फ़िर भी उन्हें समझ नहीं आया कि भारतीय टीम से ऐसी आशा करना कि वे दो दिन तक बल्लेबाज़ी करके मैच ड्रॉ करा लेगी, एक तरह से यूँ आशा करना है कि केन्या अगला विश्वकप जीत लेगी!! 😉 आप भारतीय बल्लेबाज़ों से अति आशावादी रूप में यह आशा तो कर सकते हैं कि वे ५०० से ज्यादा या फ़िर ६०७ रन का ही लक्ष्य प्राप्त कर लेंगे, परन्तु यह आशा करना बेकार है कि वे दो दिन तक डटे रहेंगे।

बहरहाल, यहाँ तक तो सभी अटकलें थीं, पर जो हो रहा है उसकी मुझे कतई आशा नहीं थी, जब पाकिस्तानी बल्लेबाज़ों को खेलते देखा तो सोचा कि अपने रणबाँकुरे भी कुछ न कुछ कमाल तो दिखा ही देंगे, पर वे तो चढ़ आई नदी के वेग में तिनकों की तरह बहते जा रहे हैं। यदि युवराज ने एक ओर से मामला न संभाला होता तो अब तक तो २०० से कम में ही काम निपट लिया होता!! 🙄

और लो, आखिरकार काम हो गया, भैंस गई पानी में, भारतीय डंडियाँ गिर ही गई। युवराज अकेले ही लड़ाई की कमान संभाले हुए रन ठोके जा रहा था पर आखिरकार रज़ाक ने उसे भी अपने लपेटे में ले ही लिया!! पाकिस्तानी शिविर में हर्ष की लहर दौड़ ही गई, भई केवल मैच थोड़े ही जीता है, पूरी कि पूरी शृंखला जीत ली है, वह भी १९ साल बाद!! और मैच भी ऐसे वैसे नहीं जीता है, पूरी तरह कालिख पोत कर ३४१ रनों से जीता है। हाँ तो कोच साहब, आप कुछ कह रहे थे मैच भारत की जेब में होने के बारे में? अब आप क्या दिखाने वाले हैं, उँगली दिखाईएगा या फ़िर कुछ और? 🙄 मेरी माने तो पाकिस्तान में पाकिस्तानियों को कुछ मत दिखाईएगा, भारत में जितना बवाल मचा था उसका स्वाद तो आप जानते ही हैं, यहाँ उससे भी गर्म शोरबा आपकी भेंट हो लेगा!! 🙄

इधर उधर विचरण करते हुए मुझे मिली यह कड़ी जहाँ पर कोलकाता और कराची के बीच सामान्यताएँ बताई गईं हैं। जिस तरह कोलकाता में क्रिकेट के प्रति दीवानापन है, वही हाल कराची में है, परन्तु दोनो टीमों का इतिहास इन जगहों पर अलग अलग है। जहाँ भारत ने कोलकाता में ३४ मैच खेल ८ जीते और ८ हारे हैं, वहीं पाकिस्तान ने कराची में ३७ मैच खेल १९ जीते और केवल १ मैच हारा है!! आखिरी बार कोलकाता में जब भारत पाकिस्तान का आमना सामना हुआ था तो भारतीय गेंदबाज़ों ने पहली पारी में पाकिस्तान के ६ विकेट २६ रनों के योग पर उड़ा कर पानी पिला दिया था, परन्तु मैच पर काबिज़ होने की बजाय उसे हार गए थे। अब इस संयोग को क्या कहें कि यहाँ कराची में भी पहली पारी में अपने गेंदबाज़ों ने पाकिस्तान के ६ विकेट ३९ रनों पर गिरा हालत पतली कर दी थी, पर अंत-पंत धोती तो अपनी ही ढीली हो गई!! 🙁

और अभी अभी रमीज़ राजा ने घोषणा की कि कल कराची में इस बड़ी जीत की खुशी में आतिशबाज़ियाँ की जाएँगी, अपनी भाषा में कहा जाए तो दीवाली मनाई जाएगी भई!! 😉

अब देखें कि एक दिवसीय खेलों में कितनी बुरी तरह से हारते हैं!!