यह कोई आज का विवाद नहीं है, यह बरसों शताब्दियों पुराना विवाद है। लड़कियां बढ़िया हैं या लड़के महान हैं, इस विवाद का कोई अंत नहीं।

ऐसे समय पर बहुत खीज होती है। मन में आता है कि पुरूष-स्त्री की जगह ब्रह्मा जी को फ़ीनिक्स बनाने चाहिए थे जिससे कि लैंगिकवाद का सारा पचड़ा ही समाप्त हो जाता, क्योंकि फ़ीनिक्स में कोई लिंग की समस्या नहीं होती तथा वह स्वयंमेव ही अपने आप को उत्पन्न करता है।

लड़कियों में प्रशंसा की क्षुधा होती हैं, वे चाहती हैं कि वे कोई भी कार्य करें, विपरीत लिंग को उसकी प्रशंसा अवश्य करनी चाहिए, चाहे जो कार्य किया गया है वह करना उनका कर्तव्य हो। परन्तु पुरूषों में इसकी लालसा नहीं होती, वे नहीं कहते कि उनके किए किसी कार्य के लिए स्त्रियों को उनकी प्रशंसा करनी चाहिए, विवाद तब खड़ा होता है जब स्त्रियाँ अपने द्वारा सम्पन्न कार्य गिनाना आरम्भ करती हैं। क्यों भई, अपना कर्म करने के उपरांत प्रशंसा की लालसा कैसी? क्या कोई भी कार्य प्रशंसा प्राप्ति के लिए किया जाता है? बस इसी के साथ आरम्भ हो जाता है “कौन है सर्वश्रेष्ठ” महा विवाद। वे यह नहीं समझती कि अपने आप में न तो स्त्रियाँ सम्पूर्ण हैं और न ही पुरूष। दोनो को ही एक दूसरे ही आवश्यकता पड़ती है क्योंकि वे दोनों ही एक दूसरे के पूरक हैं, यही प्रकृति का नियम है।

अब मैं और कुछ नहीं लिखता, यह विषय बहुत ही शीघ्रग्राही है!! 😉