मैंने कुछ दिन पहले, वाल्ट डिज़नी द्वारा प्रस्तुत, सी.एस.लुईस के लिखे उपन्यास पर बनी इस फ़िल्म, “द क्रानिकल्स आफ़ नारनिया – द लायन, द विच एण्ड द वार्डरोब“, का ज़िक्र किया था। तब यह फ़िल्म यहाँ भारत में रिलीज़ नहीं हुई थी, और मात्र इसका ट्रेलर देखने के बाद ही मैंने कह दिया था कि यह फ़िल्म वाकई में देखने वाली होगी। पर तब कदाचित् मैं गलत था, यह फ़िल्म बढ़िया नहीं बल्कि बहुत बहुत बढ़िया है। कल इस फ़िल्म को देखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ, और यह फ़िल्म वाकई अदभुद है, यह कैसी है, वह तो जो इसको देख ले वही जान सकता है, कम से कम मैं तो इसे शब्दों में व्यक्त नहीं कर पा रहा हूँ। लार्ड आफ़ द रिंग्स के बाद यह पहली फ़िल्म है जो कि उतनी ही बढ़िया लगी।

पहले अर्ध भाग में फ़िल्म एक सामान्य फ़िल्म की तरह चलती रहती है, जिसमें पहले तो पीटर, सूसन तो लूसी की बातों पर विश्वास नहीं करते और एडमंड अपने राजा बनने के लालच के कारण(जो उसे जादूगरनी ने दिया था) लूसी को झूठा ठहराता है। लूसी रो देती है और इसी समय फ़िल्म में प्रवेश होता है कहानी के एक महत्वपूर्ण किरदार “प्रोफ़ेसर” का, जो कि पीटर और सूसन को अपनी बहन लूसी पर विश्वास करने की सलाह देते हैं। चारो बच्चे आखिरकार एक साथ अलमारी में प्रवेश कर जाते हैं और इसी के साथ कहानी में नया मोड़ आ जाता है, क्योंकि वे सभी पहुँच जाते हैं नारनिया की जादुई दुनिया में। उनकी मुलाकात होती है बीवर से, परन्तु अपने लालच के हाथों विवश एडमंड उन्हें धोखा देता है और चल देता है जादूगरनी के पास। बीवर बाकी तीन बच्चों को लेकर चल पड़ता है आसलान के पास, मार्ग में भेंट होती है सान्ता क्लाज़ से जो कि उपहार स्वरूप लूसी को कोई भी चोट तुरन्त ठीक कर देने की क्षमता रखने वाला फ़ायरफ़्लावर का रस देते हैं। सूसन को मिलता है एक जादुई कमान और तीरों से भरा तरकश, और एक हॉर्न जिसे फूँकने पर वह कहीं भी हो उसे सहायता अवश्य प्राप्त होगी। पीटर को सान्ता देते हैं एक चमचमाती तलवार और ढाल।

दूसरे अर्ध भाग में फ़िल्म की असली कहानी शुरू होती है, और जो कि बिना पलक झपकाए देखने वाली है। आसलान एडमंड को जादूगरनी के शिकंजे से छुड़वा लेता है, परन्तु इसका मूल्य उसे अपने जीवन से चुकाना पड़ता है। तो क्या आसलान मर जाता है? सोचा तो मैंने भी ऐसा ही था, परन्तु कुछ हो जाता है जिसकी मुझे अपेक्षा नहीं थी। ऐसा क्या होता है, जानने के लिए आपको फ़िल्म देख लेनी चाहिए। 🙂 एडमंड का स्वभाव बिलकुल ही बदल जाता है, अब वह बिलकुल ऐसा बर्ताव कर रहा होता है जैसा कि एक आदर्श नायक को करना चाहिए। पीटर जादूगरनी के विरूद्ध सेना का नेतृत्व करता है, एडमंड उसका जादुई दण्ड तोड़ देता है परन्तु जादुगरनी उसे भी मौत के मुँह में ढकेल देती है। पीटर और जादुगरनी का द्वंद्व देखने वाला है, ट्राय में हुए अकिलीस और हेक्टर के द्वंद्व जितना रोचक तो नहीं, परन्तु फ़िर भी देखने योग्य। अंत में जादुगरनी मर जाती है जब वह पीटर को मारने जा रही होती है, परन्तु उसे पीटर या अन्य तीन बच्चों में से कोई नहीं मारता। तो कौन मारता है? यह मैं नहीं बताउँगा!! 😉

लूसी एडमंड को सान्ता द्वारा दिए गए जादुई रस से ठीक कर देती है, और चारों बच्चे चार दिशाओं के राजा और रानी बन जाते हैं, चार सिंहासनों वाले दुर्ग में उनका राज्याभिषेक होता है। समय के साथ बच्चे युवा हो जाते हैं और एक दिन जंगल में क्रीड़ा करते हुए उन्हें अचानक अलमारी में वापस जाने का मार्ग मिल जाता है, वे वापस अपनी दुनिया में पहुँचते हैं, और ठीक उसी समय में पहुँचते हैं जिस समय वे गए थे, यानि के वापस उसी उम्र के बच्चे बन जाते हैं। 🙂 यहीं पर उनकी भेंट पुनः होती है “प्रोफ़ेसर” से। “प्रोफ़ेसर” कुछ न कुछ हैं, जितने दिखते हैं उससे अधिक हैं और मैंने ऐसा सुना है कि आगे की कहानी में उनका और सक्रिय किरदार है, क्योंकि कहानी यहीं समाप्त नहीं हो जाती, नारनिया की कहानी ७ उपन्यासों में बन्द है, और यह तो मात्र पहले उपन्यास की ही कहानी थी। तो आशा है कि बाकी के उपन्यासों पर भी फ़िल्में बनेंगी और इतनी ही(या इससे भी अधिक) बढ़िया बनेंगी। 🙂

पूरी फ़िल्म में चलचित्रकला बहुत अच्छी है, स्पेशल इफ़ेक्ट बहुत अच्छी तरह से दिए गए हैं। मुझे इसमें लूसी का किरदार बेहद पसन्द आया, और उसकी भूमिका में जार्जी हेनले तथा पीटर की भूमिका में विलियम मोज़ले का अभिनय बहुत अच्छा लगा। स्टार वार्स का पहला एपिसोड और बैटमैन बिगिन्स जिसने देखी है वे निश्चित रूप से आसलान के किरदार की आवाज़ को लिआम नीसन की आवाज़ के रूप में पहचान लेंगे, अफ़सोस इस बात का है कि लिआम नीसन की आवाज़ के अलावा इस फ़िल्म में उनका और कोई किरदार नहीं, उनका अभिनय देखने वाला होता। 🙂 ऐन्ड्रियू ऐडमसन ने बहुत अच्छा निर्देशन किया है, कहानी बेशक बहुत अच्छी है, परन्तु यदि उसे चित्रित और निर्देशित करने की समझ और हुनर न हो तो अच्छी खासी कहानी का सत्यानाश हो जाता है, हैरी पॉटर की सभी फ़िल्में इसका बेहतरीन उदाहरण हैं। मुझे बड़ा आश्चर्य होगा यदि इस फ़िल्म का आस्कर पुरस्कारों में नामांकन नहीं आता है। और हैरी पॉटर फ़िल्मों के निर्माताओं को इस फ़िल्म से सीखना चाहिए कि फ़िल्म का बढ़िया होना केवल लोकप्रिय कहानी होने से ही तय नहीं हो जाता। अभी कम से कम तीन फ़िल्में हैरी पॉटर शृंखला में आनी और बाकी हैं, जिनमें से एक तो कदाचित् लगभग बन चुकी है या बननी आरम्भ हो चुकी है, परन्तु फ़िर भी, यदि वे आने वाली अन्य दो फ़िल्मों का भी सत्यानाश पिटने से बचा लेते हैं(जैसी कि मुझे कदापि आशा नहीं है) तो यह अपने आप में एक कीर्तीमान होगा। पाँचवीं फ़िल्म के तो अभी आने में लगभग ११ महीनों का समय है, परन्तु पिछली चार फ़िल्मों को देखते हुए मैं यही कहूँगा कि मुझे कोई आशा नहीं है। इन फ़िल्मों को किसी योग्य व्यक्ति को दोबारा बनाना चाहिए, जो कि निकट भविष्य में मुझे होता नज़र नहीं आ रहा। हैरी पॉटर के प्रति बच्चों में दीवानगी के कारण ही ये फ़िल्में सिनेमाघरों में लगी रहती हैं वरना इन्हें कोई न देखने जाए।

बहरहाल, मैं तो यही कहूँगा कि नारनिया के इतिहास पर बनी यह पहली फ़िल्म वाकई बहुत बहुत अच्छी है, जिसे भी अच्छी फ़िल्में देखना पसन्द है, उसे तो यह अवश्य देखनी चाहिए। और मैं तो चला नारनिया की कहानी के सारे उपन्यास लेने, क्योंकि सस्पेंस मुझसे और बर्दाश्त नहीं हो रहा और मैं जानने के लिए उत्सुक हूँ कि “प्रोफ़ेसर” असलियत में कौन हैं और नारनिया का अंत कैसे होता है। जी हाँ, सातवें और अंतिम उपन्यास में नारनिया का अंत हो जाता है और चारों बच्चों की भी मृत्यु हो जाती है। लेकिन यह कोई कारण नहीं एक अच्छी फ़िल्म और कहानी की प्रशंसा न करने का। 🙂