हाँ, तो पिछली बार एक कहानी प्रस्तुत की और पूछा कि “दोषी कौन है”। अब कुछ बंधुओं ने उत्तर देने का प्रयास किया, लेकिन बहुत से उत्तर देने से कतरा गए। काहे? अब यह तो मुझे नहीं पता, उन्हीं से पूछा जाए तो बताएँगे ना!! 😉 बहरहाल, उत्तर हम बताए देते हैं कि दोषी कौन है, लेकिन कुछ डिटेल आदि देना इस विषय में आवश्यक है। तो पहले कहानी में मौजूद या चर्चित पात्रों को एनालाइज़ कर लिया जाए!! 😉

इंद्र देव: अजी ये तो दोषी हो ही नहीं सकते, कैसे हो सकते हैं, इनकी तो कहानी में कोई भूमिका ही नहीं है, सिर्फ़ ज़िक्र मात्र है वो भी अंत में ब्राह्मण द्वारा, और कोई जादू मंतर की कहानी मैंने सुनाई नहीं(जानने वाले जानते हैं कि अपने को ऐसी वाहियात बातों पर विश्वास भी नहीं)। तो इसलिए इंद्र देव को बाइज़्ज़त बरी किया जाता है।

रखवाला: अब दोषी तो यह भी नहीं। कोई एक ही काम थोड़े ही है उसको कि चौबीसों घंटे गाय के सिरहाने रहे!! वह बाग़ का भी रखवाला है और फ़िर और भी कई काम है, अब बच्चे की जान लोगे क्या!! 😉 गाय के घूमने फ़िरने का समय होगा, इसलिए भी हो सकता है कि उसको खुला छोड़ दिया हो, इसलिए इस पर भी कोई मुकदमा नहीं बनता, इसलिए इसको भी बाइज़्ज़त बरी किया जाता है।

गाय: अब गाय पूरी तरह तंदरूस्त थी, कोई गुप्त रोग आदि भी नहीं था उसको, पोस्टमॉर्टम में यह साबित हो गया, और इसका तो मर्डर….. बोले तो खून हुआ था तो यह तो दोषी हो ही नहीं सकती।

ब्राह्मण: इतनी बेदर्दी से तो गाय को पीटा, मरेगी नहीं तो क्या अमर हो जाएगी?? यही दोषी है।

अब भाई लोगों ने सोचा कि यार इतनी आसान सी कहानी और कोई गुत्थी भी नहीं, ऐसा कैसे हो सकता है। लगता है कि सीआईडी, डॉन आदि सीरियल देख सभी का दिमाग जासूसी हो गया है, सीधे साधे मामले में भी कोई टेढ़ा मोड़ निकालने की सोचते हैं। अरे भई कहानी और प्रश्न सीधे थे और उत्तर भी सीधा ही था/है, ब्राह्मण ही दोषी। 😉

लेकिन आप सोचते हैं कि इसके पीछे क्या मकसद? तो यार मकसद हम पैदा किए देते हैं। अब आप कहानी, उसके दृश्य और उसके पात्रों का अवलोकन कीजिए। ब्राह्मण है हमारी सरकार मशीनरी जो काफ़ी दूर से चली आ रही है(भई लगभग साठ सालों से चली आ रही है) और अभी काफ़ी आगे जाना है(हम तो समझते हैं कि अभी काफ़ी आगे जाना है, आप अलग सोचते हों तो जुदा बात है)। गाय है जनता, बहुत भोली है, कोई कितना भी शोषण करे, कुछ नहीं कहती, कोई मार मार के जान ले ले तब भी नहीं। रखवाला है कानून व्यवस्था, या कह सकते हैं कि उच्च तथा मुख्य न्यायालय जिसके “डील-डौल”(ताकत) को देख ब्राह्मण(सरकारी मशीनरी) भी काँपे!! अब इंद्र कौन है? इंद्र हैं बहुराष्ट्रीय(देशी और विदेशी) धनाढ्य कंपनियाँ जो कि ठीक इंद्र की भांति संपन्न हैं, विलासिता में डूबी रहती हैं और जिनका सिंहासन बहुत जल्दी हिलता है!! 😉

यदि अभी भी समझ नहीं आया तो बताता हूँ, दरअसल कहानी पूरी कि पूरी अन्योक्ति अलंकार के रस में डूबी(“नहाई” कहना ठीक नहीं) हुई थी। अब पात्रों पर से नक़ाब हटाने के बाद आपको समझ आ गया होगा कि कहानी वास्तव में कौन सी तस्वीर दिखा रही थी। पर कुछ लोगों का अन्योक्ति अलंकार से पहले कभी वास्ता नहीं पड़ा, वे दूसरे की कही/लिखी हर चीज़ face value पर लेते हैं, शब्दों का आक्षरिक अर्थ यानि कि literal meaning लेते हैं और मज़े की बात है कि कविता भी कर लेते हैं। अब कवि होना और अलंकारों से अनभिज्ञता, बात हज़म नहीं होती कदाचित्‌ हाजमोला लेनी ही होगी!! 😉 अब मैंने ऐसा क्यों कहा? अरे भई कुछ नहीं, किसी पर कोई कटाक्ष नहीं है। वो बात दरअसल यूँ है कि पिछली बार जब मैंने एक प्रोफ़ेसर साहब के एक वाहियात लेख का तीया-पाँच किया था तो संपन्न लोगों की ओर इशारा करते हुए राजबालकों और राजपरिवार का उदाहरण दिया था जो कि अन्योक्ति अलंकार ही था निश्चित रूप से। अब इन साहब को कुछ और नहीं मिला तो मुझ पर व्यंग्य कसने लगे कि एक लोकतंत्र का वासी हो मैं राजतंत्र की वकालत कर रहा हूँ। तब मुझे एहसास हुआ कि जब लिख रहे हो तो बता तो कहाँ कौन सा अलंकार प्रयोग किया है, अतिश्योक्ति आदि तो खैर अधिकतर को समझ आ ही जाता है, अन्योक्ति के बारे में बता देना ही ठीक है, वरना खामखा लोग अपना और मेरा और दूसरों का समय बर्बाद करें, उसका कोई लाभ नहीं, भई आखिर कभी चाणक्य ने कहा था:

जीवन का एक क्षण सौ करोड़ स्वर्ण मुद्राएँ देने पर भी नहीं खरीदा जा सकता

जो कि शत-प्रतिशत सही है, इसलिए काहे किसी का समय बर्बाद करो, दिमाग पर ज़ोर डलवाओ, इसलिए बता दिया अभी कि कहानी में अन्योक्ति अलंकार था।

तो यह तो मैंने कहानी के अंत में पूछे गए प्रश्न का उत्तर दे जिज्ञासु जनों की जिज्ञासा को शांत किया। लेकिन मुद्दे की बात अभी बाकी है। परन्तु अब सुबह हो आई है, समय नहीं है, इसलिए इसको अगली बार ज़ारी रखेंगे। 🙂