सावधान:- इस पोस्ट में मेरे विचार कई जगहों पर कुछ उग्र भाषा में दिए गए हैं जो कि संभव है कई लोगों को पसंद न आएँ, हालांकि मैंने किसी अश्लील भाषा का प्रयोग नहीं किया है। इसलिए यदि आगे पढ़ना है तो इस बात को स्वीकार कर पढ़ें कि मैं अपनी उग्र भाषा और लहज़े के प्रति कोई बेकार की टिप्पणी नहीं स्वीकार करूँगा, यदि आपको सभ्यता का पाठ पढ़ाने का शौक है तो कहीं और जाईये!!
कहते हैं हर कुत्ते के दिन आते हैं, यदि अच्छे दिन हैं तो बुरे भी आएँगे, पर किसी के इतने भी बुरे दिन आ सकते हैं कि जिस व्यक्ति ने राष्ट्र की प्रतिष्ठा बढ़ाई, आज उसी के साथ गली के कुत्ते की तरह व्यवहार किया जा रहा है?
मैं बात कर रहा हूँ “महाराज” की, भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व और अभी तक के सर्वश्रेष्ठ तथा सर्वाधिक सफ़लता प्राप्त और कपिल देव के अलावा विश्वकप के फ़ाईनल में जाने वाले एकमात्र भारतीय कप्तान, सौरव गांगुली की। पहले बेईज्ज़त कर टीम की कप्तानी छीनी, फिर टीम से निकाला, वापस बुलाया फिर निकाला और फिर वापस रखा, यानि कि बात बात पर एहसास दिलाया कि उनकी औकात अब एक नए रंगरूट से भी गई गुज़री है। और अब जो कसर बाकी थी, वह पूरी कर दी पाकिस्तान में एक दिवसीय मैचों में खेलने वाली टीम से निकाल कर। किस आधार पर सौरव को निकाला गया है, यह अभी तक चयनकर्ताओं ने स्पष्ट नहीं किया है। आम धारणा यही है कि “दादा” को खुंदक के चलते लात मारी गई है, क्योंकि यदि चयनकर्ता अपनी उसी बकवास को दोहराते हैं कि सौरव गांगुली के खराब प्रदर्शन के चलते उन्हें निकाला है, तो उन्हें इतना तो बताना चाहिए कि और किस किस को वे निकाल रहे हैं, क्योंकि अभी तक के तीनों टैस्ट मैचों में एकाध खिलाड़ी को छोड़ किसी ने कोई खास प्रदर्शन नहीं किया है। यहाँ तक की हमारे कप्तान साहब राहुल द्रविड़ की अंबुजा सीमेंट सी मज़बूत दीवार भी पाकिस्तानी गेंदबाज़ों के तूफ़ानी वेग में ढह गई!! तो क्या पुनः एक नए कप्तान के स्वागत के लिए हमें तैयार रहना चाहिए? और यदि चयनकर्ता यह बकवास करने पर आते हैं कि बाकी खिलाड़ियों को उनके पिछले बढ़िया रिकार्ड को देखते हुए मौका दिया जा रहा है तो कोई मुझे बताए कि एक दिवसीय मुकाबलों में दस हज़ार से अधिक रन बनाने वाले, सचिन के बाद सर्वाधिक सैकड़े ठोकने वाले भारतीय और सबसे अधिक सफ़ल भारतीय कप्तान को यह मौका क्यों नहीं दिया गया? दस हज़ार रन बनाना कोई हंसी खेल नहीं है, और यदि है तो हमारे मौजूदा कप्तान ने क्यों नहीं बना लिए?
देखने वाले और जानने वाले जानते हैं कि यह सब विदेशी चमड़ी का काम है। कोच ग्रेग चैपल की तो चप्पलों से पूजा की जानी चाहिए, लगता है कि वह यहाँ भारतीय टीम को सुधारने नहीं आए, बल्कि उसका सत्यानाश करने आए हैं, या फ़िर यह कहा जाए कि भेजे गए हैं। और इसके पीछे किसका हाथ हो सकता है आस्ट्रेलिया के सिवाय? मन में यह शंका तो आती ही है कि कहीं ग्रेग चैपल भारतीय टीम के लिए डिमोलीशन मैन तो नहीं होने वाले जिस तरह दिल्ली में गैरकानूनी निर्माणों के लिए शीला दीक्षित डिमोलीशन वूमन बनीं हुई है!! कहीं यह सौरव के नेतृत्व में आस्ट्रेलिया को चटाई धूल का प्रतिकार तो नहीं?
और “दादा” के पक्ष में बोलने वालों की अब भी कोई कमी नहीं है और अब वे पक्षधर केवल बंगाल तक ही सीमित नहीं हैं। जहाँ एक ओर सिद्धु अपना रोष प्रकट कर रहे हैं, वहीं पूर्व कप्तान और विश्वकप विजेता कपिल देव ने भी अपना असंतोष ज़ाहिर किया है। सौरव को इस तरह नचाया जा रहा है कि जिससे उन्हें अपना अच्छा प्रदर्शन करने का मौका ही न मिले, ताकि खराब प्रदर्शन का जूता उनके सर मारकर उन्हें टीम से आसानी से निकाल दिया जाए। यदि ऐसा नहीं है तो क्यों सौरव को फ़ैसलाबाद में खेले गए दूसरे टैस्ट में नहीं खिलाया गया जहाँ पर पिच बल्लेबाज़ी के लिए एकदम उपयुक्त थी? कदाचित् इसलिए क्योंकि कोच के मन में चोर था कि कहीं सौरव ने फ़ैसलाबाद में रन ठोक दिए तो उसके किए कराए पर पानी फ़िर जाएगा, और फ़िर सौरव को टीम से निकालना दुष्वर हो जाएगा।
साथ ही यह आशंका भी मन को घेरती है कि अगला नंबर किसका लगने वाला है? अफ़वाह है कि सौरव के बाद अब चमगादड़ कोच की निगाह सचिन पर है। सचिन भी पिछले कुछ समय से फ़ार्म में नहीं है, तो क्या अगला नंबर सचिन का है? सौरव के टीम से निकाले जाने पर इतना बवाल उठा है, सचिन के निकाले जाने पर तो मेरा मानना है कि हल्ला ही मच जाएगा, क्योंकि यदि क्रिकेट धर्म है तो सचिन उसका भगवान है, यदि क्रिकेट कोई शरीर है तो सचिन उसमें धड़कता दिल है। ग्रेग चैपल के अनुसार हर व्यक्ति को एक ही लाठी से हांकना चाहिए। उसके अनुसार खराब फ़ार्म में चल रहे सचिन और एक रंगरूट में कोई अंतर नहीं किया जाना चाहिए। 🙄 भौंकने वाले तो भौंकते ही हैं और अब तो जैसे उन्हें “लाईसेन्स टू बार्क” मिल गया हो, कुछ गली के आवारा कुत्तों ने पुन: भौंकना चालू कर दिया है कि इतिहास में अभी तक का सबसे अधिक सफ़ल और बढ़िया बल्लेबाज़ सचिन तेन्दुलकर अब किसी काम का नहीं रहा, उसे क्रिकेट खेलना छोड़ देना चाहिए!! 🙄 तो हम कहेंगे कि जब हमने “लाईसेन्स टू किल” वाले को कोई भाव नहीं दिया तो “लाईसेन्स टू बार्क” वालों की क्या औकात है!!
कुछ समझदार लोगों का यह भी मानना है कि हाल ही में क्रिकेट बोर्ड में हुए तख़्ता पलट और शरद पवार के माफ़िया शासन के आने से भी सौरव की कुन्डली में शनि का प्रवेश हो गया है। जो लोग जंगल में न रह रहे हों और क्रिकेट के बारे में रूचि रखते हों, वे जानते होंगे कि सौरव पर भिखमंगी अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट काउंसिल को सोने से नहला देने वाले पूर्व अध्यक्ष जगमोहन डालमिया की कृपा थी, और शरद पवार लंबे अरसे से डालमिया के प्रतिद्वंद्वी रहे हैं, तो इसलिए सौरव के लिए तो मानों यह “कोढ़ में खाज” वाली स्थिती हो गई है।
क्रिकेट बोर्ड को अब आम जनता के प्रति उत्तरदायी होना चाहिए, यह कोई प्राईवेट कंपनी नहीं कि जिसका हर फ़ैसला लोगों पर थोपा जा सके। इन लोगों का धंधा जनता की बदौलत चलता है, यदि लोग मैचों की टिकट खरीदना बंद कर दें और क्रिकेट का बॉयकाट करें तो इनकी दुकान बंद हो जाएगी, स्पॉन्सर इनको लात मार देंगे, इनके नवाबी शौक तबाह हो जाएँगे और ये लोग फ़िर पाँच-सात सितारा होटलों के वातानुकूलित कॉन्फ़रेंस हॉलों में बैठ गप्पें न मार सकेंगे। इस खेल पर पूरा राष्ट्र मरता है, तो इसको नियंत्रित करने वाली मशीनरी को जनता को जवाबदेह होना चाहिए।
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