प्यार(प्रेम), इश्क, मोहब्बत …..
सुनने में बहुत अच्छे लगते हैं, ये पर्यायवाची शब्द ऐसे हैं जिनके बारे में प्रत्येक व्यक्ति सोचता है कि वह इनका अर्थ जानता है। पर क्या वास्तव में ऐसा है? कदाचित् नहीं!! ऐसा इसलिए है कि है कि इसका अर्थ न तो सरल है और न ही स्थिर(निश्चित) है। प्रत्येक व्यक्ति के विचार एक से नहीं होते, तो इसी तरह इसका अर्थ भी प्रत्येक व्यक्ति की निगाह में अलग अलग होता है। ठीक इसी प्रकार जीवन के प्रति हर व्यक्ति का दृष्टिकोण भी अलग अलग होता है, और इसी से उनके बाकी के निर्णय भी प्रभावित होते हैं।

लेकिन अधिकतर प्रत्येक व्यक्ति यही सोच बैठा होता है कि जो उसे मालूम है, वही सही है, दूसरा व्यक्ति यदि कुछ अलग सोचता है तो वह गलत है। जबकि ऐसा कदापि नहीं है, दूसरा व्यक्ति सही भी हो सकता है और नहीं भी। अब कई लोग सोचते हैं कि एक ही सच्चा प्यार होता है, एक ही जीवनसाथी होना चाहिए, यह वास्तव में उस वातावरण का प्रभाव है जिसमें एक आम भारतीय की परवरिश होती है। तो इसलिए इस नज़रिए को मैं रूढ़िवाद का नाम तो नहीं दूँगा, बस यही कहूँगा कि प्रत्येक व्यक्ति अपना निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र है। यदि उसे बार बार प्रेम होता है और वह सोचता है कि प्रत्येक वाक्या सच्चा प्रेम है तो हो सकता है कि कदाचित् वह सही हो, इसमें किसी और को अपने विचार थोपने की क्या आवश्यकता है? अभी हाल ही में अल्का ने एक समाचार पत्रिका में छपे एक लेख पर अपने विचार प्रकट करते हुए अपनी असहमति व असंतोष जताया था। यह एक ऐसे व्यक्ति के बारे में था जिसका अभी हाल ही में अपनी पत्नी से तलाक हुआ था और उसके कुछ ही दिन बाद वह व्यक्ति किसी और लड़की के प्रेम सागर में गोते लगा रहा था। अब जहाँ तक मैं समझा, अल्का का कहना था कि अभी अभी समां टूटा है, उस व्यक्ति को कुछ विचार करना चाहिए था कि ऐसा क्या हुआ कि जो उसका तलाक हुआ, लेकिन वह इतना निराशोन्मत है कि तुरन्त ही दूसरा आशियाना खोज लिया। क्या हम वाकई इतने कमज़ोर हो गए है कि हमें हर समय किसी न किसी का साथ चाहिए?

तो इस पर मेरी टिप्पणी थी कि भई यह उसका व्यक्तिगत मामला है, और मैं नहीं समझता कि हमें कोई टिप्पणी आदि करनी चाहिए। क्या हमें यही काम रह गया है कि दूसरे व्यक्तियों के प्रेम प्रसंगों पर टिप्पणी आदि करते रहें, यहाँ अपने मामले तो सुलटते नहीं, दूसरों के फटे में बेवजह अपनी टाँग फ़ंसा दे!! कदाचित् अल्का कोई मेरी टिप्पणी बुरी लग गई, उनके अगले उत्तर से तो यही प्रतीत हुआ। बहरहाल, भई, अपन तो ऐसे ही हैं। दूसरे का प्रेम या वैवाहिक जीवन कैसा जा रहा है, क्या कठिनाईयाँ आ रही हैं आदि में कोई दिलचस्पी नहीं है, कभी यार-दोस्त ऐसी बेवजह की बातें करनी शुरू भी कर देते हैं तो मैं तो कोई उत्तर न देना ही बेहतर समझता हूँ। भई, हमें क्या सरोकार, कोई किसी से प्रेम करता है कि नहीं, आखिर वह लड़की भी तो मूर्ख नहीं है, थोड़ी बहुत समझ तो उसे भी होगी ही, और वह अपनी इच्छा से उस व्यक्ति के साथ है, तो फ़िर किसी को क्या आपत्ति है?

पर क्या करें, हम लोगों की यही तो खास बात है, कि अपना कार्य बेशक अधूरा पड़ा रहे, आस पड़ोस की बेकार की बातों की जानकारी अवश्य रखनी होती है, किसी ऐसे अंतरंग मामले की तो खासतौर से। अभी कुछ दिन पहले की ही बात है, यार लोगों को पता नहीं क्या सनक चढ़ी, पड़ोस की एक लड़की की ही बात करने लगे। बात २-३ वर्ष पूर्व की है, उसका पड़ोस के एक लड़के के साथ नैन-मटक्का चल रहा था। बात इतनी बढ़ गई कि उन दोनों ने एक रात्रि सारी सीमाएँ पार कर डाली, उस लड़की के घर की छत पर सब कुछ हो गया और अगले दिन वहाँ एक खून लगी चादर और कुछ शिश्नावेष्टन गर्भ निरोधक मिले। लड़की की माताजी को इस बारे में पता चल गया और उन्होंने लड़के के घर जा बवाल मचा दिया। तत्पश्चात लड़के की माताजी ने अपने सुपुत्र को खूब लताड़ा और घर से निकाल दिया(कुछ दिन वह अपने किसी मित्र के यहाँ रहा, फ़िर वापस आ गया)।

अब बात आती है कि लोगों को तो मसाला मिल गया टाईमपास करने के लिए। कुछ का कहना है कि उस लड़की को एक बार गर्भपात कराना पड़ा, कुछ का कहना है कि दो बार कराना पड़ा। अरे भई, एक बार कराए कि दो बार, किसी को क्या लेना? मैं तो यह समझता हूँ कि लड़की की माताजी को भी ऐसे बेकाबू हो लड़के को लताड़ने नहीं पहुँच जाना चाहिए था। भई इसमें लड़के की क्या गलती? उसने कोई ज़ोर-जबरदस्ती या बलात्कार तो नहीं किया, लड़की उस कर्म में बराबर की भागीदार है, जो कुछ हुआ उसकी सहमति से हुआ। तो लड़के का दोष क्यों? वैसे भी लड़की लगभग १६ वर्ष की थी और लड़का करीब १७ वर्ष का, तो वे इतने भी नासमझ तो नहीं कि उन्हें ज्ञात ही नहीं कि वे क्या कर रहें हैं, और न ही भावनाओं में बहकर उन्होंने ऐसा कुछ किया। थोड़ी सी भी बुद्धि रखने वाला यह बता सकता था कि जो हुआ वह पूर्व निर्धारित था। लड़की की माताजी कहती थी कि उनकी लड़की को बहकाया गया, वह तो बहुत सीधी साधी है। पर जानने वाले तो कुछ और ही जानते हैं। मैंने अभी तक असल जीवन में ऐसी कोई लड़की न देखी जो इतने कम कपड़े पहनती हो, खुलेआम छत पर अपने बॉयफ़्रेन्ड को फ़्रेन्च किस करती हो। लड़की वाकई सीधी थी। 😉

पर असल बात से तो हम भटक गए। हाँ, तो बात यह थी कि लोगों को तमाशा देखने की ऐसी भी क्या लालसा होती है? क्या उस लड़की को उस लड़के से प्यार था(है)? क्या वह लड़का उस लड़की से प्रेम करता था(है)? यह तो केवल वे दोनों ही जाने, परन्तु इससे किसी और को क्या फ़र्क पड़ता है? दुनिया में करोडों पुरूष और स्त्रियाँ हैं, सभी के लफ़ड़ों की चिन्ता करने बैठ गए तो जीवन कब व्यतीत हो जाएगा, पता भी नहीं चलेगा। परन्तु लोगों की तो आदत बनी हुई है, अपने जीवन तो बेकार ही व्यतीत कर देने की। अभी कुछ महीने पहले की बात है। घर के बाहर मुख्य सड़क किनारे एक सामन से लदा ट्रक नाली में फ़ंस गया था और बाहर नहीं आ पा रहा था। तो अगले दिन उसका चालक एक क्रेन को बुला लाया उसे निकालने के लिए। क्रेन आई, और ट्रक को निकालने लगी। बस, फ़िर क्या था, घेरा बना लोग खड़े हो गए तमाशा देखने के लिए, जैसे मानों HBO पर Sex and the City प्रसारित हो रहा हो!! 🙄 यदि कोई व्यक्ति किसी मुसीबत में हो और मदद माँगे, जैसे यदि गाड़ी चालू नहीं हो रही है तो यदि धक्का मारने के लिए किसी को पुकारे तो यही लोग अपनी व्यस्तता का बहाना मार देते हैं, और वैसे इन्ही लोगों के पास बेकार व्यय करने के लिए समय है कि क्रेन ट्रक को कैसे निकालती है, यह देखने के लिए घंटे से भी ऊपर खड़े रहे!!

यह हाल है हमारा, सदैव टाईमपास में लगे रहते हैं। सदियाँ बीत जाएँगी, परन्तु लोग नहीं सुधरेंगे, दूसरे के फटे में बेवजह अपनी टाँग फ़ंसाते रहेंगे और टाईमपास करते रहेंगे।