गतांक से आगे …..
सांय 5 बजे के करीब मेरे मोबाईल का अलार्म बज उठा और मैंने उठ के देखा कि मैं लगभग पाँच घंटे सोया हूँ, इसलिए काफ़ी हद तक तरोताज़ा महसूस कर रहा था। बाकि लोग पहले ही उठ गए थे। तत्पश्चात नीचे गंगा स्नान के लिए जाने का निर्णय हुआ। अब डुबकी लगाने के लिए मैं तैराकी के वस्त्र आदि तो लाया न था, इसलिए जो कपड़े रात को पहने सफ़र किया था, वो ही पहन लिए। जो लोअर पहन रखा था, घुटनों से उसकी ज़िप खोल दो तो वह बरमुडा बन जाता था, ठीक आशीष भाई की पैन्ट की तरह!! 😉 तो बस टखने से निचले हिस्से को अलग किया और चल दिए नीचे गंगा स्नान के लिए।
गंगा जल ठण्डा था पर पानी में उतरने के कुछ पल बाद ठण्डा लगना बन्द हो गया, अब आनन्द आ रहा था। हम सीढ़ियों के पास ही कमर तक गहरे पानी में थे, बहाव तेज़ था और तल पथरीला, इसलिए कोई पंगा नहीं लिया। “हर गंगे” बोल स्नान का कुछ देर आनन्द लिया और उसके बाद वापस अपने सुईट में पहुँच स्नानगार में जा सभी ने पुनः स्नान किया(गंगाजल मटमैला सा था और बालों में मिट्टी जमने का अंदेशा था)। तत्पश्चात मेरे अतिरिक्त सभी ने चायपान किया और फ़िर त्रिवेणी घाट पर जाने का प्रोग्राम बना। एकाध तस्वीर लेने के बाद मुझे पता चला कि कैमरे की बैटरी जवाब देने की तैयारी में है और चार्जर ले जाना मैं भूल गया था!! आशंका हुई कि यदि बैटरी का जीवन पहले ही समाप्त हो गया तो क्या होगा, बाकी की तस्वीरें मैं कैसे लूँगा!! पर फ़िर सोचा कि कोई नहीं, खींच लेंगे बैटरी को!! सात बज चुके थे, गंगा के उस पार “पर्मार्थ” में आरती समाप्त हो चुकी थी, इसलिए घाट पर असली दर्शनीय पल बीत चुके थे। बहरहाल हम त्रिवेणी घाट पहुँचे और मोन्टू, स्वाति और स्निग्धा ने पानी में दीप बहाए। मैं और योगेश तस्वीरें उतारने में व्यस्त थे(बैटरी लगातार मरण अवस्था की ओर अग्रसर थी)। 😀 अब रात्रि भोजन कहाँ करें, यह समस्या हुई। तो हम चल पड़े हरिद्वार जाने वाली सड़क पर, जगह का नाम मुझे स्मरण नहीं, पर ॠषिकेश से लगभग 12 किलोमीटर दूर मिडवे रेस्तरां के बाजू में स्थित चिन्कारा हिल्स नामक रेस्तरां में हमने भोजन किया और फ़िर वापस हो लिए। पहुँचते पहुँचते लगभग साढ़े दस बज गए थे। सुईट में पहुँच बरामदे में ज़मीन पर ही सब पसर गए और बक बकियाने लगे। मैंने एकाध तस्वीरें और लीं और उसके बाद बैटरी बोल गई, कैमरा स्वयंमेव ही बन्द हो गया और मैं एक ठण्डी साँस ले के रह गया!! हँसी मज़ाक में समय बीतने लगा, रात्रि के बारह बज गए। सोने का निर्णय लिया गया क्योंकि सुबह जल्द उठ तैयार होना था और अतिथि निवास छोड़ देना था, योगेश बाबू हमें पहाड़ों की सैर पर ले जाने वाले थे। 😀
अलार्म बजते ही मैं तो सवा पाँच उठ गया, मोन्टू और योगेश बाबू को उठाया भी, पर वे पुनः सो गए, सो मैं बरामदे में बैठ सुबह की ताज़ी हवा का आनन्द लेने लगा। एकाएक ख्याल आया कि सूर्योदय की तस्वीर ली जाए(वैसे सूर्योदय हो चुका था) और तुरंत कैमरा चालू कर तस्वीर खींच ली।
उसके बाद जैसे ही कैमरा बन्द हुआ तो ध्यान आया कि बैटरी जवाब दे चुकी है, कैमरा दोबारा चालू न हुआ!! छह बज गए, अब तो सभी को उठाना ही था, वरना सात बजे किसी हाल में नहीं निकल सकते थे। पर उठने में सभी ने ढील दिखाई, लड़कियों ने स्नान में पूरा समय अच्छे से लिया जिसके कारण हमें निकलते निकलते साढ़े आठ बज गए, तौबा!! बहरहाल हम चल पड़े ऊपर एक पहाड़ की चोटी पर स्थित कुन्जापुरी के मन्दिर की ओर। लगभग 27 किलोमीटर का पहाड़ी रास्ता बहुत सावधानी से धीरे धीरे पूरा किया। रास्ते भर बहुत सुन्दर दृष्य दिखाई दे रहे थे, मोन्टू के मोबाईल से कुछ तस्वीरें लीं, अपना कैमरा तो बन्द पड़ा था, एकाध बार ही चालू कर तुरत-फ़ुरत तस्वीर ली जा सकती थी। अंत में हम कुन्जापुरी पहुँच गए, पर असली श्रद्धा तो अभी परखी जानी थी। लगभग 70-80 मीटर की खड़ी सीढ़ियाँ चढ़नी थी और एक तिहाई चढ़ने में ही बुरा हाल हो गया। लड़कियों का बुरा हाल था, योगेश बाबू तो पिछले 2 सप्ताह से अभ्यास कर रहे थे इसलिए चढ़ते चले गए, मोन्टू सेहत से टीप-टॉप इसलिए वो भी चढ़ता गया, और अपन तो दृढ़ निश्चय के सहारे चढ़ते चले गए और ऊपर पहुँच चैन की सांस ली। मन्दिर में प्रसाद चढ़ाने के बाद सीढ़ियाँ उतर नीचे आए, पर अब भूख के मारे बुरा हाल था। बाजू में ही एक दुकान में गैस-स्टोव दिखाई दिया तो पूछने पर पता चला कि वहाँ चाय मिल सकती है। उसी से मैगी नूडल्स भी बनवा लिए और आधे लीटर की फ़्रूटी के साथ थोड़े थोड़े नूडल्स सभी ने पेट में डाले। जान में जान आ गई!! 🙂
अब वापसी की यात्रा आरम्भ करनी थी, पहले लक्ष्मण झूला और फ़िर सीधे हरिद्वार में ही जाकर रूकना था। लक्ष्मण झूला पहुँच हम लोग वहाँ थोड़ा बहुत घूमें, दुकानों आदि को देखा। एक हस्त-कलाकृति वाली दुकान में पहुँच हम कला के उन नमूनों को देखने लगे। योगेश और स्वाति ने बम्बू कि बनी एक बड़ी सी बाँसुरी ली जो कि हाथ में पकड़ घुमाने से बजती है, वैसे वह हल्के से फ़ूँकने पर भी बजती है। मुझे वह अच्छी तो लगी पर अपने लिए उसका कोई उपयोग समझ नहीं आया। मैंने हाथों से तांबे के तारो द्वारा बनाया गया कछुआ ले लिया, माताश्री फ़ेन्गशुई और वास्तु में रूचि रखती हैं। 😉 तत्पश्चात स्निग्धा और मोन्टू एक कई मन्ज़िला मन्दिर में दर्शन करने चले गए और हम तीन जन एकाएक बढ़ गई गर्मी में सूर्यदेव द्वारा सिकने के लिए खड़े रह गए। अब समय भाग रहा था, इसलिए स्निग्धा और मोन्टू के वापस आते ही हम लोग हरिद्वार के लिए निकल पड़े। हरिद्वार पहुँच “हर की पौड़ी” में योगेश और मोन्टू स्नान का आनंद लेने लगे, भीड़ भाड़ बहुत थी वहाँ पर। योगेश को जल्दी दिल्ली पहुँचना था क्योंकि आफ़िस का कुछ कार्य करना शेष था, पर गर्म मौसम में ठण्डे बहते पानी के आनन्द ने सब भुला दिया था। 😉 आखिरकार वे दोनों बाहर निकले, और हम लोग पार्किंग की ओर लपक लिए। मौसम गर्म था, गाड़ी तेज़ चलने के कारण हवा अच्छी लग रही थी और नींद आने लगी। दोपहर हो रही थी और भूख लग आई थी, सुबह से कुछ नहीं खाया था(वो ज़रा सी मैगी भी कोई नाश्ता थी), पर चीतल पहुँच कर ही पेट पूजा करने का विचार बना।
सांयकाल सात बजे तक हम लोग चीतल पहुँच गए, वहाँ पहुँच तृप्त हो भोजन किया और फ़िर यात्रा का अन्तिम सफ़र आरम्भ किया, दिल्ली से हम लगभग एक सौ किलोमिटर ही दूर थे। वापस पहुँच सबसे पहले मोन्टू और स्वाति को उनके घर छोड़ा, फ़िर स्निग्धा को छोड़ते हुए मैं योगेश बाबू को उनके घर छोड़ता रात्रि लगभग बारह बजे अपने घर पहुँच गया। वापस पहुँचते ही सबसे पहले कैमरे से सभी छायाचित्र निकाल कंप्यूटर में डाले।
इस दो दिन की शहर से दूर सुहावने वातावरण में की गई यात्रा ने मन तरोताज़ा कर दिया। पर मन अभी भरा नहीं, वापस पुनः रोज़मर्रा की दिनचर्या पर जाने का मन नहीं, पर जाना तो है, इसलिए पुनः गढ़वाल स्थित किसी ऐसे ही बढ़िया स्थान की यात्रा का संकल्प कर यथार्थ में वापसी करते हैं!! 😉
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