अभी सोते सोते ख्याल आया, तुरंत कम्पयूटर चालू करा और उस ख्याल को ब्लॉग पर उतार रहा हूँ। ना….. ना….. कोई नया फ़ड्डा नहीं है, कोई नया विवाद नहीं है, बड़े ही काम की चीज़ है, एक लघु कथा और एक आसान प्रश्न है।

एक बार की बात है, एक ब्राह्मण कहीं दूर से पैदल चल कर आ रहा था। दोपहर का समय था और धूप तेज़ हो चली थी। पास ही उसे एक बग़ीचा दिखाई दिया और फ़लदार वृक्ष की छाँव में उसने कुछ देर आराम करने की सोची। अभी उसकी आँख लगी ही थी कि एक गाय उधर आ निकली और रंभाने लगी। ब्राह्मण के विश्राम में विघ्न पड़ा और उसकी निद्रा टूट गई। उसने तरह तरह की आवाज़ कर गाय को भगाने का बड़ा प्रयत्न किया लेकिन गाय वहीं विचरती रही और रंभाती भी रही। ब्राह्मण ने आव देखा न ताव, अपनी लाठी उठाई और निरीह गाय को बेदर्दी से पीटने लगा। आवेश में बह चुके ब्राह्मण का हाथ तब रूका जब उसने देखा कि गाय भूमि पर गिर पड़ी है और उसका रंभाना बन्द हो गया। तसल्ली हो जाने पर ब्राह्मण पेड़ के नीचे पुनः नींद के हवाले हो गया।

कुछ समय बाद सांय काल होने पर सूर्य का प्रकोप कम हुआ, मौसम थोड़ा ठंडा हुआ और ब्राह्मण की निद्रा खुली, उसने अपने को बहुत तरोताज़ा महसूस किया। फ़िर उसकी नज़र उस गाय पर पड़ी, वह अभी भी वैसे ही भूमि पर पड़ी हुई थी। ब्राह्मण को शंका हुई तो निवारण हेतू वह गाय के पास गया। पास जाकर पता चला कि गाय परलोक सिधार गई है। ब्राह्मण के हाथ पाँव फूल गए, उसके हाथों गौ हत्या हो गई थी। कोढ़ में खाज की तरह उसी समय बग़ीचे का रखवाला उसी गाय को ढूँढता हुआ वहाँ आया और गाय को मरा पाकर हतप्रभ रह गया। ब्राह्मण पर उसे संदेह हुआ तो उसने पूछा, “हे विप्र, मैं इस बग़ीचे और गाय का रखवाला हूँ। क्या आप बता सकते हैं कि इस गाय की मृत्यु का कारण कौन है?”

ब्राह्मण का दिमाग तेज़ी से चल रहा था, उसकी नज़र हट्टे कट्टे रखवाले और उसकी मोटी लाठी पर थी। अंत में ब्राह्मण ने निर्णय लिया और बोला, “वत्स, इंद्र देव इसकी मृत्यु का कारण हैं। क्योंकि गऊ को यम तो ले जा नहीं सकते, ऐसा कार्य तो देवेन्द्र ही के बस में हैं।”

रखवाला मुँह बाए ब्राह्मण को देखता रहा, उसको समझ नहीं आ रहा था कि क्या कहे।

अब आप बताएँ कि वास्तव में गौ हत्या किसने की? ब्राह्मण ने? या इंद्र देव ने?
उत्तर के साथ तर्क हो तो बहुत बढ़िया रहेगा। 🙂