अब मिश्रा जी तो 27 अगस्त 2007 की ब्लॉगर मीट की घोषणा कर दिए लेकिन डिफॉल्टिंग पार्टी भी वही थे, यानि कि स्वयं ही लेट हुए, एक बजे की जगह मुझे टेलीफोन पर पाँच बजे का समय दिया लेकिन फिर पाँच बजे भी पहुँचने में असमर्थता जताई। यह सुन मैंने सोचा कि चलो बढ़िया है, मैं भी ऑफिस के कार्य में फंसा हुआ था इसलिए मेरा भी आना दिक्कत वाला कार्य लग रहा था, कम से कम मेरे सिर दोष नहीं मढ़ा जाएगा। 😉 कोई अन्य भेंटवार्ता स्थल पर पहुँचा होगा इसकी कोई जानकारी नहीं है।
मिश्रा जी के पास अब एक ही दिन और था, परसों यानि कि 28 अगस्त 2007 का, क्योंकि 29 अगस्त की उनकी सुबह एक बजे की वापसी की उड़ान थी। इधर हुआ यूँ कि मिश्रा जी के लैपटॉप की हार्ड-डिस्क नाराज़ हो गई थी, इसलिए उनको वह भी दिखानी थी। अब मुझसे सलाह माँगी तो मैंने अपने कंप्यूटर हार्डवेयर वाले का नंबर और पता दे दिया और कह दिया कि मेरा नाम ले देना। रक्षाबंधन के कारण हार्डवेयर वाले का ऑफिस बंद था, लेकिन भई अब मेरे रेफ़रेन्स से आया था बंदा और मैंने भी फोन कर कह दिया था तो मेरी बात की उसने लाज रख ली और मिश्रा जी के लिए अगले ने आकर ऑफिस खोला। 😉 सांयकाल चार बज रहे थे और मिश्रा जी मुझे बराबर रिपोर्ट दे रहे थे, इधर मुझे समय मिल गया तो मैं पहुँच गया हार्डवेयर वाले के ऑफिस। मिश्रा जी की पुरानी हार्ड-डिस्क तो बोल गई थी, नई वाली हार्डवेयर वाले को लेकर आनी थी, तो हमने सोचा कि कहीं चल कुछ भोजन आदि कर लिया जाए और फिर वापसी में हार्डवेयर वाले के घर से मिश्रा जी का लैपटॉप ले लिया जाएगा। तो मिश्रा जी मेरी मोटरसाइकल पर पीछे सवार हो चल दिए।
इरादा तो हमारा जनक पुरी के डिस्ट्रिक्ट सेन्टर वाले बर्कोस(Berco’s) में जाकर चाईनीज़ भोजन करने का था, लेकिन हर जगह इतना ट्रैफिक जाम था कि मानो पूरी दिल्ली के वाहन सड़क पर उतर आए हों। लेकिन ये ट्रैफिक जाम वाहनों की अधिकता के कारण नहीं थे वरन् जगह-२ पुलिस द्वारा लगाए गए मार्ग अवरोधों के कारण थे और उनके बगल में खड़े पुलिस वाले किसी-२ के कागज़ात आदि जाँचते(और रोकड़ा वसूलते) दिखाई दे रहे थे। इस कारण मेरे शॉर्टकट भी काम न आए क्योंकि मुख्य मार्गों पर ट्रैफिक रूका होने के कारण वे भी भरे हुए थे!! इसलिए आखिरकार अपने घर के पास डॉमिनोस(Domino’s) में हम लोग पहुँचे और मिश्रा जी ने प्रसन्नचित् हो पनीर वाला एक पिज़्ज़ा ऑर्डर किया। अब उनसे मैंने पूछा कि ऐसे प्रसन्न होने की क्या बात थी तो वे बोले कि इटली में यदि कहीं बाहर खाने जाते तो दो ही तरह के शाकाहारी पिज़्ज़ा मिलते थे, चीज़ पिज़्ज़ा(cheese pizza) और मशरूम(mushroom) वाला, इसलिए वे ये दो तरह के पिज़्ज़ा खाकर उक्ता गए थे और आखिरकार यहाँ ही उनको अलग तरह का शाकाहारी पिज़्ज़ा मिला। तो पिज़्ज़ा के आने के पहले और खाते समय इधर उधर की बातें हुई। समय बीत रहा था, छह बज गए थे और मिश्रा जी को वापस भी जाना था, नौ बजे हवाई अड्डे के लिए निकलना था, तो इसलिए उनको पहले नई हार्ड-डिस्क लगा उनका लैपटॉप दिलवाया और फिर उनको रोहिणी पूर्व के मेट्रो स्टेशन पर छोड़ मैं वापस हो लिया।
यादगार के तौर पर मिश्रा जी की निम्न तस्वीर ली।
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