लोगों की मानसिकता कितनी दूषित है और कैसे वे पूर्वाग्रहों से ग्रसित हैं, इसके अनेकों उदाहरण मिल जाएँगे। इधर मैंने सोचा कि मोटापा कुछ अधिक बढ़ गया है, सुबह सवेरे की सैर से स्वास्थ्य लाभ किया जाए। यह सोच मैं सैर पर जाने के लिए कल सांय अडीडास के हल्के और आरामदायक जूते लेकर आया और आज सवेरे छह बजे के शुभ मुहूर्त में उनको पहन अपने घर के पास के डिस्ट्रिक्ट पार्क की ओर चल दिया। अब पार्क इतना बड़ा है कि इसका एक वृत्ताकार पूर्ण चक्कर एक मील(1.61 किलोमीटर) से कुछ मीटर अधिक है। मैंने सोचा कि इसके 3-4 चक्कर लगा कर घर चलेंगे, शुरुआत के लिए इतना काफ़ी है। 🙂
तो अपन शुरु हो गए। 2 परिक्रमाएँ पूर्ण होने के बाद देखा कि प्रवेशद्वार से होती हुई एक ठीक-ठाक नैन-नक्श वाली कन्या आई और मेरे आगे हो ली, मतलब मेरे आगे-२ चलने लगी। अब वह कन्या मेरे से तकरीबन 2 मीटर आगे चल रही थी और गति मेरे जितनी ही थी। मैंने आगे निकलने का कोई प्रयास नहीं किया और अपनी गति से चलता रहा। सहसा मेरे पीछे से तकरीबन 55-60 की आयु वाले एक अंकल आए और मेरे और कन्या के बीच में चलने लगे। फिर वे कन्या से आगे निकले तो धीरे-२ निकले और कन्या के अग्र भाग को निरंतर देखते हुए निकले, मैंने मन ही मन में उनको पता नहीं कितनी गालियाँ दीं!! मार्ग पर हमारे विपरीत दिशा से आने वाले अंकल लोग अच्छे से कन्या को देखते हुए निकलते और फिर मुझे अजीब सी निगाहों से देखते हुए जाते। और जो आंटियाँ आती, उनकी तो पूछो ही मत। वे मुझे ऐसे देखते हुए जाती जैसे मैं पता नहीं कोई विकृतकामी शिकारी हूँ जो कि कदाचित् कन्या का पीछा कर रहा हूँ। 🙁
इसी तरह 3 परिक्रमाएँ पूर्ण हुई और मैं 5 मील चलने के पश्चात वापस घर की ओर हो लिया। पार्क में और वापसी में भी मैं यही सोच रहा था कि उन बुड्ढे-ठुड्ढे अंकलों को क्या कुछ और नहीं दिखता और क्या वे आंटियाँ कुछ और नहीं सोच सकतीं!!
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