पिछले भाग से आगे …..

camera

पिछले भाग में मैंने सुझाव दिया एक नई सूचि बनाएँ जिसमें हो कि आपको कैमरे में क्या-२ चाहिए या आप कैमरे का प्रयोग कैसे करेंगे। साथ ही रिव्यू आदि पढ़ने का सुझाव दिया, मेगापिक्सल मिथ(myth) से सावधान रहने का मश्वरा दिया और ऑप्टिकल ज़ूम(optical zoom) की बात की। इससे पहले कि आगे बढ़े, पिछली पोस्ट की कुछ रोचक टिप्पणियों पर एक नज़र डाली जाए।

शास्त्री जी ने टिप्पणी की

अधिकतर छायाचित्र सिर्फ 1.3 मेगापिक्सल से लिये गये है, लेकिन चित्रों का स्तर बहुत अच्छा है. इसका एक रहस्य है. केमरा में 16x ऑप्टिकल ज़ूम है

अब मैं ज़रा असमंजस में पड़ गया, 1.3 मेगापिक्सल का कैमरा और 16x का ऑप्टिकल ज़ूम? ऐसा कैसे हो सकता है? मैंने गूगलवा पर ढूँढने की कोशिश भी की लेकिन नहीं मिला ऐसा कोई कैमरा। या तो ऐसा होगा कि शास्त्री जी के पास डिजिटल कैमरा न होकर वीडियो कैमरा/कैमकॉर्डर होगा क्योंकि उनमें ऑप्टिकल ज़ूम काफ़ी अधिक होता है लेकिन शुरुआती मॉडल कम मेगापिक्सल के आ रहे थे, या फिर शास्त्रीजी के कैमरे का कुल ज़ूम(ऑप्टिकल गुणा डिजिटल ज़ूम) 16x होगा और वे मेरे खुलासा करने के बाद भी गलती से ऐसा लिख गए। बहरहाल, मैंने शास्त्री जी की टिप्पणी पर उनसे निवेदन किया था कि वे अपने कैमरे का मॉडल और कंपनी आदि बताएँ, मैं जानने के लिए उत्सुक हूँ लेकिन शास्त्री जी ने हमेशा की भांति टिप्पणी का उत्तर नहीं दिया।

बहरहाल, इसके बाद अक्स ने पूछा

and how much optical zoom is ok?

यानि कि “कितना ऑप्टिकल ज़ूम ठीक रहता है?”। तो अब इसका उत्तर मैंने यह दिया

कितना ऑप्टिकल ज़ूम लेना है यह आप पर निर्भर करता है। आपने किस तरह कि फोटोग्राफ़ी करनी है उस पर तो निर्भर करता ही है, आपकी जेब पर भी निर्भर करता है। जैसे यदि आम फोटोग्राफ़ी करनी है और आप घूमने फिरने जाते हैं तो सामान्यतः 3x का ज़ूम काफ़ी रहता है। आजकल 5x-6x ज़ूम वाले कैमरे भी सस्ते हो गए हैं। तो यदि कितना ज़ूम होता है इसका अंदाज़ा नहीं है तो किसी भी कैमरे की बड़ी दुकान में जाकर दो-तीन अलग-२ ज़ूम वाले कैमरे चला के देख लो। खरीदना कोई आवश्यक नहीं है, वहाँ सिर्फ़ देख के भी आ सकते हो। तो उन कैमरों को ट्राई करने से अंदाज़ा हो जाएगा कि 3x में कितना ज़ूम मिल रहा है और 6x में कितना, फिर उसके बाद अपने हिसाब से निर्णय कर सकते हो कि कितने ज़ूम वाला कैमरा लेना है।

मैं समझता हूँ कि जो अन्य भी इस दुविधा में होंगे उनकी दुविधा का समाधान हो गया होगा। तो अपने कैमरा कैसे पसंद करें वाली कड़ी पर आगे बढ़ते हैं।

ऑप्टिकल ज़ूम के साथ-२ आजकल एक नई फीचर बाज़ार में अपनी जड़े मज़बूत कर रही है, इमेज स्टेबिलाईज़ेशन (image stabilization)। जो लोग इससे अंजान हैं उनके लिए आम शब्दों में इसका अर्थ है – एक ऐसी तकनीक जिससे कैमरे को पकड़ने वाले हाथों के कंपन के कारण फोटो जो थोड़ी सी हिल जाती है उसको रोकना/प्रभाव कम करना। हाथों में कंपन लगभग हर किसी के होता है, किसी के हाथों में कम होता है तो किसी के में अधिक। डिजिटल कैमरे को यदि पकड़े हुए हैं और फोटो ले रहे हैं तो कभी कैमरा इस कंपन के कारण थोड़ा हिल जाता है और फोटो उतनी शॉर्प(sharp) नहीं आती जितनी आनी चाहिए वरन्‌ थोड़ी धुंधला जाती है, जो कि खास तौर पर तब दिखाई देता है जब आप बड़ा प्रिंट निकालें या कम शटर स्पीड(shutter speed) पर कम रोशनी में तस्वीर लेते हैं। यह तकनीक आजकल कैमरों में आम होती जा रही है, इससे लैस बहुत से कैमरे आए दिन बाज़ार में आ रहे हैं। तो क्या हर कैमरे की इमेज स्टेबिलाईज़ेशन बढ़िया होती है? नहीं!! आम प्रचलन में आजकल बाज़ार में एक से अधिक तरह की इमेज स्टेबिलाईज़ेशन आज बाज़ार में है। पहले तरह की है ऑप्टिकल इमेज स्टेबिलाईज़ेशन(optical image stabilization) जिसमें कैमरे के लेन्स में सेन्सर आदि लगे होते हैं जो कि कंपन को पहचान लेन्स के अंदर मौजूद तत्वों को पोजीशन कर कंपन का प्रभाव कम करने का प्रयास करते हैं। दूसरे तरह की इमेज स्टेबिलाईज़ेशन को एन्टी ब्लर तकनीक(anti blur technology) के नाम से जाना जाता है जिसमें कैमरे की बॉडी(body) के भीतर उसके फोटो सेन्सर के साथ इसको लगाया जाता है जो कि सेन्सर को पोजीशन कर उसको कंपन का प्रभाव कम करने को कहता है। एक और तरह की इमेज स्टेबिलाईज़ेशन चल रही है जिसको डिजिटल इमेज स्टेबिलाईज़ेशन(digital image stabilization) कहते हैं। इसमें कैमरे के अंदर का सॉफ़्टवेयर डिजिटली कंपन के प्रभाव को कम करने का प्रयत्न करता है। कहने की आवश्यकता नहीं कि ऑप्टिकल इमेज स्टेबिलाईज़ेशन सबसे बेहतरीन होती है, उससे बेहतर और प्रभावकारी कोई नहीं, और सबसे घटिया(न होने से भी बेकार) डिजिटल इमेज स्टेबिलाईज़ेशन होती है। एन्टी ब्लर तकनीक आदि ठीक काम करती है, लेकिन ऑप्टिकल इमेज स्टेबिलाईज़ेशन जितनी प्रभावशाली नहीं होती। एक बात जो यहाँ गौर करने वाली है वह यह कि हर कंपनी की ऑप्टिकल इमेज स्टेबिलाईज़ेशन भी एक जैसी नहीं होती, किसी की बिलकुल प्रभावशाली नहीं होती तो किसी की बहुत प्रभावशाली होती है। इस पर मैं अपने विचार बाद में रखूँगा जब मैं कंपनियों के बारे में बात करूँगा।

एक महत्वपूर्ण बात यह निर्णय लेने की है कि आपको बेसिक प्वाइंट एण्ड शूट(point and shoot) कैमरा लेना है कि ब्रिज(bridge)/प्रोज़्यूमर(prosumer) कैमरा लेना है या डीएसएलआर(dslr) लेना है। प्वाइंट एण्ड शूट हुए वे कैमरे जो कि आम कैमरे होते हैं, प्रायः छोटे साइज़ के साधारण कैमरे जिसको आप लक्ष्य की ओर साधें और शटर(shutter) दबा फोटो ले लें। उसमें आपको पहले से ही सैट कई तरह के सीन(scene) मोड(mode) मिल जाएँगे अलग-२ तरह की फोटो लेने के लिए, जैसे लैन्डस्केप(landscape), पोर्ट्रेट(portrait), पार्टी(party), मैक्रो(macro), नाईट लैन्डस्केप(night landscape), नाईट पोर्ट्रेट(night portrait) आदि। इस तरह के कैमरों में मैनुअल(manual) कंट्रोल बहुत कम(न के बराबर) होता है और लगभग सभी कुछ ऑटोमैटिक होता है। ये कैमरे आम जन(जिनको फोटोग्राफ़ी की तकनीकी जानकारी नहीं होती) के लिए होते हैं। ये कैमरे सबसे सस्ते आते हैं और इनको प्रयोग करना बहुत आसान होता है तथा रख-रखाव का कोई खास झंझट नहीं होता। डीएसएलआर प्रोफेशनल कैमरे होते हैं उन लोगों के लिए जो कि फोटोग्राफी में काफ़ी दक्ष हैं और उसकी तकनीकी जानकारी रखते हैं तथा जो अपने कैमरों में लगभग हर चीज़ को स्वयं निर्धारित करना चाहते हैं, जैसे शटर स्पीड, आपर्चर(aperture), आईएसओ(iso) आदि। इन कैमरों की खासियत यह है कि ये आपको अधिकतम कंट्रोल देते हैं, आप कैमरे के लेन्स आदि भी आवश्यकता अनुसार बदल सकते हैं, लेकिन ये कैमरे सबसे महंगे आते हैं और इनको काफ़ी अच्छे रख-रखाव की आवश्यकता होती है। डीएसएलआर के बारे में तकनीकी रूप से जानने के लिए अंग्रेज़ी विकिपीडिया पर यह लेख देखें। लेकिन बहुत से ऐसे लोग भी है जो कि डीएसएलआर और प्वाइंट एण्ड शूट की खूबियाँ चाहते हैं लेकिन इन दोनों की खामियाँ नहीं चाहते। तो ऐसे लोगों के लिए कैमरा निर्माताओं ने उन्नत प्वाइंट एण्ड शूट कैमरे निकाले जिनमें डीएसएलआर और प्वाइंट एण्ड शूट की लगभग सभी खूबियाँ थीं और खामियाँ न के बराबर, इन कैमरों को ब्रिज अथवा प्रोज़्यूमर कैमरे कहते हैं। ये कैमरे साधारणतया डीएसएलआर से कुछ चीज़ों में ही कम होते हैं(जैसे लेन्स बदल नहीं सकते, कैमरे का सेन्सर डीएसएलआर से छोटा होता है) और ये प्वाइंट एण्ड शूट से महँगे और डीएसएलआर से सस्ते होते हैं।

यदि आप अभी फोटोग्राफी में नए हैं या कोई खास जानकारी नहीं रखते या हल्का-फुल्का छोटा कैमरा चाहते हैं तो आपके लिए बेसिक प्वाइंट एण्ड शूट ही सही है। यदि आप फोटोग्राफी की अच्छी जानकारी रखते हैं अथवा उसको सीखने के इच्छुक हैं तो ब्रिज/प्रोज़्यूमर कैमरे में निवेश करना अच्छा रहेगा। और यदि आप बहुत अच्छी जानकारी रखते हैं तो फिर तो आपके लिए डीएसएलआर ही चंगा है। हर तरह के लोगों और हर तरह की इच्छाओं के अनुरूप आजकल कैमरे मिल जाते हैं। तो आपको यह निश्चय करना है कि आपको किस प्रकार का कैमरा लेना है।

अगले भाग में जारी …..