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desh ke sarvochcha pad par cartoon banane se bachana chahiye.
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अमित जी महात्मा गांधी की हमे लख बाते अच्छी ना लगे पर वो हमारे राष्ट्र पिता है..?उनका सम्मान हमारा दायित्व है,इस बात को समझे..? ठीक ऐसे ही आज प्रतिभा पाटिल जी जिस पद पर है,वो हमारे लिये सम्मान की पात्र बन जाती है.निजी जिंदगी मे लाख बुराई हो पर अब वो भारत की प्रथम नागरिक और् उस सम्मान की हकदार है,इस तरह की छिछोरी बातो से राष्ट्रपति पद् सम्मान कम नही होग,सिर्फ आप अपनी सकुंचित मानसिकता ही प्रदर्शित कर रहे है,उम्मीद है आप मेरी राय को अन्यथा ना लेते हुये गंभीरता से विचार करेगे..?
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पद बनाते समय सोचा भी न होगा की कभी इस पद पर महिला भी बैठेगी. खैर अभी विवाद नहीं है राष्ट्रपति मान्य लग रहा है वैसे राष्ट्रप्रमुख के रूप में विकल्प भी था/है.
कार्टून बात कहने क अच्छा माध्यम है. जारी रखें. -
राष्ट्रपति पद सम्माननीय है, इसके बारे में इस तरह ही बातें कतई ठीक नहीं हैं.
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बढिया है!जारी रहें।
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अमित, मेरे विचार से राष्ट्रपति को lamooning से परे रखना चाहिये.
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पुन:
आपने उनकी lampooning नहीं की है, पर इससे लोगों को उस दिशा में सोचने करने का रास्ता तो मिलता है. वह भी क्यों हो? -
प्रतिभा ताई हमारे देश की प्रथम महिला राष्ट्रपति है, इसलिए हमे उनका पूर्ण सम्मान करना चाहिए।
मेरा व्यक्तिगत रुप से मानना है कि राष्ट्र के प्रथम व्यक्ति के बारे मे कुछ भी लिखने छापने से पहले सोच विचार जरुरी है, भले ही वो व्यंग्य हो या कार्टून। शपथ लेने के पहले हम उनके बारे मे कुछ भी लिख/छाप सकते थे, लेकिन उसके बाद हमे लोकतन्त्र की मर्यादा का पालन करना चाहिए। ये मेरे अपने विचार है, बाकी चिट्ठाकार अपने हिसाब से सोचने के लिए स्वतन्त्र है।
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पद की गरिमा का ध्यान रखते हुए हमें अब इससे बचना चाहिए…लोकतंत्र की मर्यादा के लिए यह जरुरी है…
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इस तरह की छिछोरी बातो से राष्ट्रपति पद् सम्मान कम नही होग,सिर्फ आप अपनी सकुंचित मानसिकता ही प्रदर्शित कर रहे है
अपनी-२ सोच है अरूण जी; हो सकता है कि आपकी संकुचित मानसिकता इसे सिर्फ़ एक व्यंग्य के तौर पर देख रही हो, न कि इस कार्टून के पीछे छिपे भाव को। पद का सम्मान कम करने का मेरा न कोई आशय था और न है। वैसे भी मेरे करने न करने से पद का सम्मान न कम होगा न ही उस पद से सम्मानित व्यक्ति की गरिमा।
जिन बन्धुओं को लग रहा है कि यह भारत की राष्ट्रप्रमुख प्रतिभा पाटिल पर कोई व्यंग्य है तो उनको बताना अपना फर्ज़ समझता हूँ कि यह सिर्फ़ उनकी गलतफहमी है। बात सिर्फ़ इतनी है कि हिन्दी में “president” के लिए “राष्ट्रपति” शब्द का सुझाव देने वाले व्यक्ति पर हंसी आती है कि यह शब्द सोच समझ कर नहीं बताया गया था, या वह व्यक्ति दूर की सोचने वाला नहीं था, या फिर हो सकता है कि उस समय इस तरह की बात सोची नहीं जाती थीं। उधेड़बुन में मैं स्वयं हूँ और उसी का नतीजा यह कार्टून है, न कि किसी व्यंग्य का।
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अभी कुछ दिन पहले रियाज उल हक के ब्लाग पर एक कवि की पत्नी के उत्पीड़न की गाथा और यहाँ के कमेंट में एक ही बात परिलक्षित हो रही है। उस कहानी को पढ़ कर यही सवाल उपजा कि बिहार के किसी पिछड़े इलाके की कोई गँवई महिला हिंदी फिल्मो की दीप्ति नवल या मीना कुमारी बनकर सारे जुल्म सह ले तो समझ में आता है पर क्रांति भट्ट जो नाटक में अभिनय से जुड़ी है, पढ़ि लिखी है, जिसकी सोच व्यापक है वह एक आदमी का घिनौना पन जाहिर होने के बाद भी उसके साथ इतने साल कैसे रह लेती है? कैसे बर्दाश्त करती है और फिर यह सोच कर मन लिजलिजा जाता है कि वह उससे बच्चा भी चाहती है?
कुछ वही सवाल यहाँ उपज रहे हैं, कलाम के सामने प्रतिभा ताई कुछ भी नही, सब मानते हैं तो फिर पूजा किसकी करे? अरे यार कोई रामराज्या है क्या कि राषट्रपति के पद पर जूते भी रख दो तो हर हिंदुस्तानी को सर झुकाना तब भी जरूरी है? किसका सम्मान करें और क्यों? और तो और कुलदीप नैयर तक कह रहे हैं कि हमें कोई महिला आयोग या ग्राम समाज का अध्यक्ष तो नही चुनना था। यह तो वही बात हुई कि किसी के साथ पहले बलात्कार कर दो फिर फाँसी से बचने को उससे शादी कर लो और यह भी चाहो कि हर करवाचौथ पर वह तुम्हारे चरण धो के पिये।यह सब पहले नही लिखा क्योंकि संदेह था कि आजकल बहस का स्तर ऐसा हो गया है कि कि लोग सीधे पूछेंगे कि आप तो भारत से बाहर रहते हो , आप को क्या पता भारतीय संस्कृति के बारे में । अब जो होगा देखा जायेगा।
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सही लिखे हो अतुल भाई, दिल की बात कही है।
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हां सही है. कौतुहल स्वाभाविक है. बच्चा पूछ रहा है कि पति तो आदमी बनता है. इसमें ग़लत कुछ नहीं है. अब आगे की सुनें.. लखनऊ में इसी आशय को लेकर मांग की गई है कि राष्ट्रपति शब्द gender-neutral title नहीं है. लिंगभेद नज़र आता है. लिहाज़ा इन्हें राष्ट्रप्रमुख कहा जाए. सीधे सपाट कार्टून में जो कौतुहल दिख रहा है उसके मुताबिक़ प्रेसीडेंट महामहिम प्रतिभा ताई पाटिल के प्रति कोई अपमानजनक या उपहास नहीं झलक रहा है.
बल्कि कार्टून के बहाने पर इस मसले पर चर्चा की जानी चाहिए.. इस समाचार को पढ़ें। -
मैं अपनी ताज़ा पोस्ट में भी इसी राष्ट्रप्रमुख पद का ज़िक्र किया है आदरणीया ताई के लिए .. कृपया पढ़े.
http://neerajdiwan.wordpress.com/2007/07/25/kiranbedi-pratibha/
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पद और सम्मान तो चाचा कलाम अपने साथ ले गये। अब तो बस नाम ही रह गया है सर्वोच्च पद का।
हम यों तो बड़ी बड़ी बातें करते हैं, अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता का रोना रोते हैं। और इतने सामान्य से कार्टून को राष्ट्रपति पद का अपमान समझ रहे हैं।
अमित जी कार्टून में कुछ भी गलत नहीं है। लगे रहिये। -
cool toon guru ji, I am also wid u on this 🙂
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मेरे प्यारे अमित भाइ तुमहे कुछ गलत् फहमी है अपने बारे मे ,ना तुमहे हिंदी आती है ना कार्टून् बनाने,बस सिर्फ कीचड ही उछालने को कार्टून् बनाना नही कहते ह,पिछले दिनो भी तुमने यही किया है,दूसरे एग्रीगेटर पर इशारा कर हसने से तुम कार्टूनिस्ट नही बन गये,और् कुछ नही तो जीतू भाई से ही सबक ले लो उन्होने क्या कहा है,बाकी तुम्हे यहा समझाने के बजाय मै एक पूरी पोस्ट लिख रहा हू तुम्हारे साईज की,उम्मीद है पढकर जवाब हासिल कर लोगे, 🙂
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coming from you, thats quite something!! आपकी लेखनी और आपकी हिन्दी को देख समझदार लोग समझ सकते हैं कि किसको अपने बारे में गलतफहमी है और किसको हिन्दी नहीं लिखनी आती!! रही बात कार्टून बना हंसने की, तो आप अपने ब्लॉग पर किसी को भी गाली देकर अपनी खुजली मिटाते रहो तो वो सही है, दूसरा कोई अपने ब्लॉग पर उससे कुछ कम करे तो भी आपको दिक्कत है? आप जैसों के लिए एक अंग्रेज़ी में जुमला है मेरे पास जो आज ही अपने एक मित्र को बताया है, यहाँ शिष्टाचार के नाते नहीं लिख रहा क्योंकि अभी भी यह मेरा ही ब्लॉग है और आपकी तरह खामखा गालियाँ बकने की मेरी आदत नहीं, मैं तो यह देख गाली देता हूँ कि सामने वाला मेरी गाली के योग्य भी है कि नहीं!! अब समझ आया आपकी अंट शंट टिप्पणियों का मतलब। साफ़ दिखता है कि आपके झूठे अहं का बैन्ड बजा हुआ है और अपने पूर्वाग्रहों के मारे आप इधर उधर अंट-शंट टिप्पणी करते फिरते हो। आशा करता हूँ कि आपकी बीमारी जल्द ही दूर हो, कहीं आपके लिए भी कोई मुन्नाभाई गांधीगिरी न करने बैठ जाए!!
और एक निवेदन है, कहीं और का असंबन्धित कीचड़ यहाँ मत फैलाईये, अपने पास ही रखिए या जहाँ से ला रहे हैं वहीं पड़ा रहने दीजिए। आशा तो नहीं है कि आप समझेंगे, लेकिन फिर भी…..
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मेरे प्रिय भ्राता अमित मैने तुम्हारे लिये पोस्ट लिखने का ईरादा छोड दिया है.काहे की समझाना उसको चाहिये जो समझना चाहे,वैसे जीतू भाइ ने उपर जो कंमेंट किया है अब तुम उसकी हसी उडा रहे हो उन्होने सही लिखा है अब इस पर लिखना ठीक नही
रही बात कीचड की तो मेरे प्रिय अनुज आप अपनी भाषाई बद तमीजी के लिये विख्यात पुरुष हो,और आपके मित्र जैसा की आपने बताया,वो भी ऐसे ही है,
तो बंधुवर अब हमे आपसे कोई शिकायत शिकवा नही है,आपकी कोई गलती नही है ,कुसंगती का असर तो आना लाजमी है,वैसे भाइ अग्रेजी का तो पता नही पर हिंदी मे बहुत जुमले है आपके लिये ,पर कोई फायदा नही ,काहे की आपको समझाने वाले को दो चार ट्रक बदाम खाने पडेगे. शायद वो भी कम ही रहेगे.तो हम ऐसा कोई विचार नही बना रहे है..
,वैसे तुम् ये सारी गालिया मेरे साथ जीतू भाइ को भी अनायास दे ही रहे हो क्योकी उनका मेरा मत एक ही है..:)
तुमहारे लिये कुछ शब्द हिंदी के दे रहा हू
करोड़पति, इलस्पति,या ब्रह्मणस्पति = अग्नि. अग्नि शब्द स्त्रीलिंग है, गृहपति, लखपति, दलपति,विचारपति
राष्ट्रपति,अधिपति,एकाधिपति, सेनाधिपति, रागाराधिपति
दम्पति संपति,सभापति,सेनापति,उपसेनापति,पूंजीपति
भूपति,चमूपति ,चसूपति,वनस्पति ,बृहस्पति,महीपति,
नृपति,प्रजापति.,प्रज्ञापति,
उपरोक्त शब्दो मे पति का अर्थ स्वामी होता है,मेरे अनुज ,जरा देखना करोड पती होता है पत्नी नही ऐसे ही तुम इन शब्दो को देखो और ज्ञानार्जन करो.ज्ञान उर सभ्यता सुसंस्कृ्ति कही से भी मिले ले लेना चाहिये, -
arun ji thik kah rahe hai.
cartoon me rashatrapati pratibha ji ka naam lena galat hai.
cartoon to thik hai kintu rashatrapati ke saat pratibha patil ka naa lena thik nahi hai.
amit ji sahi baat par tanik vichar karen. 🙂
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प्रतिभा ताई हमारे देश की प्रथम महिला राष्ट्रपति है, इसलिए हमे उनका पूर्ण सम्मान करना चाहिए।
मगर बच्चो के कौतुहल को कौन रोक सकता है ये तो एक अच्छा खासा जोक ही नजर आ रहा है, बच्चा समझ रहा है एक औरत जो पत्नी ही बन सकती है पति नही वो राष्ट्रपति कैसे हुई भला राष्ट्रपत्नी होनी चाहिये,…अमित का ये कार्टून महज एक बाल-हास्य ही नजर आ रहा है जो अमूमन होता ही है बच्चे अक्सर एसे ही सवाल करते है….
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हमें नहीं लगता कि जबरिया सम्मान उड़ेला जा सकता है’ हॉं अकारण अपमान न हो ये बात अलग है, जो हमें नहीं लगता कि यहॉं लागू होता है। हमारी राय यहॉं देखें
http://masijeevi.blogspot.com/2007/07/blog-post_27.html -
कारण पुरुषवादी दिमाग में मौजूद है । इस दिमाग के लिए किसी महिला का इस पद पर आना सिर्फ़ महिला होने के कारण व्यंग्य का विषय बना है।उस महिला पर कार्टून में बहस नहीं है ।अमित की शैली में, ‘इसीलिए अतुलजी नया थ्रेड खोल लें’ ।
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यहॉं अमित जी की शैली की कोई बात नही है, मालूम है वे ऐसा ही लिखते है किन्तु बात यहॉं औचित्य की है। प्रतिभा जी के राष्ट्रपति बनने से पहले विश्व को 50 से से ज्यादा राष्ट्रपति मिल चुके है तब क्यो यह चर्चा नही की गई? कुछ लोगों को गलत गलत कहने मे शर्म आती है, और उसी के शर्म के मारे उन्हे चुल्लू भर पानी भी नही मिलता कि …..।
कलाम जी थे तो राष्ट्रपति पद बहुत सभ्य था और प्रतिभा जी के आने पर पद अछूत हो गया।
सीधी सी बात है कि कार्टून बना तो ठीक था किन्तु राष्ट्रपति पद ग्रहण करने के बाद प्रतीभा जी का नाम लेना गलत था।
अब कोई कुत्ते की दुम सीधी शिद्ध करने पर तुला ही हो तो हम क्या कर सकते है। एक निवेदन जरूर कर सकते है कि अगर दुम सीधी हो जाये तो एक पोस्ट और डाल देना हम बधाई देने आ जायेगें 🙂
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प्रतिभा जी के राष्ट्रपति बनने से पहले विश्व को 50 से से ज्यादा राष्ट्रपति मिल चुके है तब क्यो यह चर्चा नही की गई?
भाया, उनमें से कितने देशों में हिन्दी बोली जाती थी? “राष्ट्रपति” शब्द हिन्दी का शब्द है जो कि आज प्रतिभा जी के पदासीन होने के पश्चात सही नहीं लगता। यह शब्द अंग्रेज़ी के president शब्द का अनुवाद है जो कि अमेरिका से लिया जान पड़ता है, लेकिन चूंकि वे लोग हिन्दी नहीं बोलते उनको कोई फर्क नहीं पड़ता, अंग्रेज़ी का president शब्द दोनों लिंगों के लिए उपयुक्त है। एक अन्य उदाहरण में बताना चाहूँगा कि कंपनियों में पहले chairman होता था लेकिन जब महिलाएँ इस पद के लिए चुनी जाने लगीं तो इसको बदल chairperson किया गया। मैं नहीं समझता कि यदि कोई एक चीज़ बरसों से चली आ रही है तो उसको सदैव वैसे ही चलना चाहिए। प्रकृति सदैव evolve होती रही है, प्रत्येक चीज़ को भी evolve होना पड़ता है अन्यथा समय में वह पीछे छूट जाती है। हिन्दी में blog शब्द का समानार्थी शब्द नहीं था तो क्या “चिट्ठा” शब्द को नहीं अपनाया गया?? उसे क्यों अपनाया?
और यदि आपने नीरज दादा के दिए हिन्दुस्तान टाईम्स वाले लिंक पर खबर पढ़ी होती तो वहाँ भी आपको इस बात का ज़िक्र मिल जाता। लखनऊ की एक संस्था इसके लिए माँग भी कर रही है कि “राष्ट्रपति” की जगह पद का हिन्दी अनुवाद “राष्ट्रप्रमुख” किया जाए।
राष्ट्रपति/राष्ट्रप्रमुख देश के संविधान से ऊपर नहीं होता और मेरे देश के संविधान ने मुझे प्रश्न पूछने और अपने विचार अभिव्यक्त करने की आज़ादी दी है। और मैं तो किसी पर कोई कीचड़ भी नहीं उछाल रहा!!
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ही ही… कल शाम को मेरा छोटा भाई भी यही सवाल पुछ रहा था… अब उसे क्या पता यह सवाल नही पुछना चाहिये… कोई सुन लेगा तो हंगामा हो जायेगा।
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भारत का बच्चा बच्चा महिला के राष्ट्रपति पद के रूप में तब से जानता है जब से विश्व को प्रथम महिला राष्ट्रपति मिली थी। ऐसा नही है कि भारतीयों ने कभी महिला राष्ट्रपति नही देखा और सुना है 🙂
कुछ लोग इसी में राष्ट्रपति को राष्ट्रप्रमुख कहलवा कर अपना नाम अमर करना चाहते है। जैसा कि अपने कहा कि लखनऊ में ऐसा मॉंग हुआ है।
हम अपने स्वतंत्रता और अधिकार की बात करते है किन्तु कभी हमने देश के प्रति कर्तव्य पर ध्यान दिया है ?
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कार्टून से कोई दिक्कत नहीं है . वह मात्र ‘सजेस्टिव’ है . कार्टूनिस्ट को इतनी छूट तो मिलनी चाहिए . दिक्कत इसके शीर्षक से है. उससे बचना चाहिए था . उसने कार्टून की संकेतात्मकता तो नष्ट की ही,वह लक्ष्मण-रेखा भी पार कर ली जिसकी वजह से ऐतराज उठ रहे हैं .
जहां तक श्रीमती प्रतिभा पाटिल के राष्ट्रपति बनने की बात है तो उनकी योग्यता और क्षमता पर इतनी शंका भी अनुचित प्रतीत होती है . पचास-साठ साल का बेहतरीन सामाजिक-राजनैतिक जीवन रहा है . १९६२ में वे पहली बार एम.एल.ए. बनी थीं, तब शायद उनकी आलोचना में दुबले हो रहे और उनके प्रति सम्मान जगा पाने में अक्षम संदिग्ध योग्यता वाले लोग इस धरती पर बीज रूप में भी नहीं थे .
एम.एल.ए. , एम.पी (राज्यसभा और लोकसभा दोनों),राज्य में मंत्री, विपक्ष की नेता,पार्टी की प्रदेशाध्यक्ष, केन्द्र में मंत्री, राज्यसभा की उपाध्यक्ष और राज्यपाल की जिम्मेदारी बखूबी निभाने वाली इस नेत्री ने जीवन में कभी कोई चुनाव नहीं हारा . और क्या योग्यता चाहिए होती है राष्ट्रपति होने के लिए ?
उनकी आलोचना के पीछे का मनोविज्ञान यह है कि लोगों को यह लगता है कि वे सिर्फ़ सोनिया गांधी की कृपा से वहां पहुंची है . जबकि राजनैतिक समीकरण और स्थितियां ऐसी हैं कि जो भी वहां पहुंचता सोनिया गांधी की कृपा से ही पहुंचता . तो बेमतलब का विरोध क्यों ?
राष्ट्रपति के बारे में बहस एक खास ‘बेंचमार्क’ के नीचे जाकर नहीं की जा सकती .
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भाई लोग सीरियस नी लेने का, बाकी कार्टून/चित्र वही श्रेष्ठ है जो थोड़े में बहुत कुछ कह जाए। 🙂
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मुझे तो इस कार्टून मे जिज्ञासा अधिक और व्यंग्य कम दिखता है , और सच बात तो यह है कि प्रतिभा जी के राष्टपति बनने के बाद यह प्रशन हर चौराहों और गलियों मे घूमा तो इस कार्टून पर इअतना बवाल क्यों ?
नीरज जी का राष्ट्र्प्रमुख सम्बोधन अधिक उचित प्रतीत होता है ।
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