अभी पिछले दो वर्षों में देशी और विदेशी कंपनियों के बड़े-२ स्टोर, मॉल आदि काफी तादाद में खुले हैं, धड़ाधड़ खुल रहे हैं और आगे भी खुलेंगे। उपभोग्ता वर्ग में बहुतों को इनके आने से प्रसन्नता हुई है, लेकिन कई देशी दुकानदारों आदि को बहुत टेन्शन हुई है और इस सबके खिलाफ़ बहुतों ने खुलकर अपना विरोध जताया है, कारण साफ है, ऐसे बड़े-२ स्टोर आने से उनकी दुकानदारी को खतरा है, अपना धंधा उनको बर्बाद होता दिखाई दे रहा है। इस विषय पर कई ब्लॉगर अपने विचार प्रस्तुत कर चुके हैं। लेकिन यदि इन दुकानदारों का धंधा बर्बाद हो रहा है या होने वाला है तो उसमें दोष किसका है?
एक उदाहरण देखते हैं जो मेरे साथ अभी पिछले सप्ताह घटित हुआ। यहाँ नई दिल्ली के क्नॉट प्लेस में फोटोग्राफी के सामान की एक बड़ी दुकान है दास स्टूडियो। मुझे अपने नए कैमरे के लिए एक UV फिल्टर और एक पोलराइज़र चाहिए था, तो मैंने उनकी दुकान का फोन लगाया पता करने के लिए कि उनके पास वह है कि नहीं। बड़ी देर बजने के बाद फोन एक साहब ने उठाया तो मैंने उनको कहा कि फोटोग्राफी वाले भाग में फोन दे दें(इनके यहाँ 3-4 भाग हैं, जिसमें फोटोग्राफी का अलग भाग है)। तो साहब ने जरा अलसाई आवाज़ में पूछा कि मेरे को क्या चाहिए, मैंने कहा कि पोलराइज़र के बारे में पता करना है। अब साहब को समझ नहीं आया होगा कि मैंने क्या माँगा, तो एक दूसरे साहब को फोन थमाया यह कह कि देखें मैं क्या माँग रहा हूँ। उन दूसरे साहब का भी वही हाल, उनको भी बताया कि मुझे क्या चाहिए और उनको भी जब समझ नहीं आया तो फिर एक अन्य साहब को फोन थमा दिया। अब मेरा दिमाग गर्म हो चुका था, इसलिए मैंने पूछ लिया कि फोटोग्राफी वाले भाग से बोल रहे हैं कि नहीं, क्योंकि यदि नहीं बोल रहे होते तो मैंने फोन काट देना था। पर कदाचित् उन दूसरे नंबर वाले साहब को थोड़ी अक्ल थी इसलिए उन्होंने अब फोटोग्राफी काउंटर पर फोन दे दिया था। इन साहब को बताया कि 55mm का सर्कुलर पोलराइज़र चाहिए तो वे बोले कि मारूमी ब्रांड का होता है इनके पास। मुझे होया ब्रांड का लेना था, तो वे बोले कि वो नहीं मिलेगा। मैंने पूछा कि किसी और दुकान का पता जानते हैं जहाँ मिलने की गुन्जाईश हो तो उन्होंने अल्साए स्वर में कहा कि नहीं उनको नहीं पता कोई और दुकान। तो मैंने कहा कि उनके पास मारूमी का ही है क्या तो बोले कि नहीं 55mm का नहीं है और यह कह फोन रख दिया!! क्या ऐसे धंधा होता है? मुझे नहीं लगता कि इन साहब को धंधे की समझ है, होती तो ऐसे बात नहीं करते जैसे कि मेरे पर एहसान कर रहे हैं और फिर ऐसे एकदम से फोन रख देने की बद्तमीज़ी नहीं दिखाते।
थोड़ा ढूँढने पर मुझे क्नॉट प्लेस में ही एक और बड़ी(कदाचित् सबसे बड़ी) फोटोग्राफी की दुकान मिल गई, महात्ता एण्ड कंपनी, जो कि सन् 1915 से धंधे में है। इनकी दुकान पर जाकर बड़ा ही आत्मीय सा माहौल मिला, काउंटर पर बैठे महोदय ने मीठे स्वर में कहा कि होया का तो उनके पास भी नहीं है, सिर्फ़ मारूमी का उपलब्ध है, होया का पता करवा सकते हैं, तो मैंने कहा कि करवाएँ पता। पता करवा उन्होंने खेदजनक स्वर में कहा कि होया का उपलब्ध नहीं है। अब जब मेरी पसंद वाली ब्रांड नहीं है तो दूसरी ही सही, इसलिए उसका ही लेने का निश्चय किया। UV फिल्टर तो तुरंत मिल गया लेकिन 55mm का पोलराइज़र उनके पास उस समय उपलब्ध नहीं था, बोले कि दो-तीन दिन में मिल जाएगा। मैंने उनसे पूछा कि जब आ जाएगा तो मुझे फोन कर बता देंगे या मैं स्वयं पता करूँ, तो इस पर उन्होंने एक विजिटर्स बुक मेरी ओर बढ़ा कहा कि मैं उसमें अपना नाम, फोन और आइटम लिख दूँ तो वे मेरे को फोन कर बता देंगे जैसे ही मेरा पोलराइज़र आ जाता है। आज दोपहर उनका फोन आ गया कि मेरा पोलराइज़र आ गया है।
वो दास स्टूडियो वाला क्या सोचता था कि ऐसी दुकान किसी को मिलेगी नहीं, जो कि उसकी दुकान से भी अधिक लोकप्रिय है(मेरे को ही पता नहीं था, अपन ज़रा नए हैं इस दुनिया में)। उसको इस दुकान के बारे में तो क्या, आजू बाजू की हर फोटोग्राफी की दुकान के बारे में पता होगा यह मैं दावे के साथ कह सकता हूँ। अब कोई चीज़ उसके पास नहीं है, तो दूसरी दुकान का पता बताने में क्या घिसता है? उसके न बताने के बाद भी गया तो सही मैं उस दुकान पर!! दूसरे, यदि उसके पास कोई चीज़ नहीं है तो पता भी की जा सकती है कि उपलब्ध होगी कि नहीं, लेकिन उसने ऐसा कोई उपक्रम नहीं किया, न ही आम दुकानदारों का जुमला बोला – “मैं आपको पता करके बता देता हूँ” और उसने जो ब्रांड रखी हुई थी उसमें 55mm का पोलराइज़र नहीं था तो यह भी नहीं बोला कि “मँगवा देंगे”, मतलब वो इच्छुक ही नहीं है सर्विस देने को। तो इस सबसे दास स्टूडियो ने क्या हासिल किया? सिर्फ मेरा अविश्वास हासिल किया और खो दिया मेरे से होने वाला धंधा, क्योंकि अब आगे से मैं कभी उसकी दुकान पर कोई चीज़ खरीदने नहीं जाउँगा और यदि कोई मेरे से पूछेगा तो महात्ता एण्ड कंपनी को ही रिकमेन्ड करूँगा।
अब देखने वाली बात यही है कि यदि ऐसे लोकल दुकानदार धंधा करते हैं तो उनका धंधा मंदा होना ही होना है, भई ग्राहक पैसे देकर चीज़ खरीद रहा है, काहे वो ऐसा बर्ताव बर्दाश्त करे! गौरतलब बात यह है कि यहाँ इस वाकये में लाभ उठाने वाली दुकान कोई विदेशी नहीं वरन् देशी ही है और घाटा उठाने वाली से बहुत पुरानी भी है, लेकिन उनको धंधा करने की तमीज़ है, ग्राहक को सर्विस कैसे देनी है यह उनको पता है। तो ऐसे लोगों का धंधा यदि बंद होता है तो बहुत ही अच्छी बात है, कचरा जितनी जल्दी साफ हो उतना ही बढ़िया, शुभस्य शीघ्रम।
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