आज से ठीक 2 वर्ष और 6 माह पहले मैंने अपनी कमाई से अपनी पहली मोटरसाइकल खरीदी थी, एलएमएल ग्रैप्टर। ऑफिस और अन्य कहीं भी जाने के लिए बसों की भीड़ में धक्के खा-२ मैं तंग सा आ गया था इसलिए एक मोटरसाइकल लेने का निर्णय लिया था। दीपावली पास में थी तो माँ ने कहा कि धनतेरस वाले दिन खरीदूँ तो शुभ होगा। अब मेरा इन सब चीज़ों में विश्वास नहीं लेकिन उनका कहा न टालते हुए मैं 10 नवंबर सन् 2004 को ऑफिस से आधे-दिन की छुट्टी लेकर पापा के साथ शोरूम गया और अपनी पहली मोटरसाइकल ले आया।
समय के इस गलियारे में अब तक मेरा और ग्रैप्टर का बढ़िया साथ रहा है, लगभग पन्द्रह हज़ार किलोमीटर का, हमने साथ मिल कई सड़कों को नापा है, पूरी दिल्ली की सैर की है, कई गाड़ियों और अन्य मोटरसाइकलों को पछाड़ा है; रफ़्तार, पिक-अप और माइलेज के मामले में कभी उसने मुझे निराश नहीं किया। मैंने भी उसका पूरा ख्याल रखते हुए हमेशा समय पर सर्विस करवाई, गाड़ी की वैक्स लगा उसकी मालिश कर उसके रूप को बनाए रखा।
कल सांय मैंने अपनी प्यारी मोटरसाइकल को अलविदा कह दिया जब मैंने उसको अपने एक मित्र को सौंप दिया। वह कई दिनों से मोटरसाइकल लेने की सोच रहा था और मुझसे पूछ रहा था कि क्या मैं अपनी मोटरसाइकल देना चाहता हूँ। इधर मैं भी सोच रहा था कि अब किसी दूसरी की सवारी की जाए और एक हसीना मेरी निगाह में भी थी। तो आखिरकार कल सांय मैं सड़कों की अपनी नई हमसफ़र, हीरो होन्डा की करिज़्मा आर(Karizma R), को ले ही आया और अपनी ग्रैप्टर अपने मित्र के हवाले इस शर्त पर करी कि वह उसका अच्छा ख्याल रखेगा।
यह पोस्ट प्यारी ग्रैप्टर को समर्पित है, जो मैं आशा करता हूँ कि आगे भी ऐसे ही फर्र सी चलेगी जैसी अब तक चलती आई है। 🙂
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