पिछले भाग से आगे …..

अगले दिन सुबह जल्दी उठ सभी तैयार हुए, नाश्ता कर वापसी की राह पकड़ने को सभी आतुर थे। लेकिन जल्दी निकलना कदाचित्‌ किस्मत में नहीं था, रिसॉर्ट वाले से पंगा हो गया। दिल्ली से जब बुकिंग करवाई थी तो उसने कमरों का किराया 1000 रूपये प्रति दिन के हिसाब से बताया था और बिल में उसने उनके 1800 और 2800 रूपये लगा दिए थे यह कहकर कि 1000 वाले कमरे उपलब्ध नहीं थे। कहने का अर्थ यह कि हमें उसके अनुसार महंगे कमरे में ठहरा दिया और हमें बताना भी उचित नहीं समझा कि जो कमरे हमें दिए जा रहे हैं वे महंगे हैं!! बिल की जाँच करने से पता चला कि साहब ने खाने-पीने के बिल इत्यादि जोड़ने में भी घपला किया हुआ था, 1000 रूपये खामखा के अधिक लगा रखे थे। तो बस बिल को लेकर तकरीबन एक घंटा बहस हुई और फ़िर हम अपने मन मुताबिक पैसे देकर वहाँ से चल दिए। लान्सडौन जाने वाले ध्यान रखें, इस अनुभव के आधार पर मैं रिट्रीट आनंद नामक जंगल रिसॉर्ट में रहने की किसी को सलाह नहीं दूँगा, वहाँ अन्य होटल आदि भी हैं, गढ़वाल मण्डल वालों का यात्री निवास भी है जहाँ ठहरा जा सकता है।

तो अब आखिरकार हम लोगों ने वापसी की राह पकड़ी। पहाड़ी से नीचे उतरते हुए कई मनमोहक नज़ारे देखने को मिल रहे थे।


( पहाड़ी ढलान पर बसा एक कस्बा )



( दूर नज़र आती बर्फ़ से ढकी पहाड़ियाँ )



पहाड़ी से नीचे उतर कर कोटद्वार से थोड़ा आगे कण्वाश्रम भी देखना था। किंवदन्तियों के अनुसार सदियों पहले यह कण्व ऋषि का आश्रम होता था जहाँ एक बार राजर्षि विश्वामित्र गहन तपस्या में लीन थे और जहाँ स्वर्ग की अप्सरा मेनका ने उनको अपने पर मोहित कर उनकी तपस्या भंग की थी और उन दोनों के संगम से शकुन्तला का जन्म हुआ था। कहते हैं कि राजर्षि विश्वामित्र ने शकुन्तला को कण्व ऋषि को सौंप दिया जिन्होंने उसका पालन पोषण किया और जिसके साथ हस्तिनापुर नरेश दुष्यंत का विवाह हुआ। यहीं इसी आश्रम में शकुन्तला और दुष्यंत के पुत्र और भावी सम्राट भरत का जन्म हुआ जिनके नाम पर इस देश का नाम पड़ा।

कोटद्वार पहुँच आगे का रास्ता पूछ हम लोग कण्वाश्रम पहुँचे। पहुँचने का मार्ग थोड़ा टूटा कुछ फूटा था, आश्रम के आसपास छोटा सा गांव/कस्बा है जो कि ग्रामीण भारत की झलक दिखलाता है(जैसे वो हिमेशवा झलक दिखलाने को बार बार कहता रहता है)!!


( ग्रामीण भारत )


लेकिन कण्वाश्रम पहुँच इस बात को साक्षात देखा कि भारत के इतिहास की यह धरोहर ठीक उसी तरह सूनी पड़ी है जैसे किसी विधवा की माँग।


( कण्वाश्रम )


और यह अकेली ऐतिहासिक धरोहर नहीं है जिसका ऐसा हाल है। वहाँ मात्र एक व्यक्ति का निवास है जो कि पुजारी हैं और वहाँ रह योग साधना करते हैं। उनसे पता चला कि वहाँ कोई इक्का-दुक्का व्यक्ति ही कभी कभार आता है अन्यथा वहाँ पर्यटक आदि नहीं आते। अब यह बात जानकर कोई खास आश्चर्य नहीं हुआ, ऐसा अपेक्षित सा ही लगा क्योंकि कम लोगों को इस जगह की जानकारी है और वैसे भी यहाँ उसी का आना बनेगा जो कि लान्सडौन जाएगा, अन्यथा सिर्फ़ इस जगह कोई नहीं आएगा। वहाँ थोड़ा समय बिता हम वापस अपनी गाड़ी की ओर चल पड़े। कण्वाश्रम के आसपास हल्का-फुल्का जंगल सा है और उसमें थोड़ा आगे जाकर एक झरना है जो कि सहस्त्रधारा के नाम से जाना जाता है। किंवदंतियों के अनुसार शकुन्तला के समयकाल में इस झरने से पानी की जगह दूध बहा करता था!! 😉

बहरहाल, हम वापस कोटद्वार की ओर चल पड़े। निश्चय किया गया कि दोपहर का भोजन ले लिया जाए क्योंकि फ़िर काफी समय तक कोई ढंग की खाने-पीने की जगह नहीं मिलेगी। कोटद्वार में ही एक अच्छा सा रेस्तरां मिल गया जो कि साथियों को पसंद आया और उसमें डट कर पेट पूजा की गई। इसके बाद ड्राईवर को बोल दिया गया “चक्‌ दे फट्टे” और गाड़ी सरपट दिल्ली की ओर उड़ चली। 😉 लेकिन मार पड़े अव्यवस्थित यातायात के बहाव को, पहले नजीबाबाद और फ़िर बिजनौर में फ़ंस गए जिस कारण कुछ घंटे खराब हो गए। मेरठ पहुँचते पहुँचते अंधेरा हो चला था। अब मेरठ से गुज़र रहे थे तो सोचा कि यहाँ कि प्रसिद्ध गजक और रेवड़ी ले ली जाए, तो निधि से पूछा कि कहाँ बढ़िया गजक मिलेगी। मेरठ की होने के कारण निधि को सब पता था और वह हमें सही दुकान पर ले गई जहाँ की गजक वाकई स्वादिष्ट थी। तो जहाँ हम में कुछ ने गजक खरीदी, वहीं बाकी के लोगों को हम पर खीज हो रही थी कि खामखा इतना समय लगा रहे हैं!! 😉 तो फटाफट खरीददारी निबटा हम वापस गाड़ी में आ गए और अपने गंतव्य की ओर चल पड़े, दिल्ली अब दूर नहीं थी। 😉 कुछ ही घंटों में हम दिल्ली में थे, एक-एक कर सबको उनके घर छोड़ते हुए मैं वापस अपने घर पहुँचा।

पिछले वर्ष मई में लान्सडौन जाने का कार्यक्रम बन रहा था जो कि बाद में स्थगित करना पड़ा था और बाद में हम लोग ऋषिकेश चले गए थे, लेकिन आखिरकार लान्सडौन भी हो आए, इस बात से मन अति प्रसन्न था। सर्दियों में हिल-स्टेशन का पहला अनुभव यादगार रहा लेकिन दोबारा ऐसा करने से पहले 31 दिसंबर की रात और उस समय की ठंड और जिस जगह हम लोगों ने वह रात गुज़ारी, इन सब बातों को कम से कम एक बार अवश्य ध्यान में लाऊँगा!! 😉