इस पोस्ट को लिखने के पीछे न किसी की बेइज़्ज़ती करने का इरादा है और न ही कोई व्यंग्य करने का। साफ़ दिल से यह पोस्ट लिखी है लेकिन यदि किसी को बुरा लगा हो(खासतौर से संजय तिवारी जी जिनका बहुतया उल्लेख है इस पोस्ट में) तो मैं क्षमाप्रार्थी हूँ क्योंकि बुरा लगाने की कोई मंशा न थी और न है।

अभी-२ एक ब्लॉगर सम्मेलन निपटा के फारिग हुआ हूँ। अच्छी खासी तादाद में लोग आए और कार्यक्रम को सफ़ल बनाया। चूँकि मैंने सबके लिए खुला रखने का प्रस्ताव दिया था इसलिए हिन्दी ब्लॉगजगत में भी इसकी खबर फैलाई कि साथी लोग आकर सत्संग का लाभ उठाएँ, कुछ ज्ञान अर्जित करें और कुछ दूसरों को दें, हिन्दी ब्लॉगजगत के बाहर भी जो ब्लॉगजगत है उससे मिलें, अंग्रेज़ी हो चाहे अन्य कोई भाषा, ब्लॉगर तो ब्लॉगर ही होता है ऐसी मेरी सोच है। लेकिन कुछ लोगों को कुछेक बातों से दिक्कत थी। अब दिक्कत खामखा दिक्कत की खातिर या किसी भ्रांति की खातिर यह मैं नहीं जानता; मैं यह मान के चल रहा हूँ कि मिथ्या भ्रांति के चलते दिक्कत थी जिसका माकूल उत्तर मिलने पर वह दूर हो सकती है, इसलिए अपनी ओर से ईमानदार कोशिश करने की खातिर यह सब लिखने का मन बनाया।

विस्फोट वाले संजय तिवारी जी ने पोस्ट दागी और सीधे ही हमें सूली पर टाँग दिया कि भई यह तो गोलमाल हो रहा है, ऐसा गोलमाल कैसे बर्दाश्त किया जाएगा। मत कीजिए प्रभु, गोलमाल बिलकुल बर्दाश्त मत कीजिए। लेकिन गोलमाल हो तभी ना?? पहले हल्के पटाखे के तौर पर पूछा कि आयोजक कैसे कह सकते हैं कि 200-300 ब्लॉगर आएँगे? जनाब यह तो कहा ही नहीं कि सभी ब्लॉगर होंगे, आंगतुकों में ब्लॉगर भी थे और गैर ब्लॉगर भी थे। गैर ब्लॉगरों में वे लोग भी थे जो दल बदलना चाहते हैं और डिफेक्ट होकर ब्लॉगर दल में आना चाहते हैं क्योंकि उनको यहाँ कुर्सी न सही लेकिन हिट मिलने के आसार दिखाई देते हैं, क्या पता निकट भविष्य में सेन्ट और डॉलर की भी बरसात हो जाए, सब बाबा जी की लीला है!! 😉 साथ ही गैर ब्लॉगर दल में ऐसे भी थे जिनको स्वयं तो ब्लॉग लिखने में रूचि नहीं लेकिन जो ब्लॉग लिखते हैं उनमें अवश्य रूचि है। अब कोई कमरा बंद मीटिंग तो थी नहीं एक्सक्लूसिव और ब्लॉगर होने का तमगा लिए लोगों के लिए, खुली सभा थी बाबा जी के द्वार की भांति, कोई भी आए माथा टेके और प्रसाद पाए। दूसरे, 200 ब्लॉगर काहे नहीं आ सकते? क्या आपको अंदाज़ा है कि दिल्ली में और राजधानी क्षेत्र(नोएडा, गुड़गाँव और गाज़ियाबाद) में कुल कितने ब्लॉगर हैं? बहुत से आंकड़ों और शिक्षित अनुमान(educated guess) के अनुसार 500 से अधिक हैं, और ध्यान दें कि मैं हिन्दी ब्लॉगरों की बात नहीं कर रहा वरन्‌ सिर्फ़ ब्लॉगरों की बात कर रहा हूँ जिसमें किसी भी तरह की ब्लॉगिंग किसी भी भाषा में करने वाले हैं। 😉

यदि माइक्रोसॉफ़्ट या कोई अन्य कंपनी ऐसे किसी कार्य के लिए प्रायोजक बनती है तो हानि ही क्या है? ऐसा नेक कार्य करने से उनका नाम हो रहा है और हमारा स्वार्थ हल हो रहा है कि इतनी बड़ी सभा हो रही है और किसी साथी को अपनी जेब इसके लिए ढीली नहीं करनी पड़ रही।

अब इसके आगे अगला (पहले के मुकाबले)तगड़ा पटाखा यह छोड़ा संजय तिवारी जी(संजय भाई नोट करें, पूरा नाम लिखने में कष्ट होता है, पुरानी आदत प्रथम नाम को संबोधित करने की बनी हुई है) ने कि ऐलान कर दिया कि आयोजक तो ऐरे गैरे नत्थू खैरे हैं ही, स्पीकर आदि भी कोई पहचान वाले न लग रिये!! माई बाप, यह तो बताईये कि आप किसके होने की आशा कर रहे थे, अगली बार उनको धर-दबोचने की पूरी कोशिश की जाएगी। वैसे मैं अपने मुँह मिया मिट्ठू नहीं बनता लेकिन मैं ब्लॉगजगत से सन्‌ 1999 से जुड़ा हूँ, बहुत से देशी-विदेशी ब्लॉगरों को जानता हूँ(गिनती मत पूछना जी, वो सन्‌ 2002 में 100 होने के बाद मैंने हिसाब रखना छोड़ दिया था) पर ऐसा सोचने की दिलेरी मैं नहीं दिखा सकता कि मैं सभी को जानता हूँ। खैर हो सकता है तिवारी जी जानते हों, अब मेरे को क्या पता(अन्यथा मत लीजिएगा तिवारी जी आपका मज़ाक कतई नहीं उड़ा रहा, सिर्फ़ अपने को उलझन में पाया था आपका ऐसा कथन पढ़ने के बाद)। वैसे चुहल के लिए ही सही, जनाब क्या आपको पता है कि दुनिया के पहले ब्लॉगर कौन हैं? थोड़ा इसका इतिहास पढ़िए कई रोचक बातें जानने को मिलेंगी। 🙂

अब तिवारी जी के विस्फोटों को यदि देखें तो क्रमवार उन्होंने पाँच विस्फोट किए। 🙂 पहले विस्फोट के तौर पर उन्होंने कहा:

सबसे पहले, निश्चित रूप से इस भेंटवार्ता के पीछे कोई व्यावसायिक नजरिया है. स्पांसरों का खेल है. और जहां व्यावसायिक नजरिया और स्पांसर पहुंच जाते हैं वहां आयोजन हमेशा निमित्त बनकर रह जाते हैं. होता यह है कि आयोजन स्पांसरों के प्रचार के काम में आते हैं.

इस विस्फोट का समर्थन कई साथियों ने किया। ठीक है, कोई गलत बात नहीं है ,यदि मामले की जानकारी मुझे न होती और मैं तिवारी जी की जगह होता तो मैं भी कुछ ऐसा ही सोचता, इसलिए ऐसा सोचने में कोई गड़बड़ नहीं, आखिर जब तक प्रश्न नहीं उठेगा तो उत्तर कैसे आएगा। तो जो लोग इस कार्यक्रम में शरीक हुए थे वे तो गवाह हैं ही, मैं जनाब सिर्फ़ इतना जानने का इच्छुक हूँ कि जिन-२ साहबान ने इस विस्फोट से सहमति जताई थी लगभग सभी के अपने-२ अड्डों पर विज्ञापनों की अच्छी खासी सजावट है। अब ऐसा क्यों है जनाब? यह न समझिए कि प्रश्न का उत्तर प्रश्न से दे रहा हूँ, बल्कि यह मानिए कि इस प्रश्न के उत्तर से ही आपको अपना उत्तर मिलेगा कि स्पॉन्सर क्यों थे। तो जनाब-ए-आली, क्या आपके ब्लॉग पर विज्ञापनों की सजावट का यह निष्कर्ष निकाला जाए कि आप जो लिखते हैं वह प्रायोजक द्वारा प्रभावित होता है और आप सदैव उनका ही गुणगान करते हुए लिखते हैं? नहीं, कम से कम मैं तो यह नहीं समझता कि आप प्रायोजक के प्रभाव में आकर लिखते हैं, यदि मैं गलत हूँ तो कृपया ज्ञान देकर सुधार कर दीजिए। तो जब आप जनाब इतने सारे विज्ञापन होने के बावजूद प्रभावित और प्रायोजित विस्फोट नहीं कर रहे तो मालिक आपने यह कैसे सोच लिया कि एकठो माइक्रोसॉफ़्ट के स्पॉन्सर होने कोई अंटशंट कार्य होगा? वैसे देबू दा ने इस बारे में अपने विचार बता ही दिए थे और मैं भी उनके विचारों से इत्तेफ़ाक रखता हूँ। सिर्फ़ अपना भला सोचने वाले कम्यूनिटी के लिए कुछ नहीं कर सकते। खाओ और मिल बाँट कर खाओ यही सीख मुझे बचपन से मिली है, कभी सिर्फ़ अपना मत सोचो, तो इसी तर्ज पर यदि माइक्रोसॉफ़्ट या कोई अन्य कंपनी ऐसे किसी कार्य के लिए प्रायोजक बनती है तो हानि ही क्या है? उनका नाम हो रहा है कि वे ऐसा नेक कार्य कर रहे हैं और हमारा स्वार्थ हल हो रहा है कि इतनी बड़ी सभा हो रही है और किसी साथी को अपनी जेब इसके लिए ढीली नहीं करनी पड़ रही। नहीं तो ऐसी सभा के आयोजन पर हर साथी की जेब से 300-400 रूपए निकलते तो उसका क्या लाभ था? कितने लोग देते? और जो नहीं देते वो इस सम्मेलन से खामखा वंचित रहते। जबकि स्पॉन्सर होने के कारण उनके सम्मिलित होने की राह से जेब की बाधा हट गई।

दूसरा विस्फोट तिवारी जी ने यह किया कि यह दावा ठोक दिया अपना कि चूंकि माइक्रोसॉफ़्ट स्पॉन्सर है और दूसरी कोई पीआर ऐजेन्सी, इसलिए कोई पंगा है। तिवारी जी के अपने शब्दों में:

इसका एक स्पांसर माइक्रोसाफ्ट है और दूसरा कोई पीआर एजंसी. ब्लागरों की गाढ़ी कमाई को कैसे कैश करना है इसकी योजना इस पीआर एजेंसी ने ही बनाई होगी और माईक्रोसाफ्ट को पटाया होगा यह तय बात है.

साथ ही गाढ़ी कमाई को लूट लेने की सोच का इल्ज़ाम भी!! यह तो बहुत नाइंसाफ़ी है प्रभु!! एक ओर तो हल्ला मचता रहता है हिन्दी ब्लॉगजगत में कि हिट नहीं हैं पाठक नहीं हैं, तो हम सोचे कि भई हिन्दी ब्लॉगिंग अभी शैशव काल में है और बहुत से लोग नए-२ ब्लॉग रोगी हैं जिनको अभी फंडे नहीं पता, इसलिए क्यों न किसी ऐसे बंदे से ज्ञान दिलवाया जाए जो कि ब्लॉग की ही कमाई खाता है ताकि हमारी बिरादरी के लोगों का भी कुछ भला हो उनको भी ज्ञान मिले। और यहाँ तो सीधे हम पर ही चोरी की सोच का इल्ज़ाम लग गया!! 😉 और माइक्रोसॉफ़्ट के स्पॉन्सर होने में बुराई क्या है? क्या वो कोढ़ियों की जमात है कि जिनके संपर्क में आते ही सभी कोढ़ी हो जाएँगे? उसकी जगह गूगल स्पॉन्सर होता तो ठीक रहता? अगली बार गूगल को भी पकड़ने की कोशिश करेंगे जनाब, और इस “क्या माइक्रोसॉफ़्ट अछूत है?” पर भी एक पोस्ट दागूँगा अगली फुर्सत मिलते ही जिसमें इसी मुद्दे पर चर्चा करेंगे। इसलिए फिलहाल इस को यहीं छोड़ते हैं, उम्र-ज्ञान-अनुभव में आपसे छोटा हूँ तो कुछ तो छोटे की बात भी मान लीजिए। 🙂

तीसरा विस्फोट मुझे कुछ समझ तो आया लेकिन कोई अर्थ निकलता न दिखाई दिया। तो तिवारी जी के शब्दों में:

ब्लागर मिलन की शुरूआत ऐसे हुई कि भाई लिखते-पढ़ते तो देख लिया एकाध बार मुंह-दिखाई भी हो जाए. अचानक ही अखबारों आदि में हिन्दी ब्लागरों की पर्याप्त चर्चा हो गयी. जाहिर सी बात है अब आप अपना खून-पसीना बहाकर जो कुछ रचना कर रहे हैं कुछ व्यवसायी मानसिकता के लोग अब उसको कैश कराने की कोशिश करेंगे. उनकी नजर में किसी भी प्रकार के कार्य का यही सफल उपयोग होता है. आखिरकार सबकुछ बाजार जो है.

इस विस्फोट के दो भाग हैं इसलिए अलग-२ ही झेलते हैं दोनों को। पहला छोटा वाला; मिलने और मुँह दिखाने की बात। मानी जनाब आपकी बात, ब्लॉगर भेंटवार्ता का पहला मकसद यही है और अधिकतर ब्लॉगर भेंटवार्ताएँ होती भी इसी मकसद के तहत हैं। लेकिन जनाब, यदि चाय-कॉफी और मुँह दिखाई के आगे बढ़ एक दूसरे से कुछ सीख लिया जाए अथवा साथ मिलकर कुछ कर लिया जाए तो क्या उसमें कोई पाप है? अनैतिक है? अवांछनीय है? अपनी-२ राय हो सकती हैं, मेरी और बहुत से अन्य लोगों की ऐसी राय नहीं है, बाकी जिनकी ऐसी राय है वो भी अपने साथी ही हैं और हर किसी को अपने विचार और अपनी राय कायम करने का पूरा हक़ है और उसकी मैं इज़्ज़त करता हूँ। 🙂

दूसरा बड़ा विस्फोट इसमें कैश कराने और बाज़ार में बेचने की बाबत है। तो जनाब अपने ब्लॉगों पर विज्ञापन सजाकर ब्लॉगर क्या करता है और? बाज़ार में नहीं बेच रहा? पहली बात तो यह कि हमने ऐसी कोई बात ही नहीं की, दूसरे यह कि कदाचित्‌ आपको पता न हो लेकिन गूगल और अन्य बहुत सी सेवाएँ ऐसे ही चल रही हैं, दूसरे का माल बेच कमा रहे हैं, और कुछेक के साथ ही कमाई बाँट रहे हैं, सब के साथ नहीं। आपको अचम्भा हुआ? यदि हाँ तो स्वागत है इंटरनेट की दुनिया में, यहाँ वाकई एक हाथ दूसरे को धोता है चाहे दूसरा पहले को न धोए!! 😉

फिर चौथा विस्फोट हुआ जो कि दूसरे और तीसरे विस्फोट की प्रतिध्वनि ही लगा जब तिवारी जी ने लिखा:

हो सकता है एक ब्लागर के रूप में आप इस मिलन में शामिल हों और कुछ माले-मुफ्त दावत उड़ाकर संतोष कर लें लेकिन आपको इस बात का कतई अंदाजा नहीं होगा कि आपको पता भी नहीं चलेगा और आपको सरे बाजार बेच दिया जाएगा.

जनाब बिक जाने का पता तो हमको भी नहीं चला। अब दो ही कारण हो सकते हैं कि या तो हमारी आत्मा मर गई है या फिर हम भी मूर्ख हैं जो माल-ए-मुफ़्त दिल-ए-बेरहम टाइप माल उड़ा लिए लेकिन आभास ही न हुआ कि कब बिक गए। पता लगे तो म्हारे को भी बता देना मालिक, बड़ी कृपा होगी।

पाँचवा विस्फोट(अब यही मान के चल रहा हूँ) हुआ तो लेकिन अपने को सिर पैर नहीं पता चला इसका क्योंकि संबन्धित ब्लॉग तथा ब्लॉग पोस्ट कदाचित्‌ मैंने पढ़ी नहीं। तिवारी जी बालक की यह भूल क्षमा करना, प्रयत्न पूरा किया था मैंने समझने का पर पिछले विस्फोट के कारण शंका तो हो ही गई है कि मैं भी मूर्खराज की गद्दी के चुनाव में खड़ा होने योग्य हो सकता हूँ। 🙂

अंत में संजय तिवारी जी ने आखिरी आतिशबाज़ी यह छोड़ी:

सह-अस्तित्व और परिवार भावना की नींव पर खड़ा ब्लाग समुदाय अगर इस तरह के व्यावसायिक प्रयासों को मान्यता देता है तो हिन्दी ब्लागिंग के स्वभाव को विकृत होने से कोई बचा नहीं सकता.

माई-बाप एक ओर तो आप सह-अस्तित्व की भावना का हवाला दे रहे हैं और दूसरे हाथ पर उसी का पुरज़ोर विरोध भी कर रहे हैं। यह कैसी माया है प्रभु, इस अज्ञानी को भी कुछ ज्ञान दीजिए। 🙂

दूसरी ओर अनिल रघुराज जी से यह पूछने की गुस्ताखी करूँगा कि संजय तिवारी जी की विस्फोटक पोस्ट पर टिप्पणी करते हुए कहा कि इस प्रोफेशनल ब्लॉगर मीट से अचंभित हैं तो दूसरी ओर देबू दा द्वारा इसी मुद्दे पर लिखी पोस्ट पर टिप्पणी देते हुए कहा कि ऐसे ब्लॉगर सम्मेलन उत्साह बढ़ाने वाले हैं!! जनाब यह हृदय परिवर्तन एकाएक? वैसे आपका तहेदिल से शुक्रगुज़ार भी हूँ कि आपने थोड़ा सा ही सही लेकिन विश्वास किया कि मैं इससे जुड़ा हूँ तो थोड़ी गंभीरता नज़र आती है। यकीन मानिए विश्वास करने वाले लोग शुरु में कम ही होते हैं इसलिए कुछ करने से पहले जो विश्वास करते हैं उनका विश्वास अमूल्य होता है। 🙂

साथ ही एक टिप्पणी स्पैमर से एडसैन्स फ्रॉड बने और अपने को ब्लॉगर कहने वाले एक साहब की पढ़ी थी जिसमें उन्होंने बताया कि उनको घोर आश्चर्य है कि हिन्दी ब्लॉगिंग को बढ़ावा देने वाले सम्मेलन का कार्यक्रम आदि अंग्रेज़ी में लिखा था!! वैसे तो कोई आवश्यक नहीं लेकिन इन साहब की शंका भी दूर किए देते हैं। तो जनाब वो ऐसा है कि “हिन्दी ब्लॉगिंग उत्थान” तो हमने टैगलाईन या मकसद में कहीं लगाया नहीं, हमारा मकसद तो “ब्लॉगिंग उत्थान” है; अब चाहे वह अंग्रेज़ी हो या हिन्दी या तमिल या बंगाली या गुजराती, ब्लॉगिंग तो ब्लॉगिंग ही होती है और ब्लॉगर तो ब्लॉगर ही होता है। अपन खुले दिल के हैं इसलिए ऐसा सोचते हैं। 🙂 और दूसरी बात, अब पता नहीं कि आप आए थे कि नहीं परन्तु हिन्दी और अन्य भारतीय भाषाओं की ब्लॉगिंग पर श्री अशोक चक्रधर जी तो हिन्दी में ही बोले थे अंग्रेज़ी में नहीं!! तबियत एकाएक नासाज़ हो जाने के कारण मैं जा नहीं पाया था वर्ना विश्वास कीजिए मैंने भी हिन्दी में ही बोलना था!! 😉

विशेष धन्यवाद रवि रतलामी जी को जिन्होंने इस तरह के आयोजनों के बारे में बता संशक साथी चिट्ठाकारों को ज्ञान दिया। साथ ही ऐसा ही खास वाला धन्यवाद देबू दा को उनकी पोस्ट के लिए। उन सभी लोगों को भी आभार जिन्होंने रत्ती भर भी विश्वास किया। 🙂

मैंने इस पोस्ट द्वारा पूरी ईमानदारी से उठाए गए प्रश्नों के उत्तर देने की कोशिश की है। अब यह कोशिश कितनी सफ़ल हुई और कितनी असफ़ल इसके निर्णायक तो आप, यानि कि पाठक और साथी ब्लॉगर, ही हैं।

एक बार पुनः कहूँगा, इस पोस्ट को लिखने के पीछे न किसी की बेइज़्ज़ती करने का इरादा है और न ही कोई व्यंग्य करने का। साफ़ दिल से यह पोस्ट लिखी है लेकिन यदि किसी को बुरा लगा हो(खासतौर से संजय तिवारी जी जिनका बहुतया उल्लेख है इस पोस्ट में) तो मैं क्षमाप्रार्थी हूँ क्योंकि बुरा लगाने की कोई मंशा न थी और न है। 🙂