पिछले तीन दिनों से छप रहे कार्टूनों ने कई लोगों की उत्सुकता बढ़ाई है, कईयों ने पूछा कि आखिर कोई सिर पैर तो हो, पता ही नहीं चल रहा कि बात क्या है!! तो जनाब मामला टू द प्वायंट प्रस्तुत है।
समस्या
समस्या ये है कि ब्लॉग की गाड़ी आगे ही नहीं बढ़ रही। मैं अपनी बात नहीं कर रहा, मैं एक आम बात कर रहा हूँ। ब्लॉग एग्रीगेटरों से सिर्फ़ हम ब्लॉगरों की ही आवश्यकताएँ पूरी हो रही हैं कि हमको दर्जनों ब्लॉगों पर जाकर देखने की बजाय एक जगह ही सूचना मिल जाती है। दरअसल एग्रीगेटरों का यही काम है और अपने काम को वो बखूबी अंजाम दे रहे हैं। लेकिन इसके आगे भी कोई जहान है या यही आखिरी स्टेशन है? मेरा और कई अन्य साथी ब्लॉगरों का मानना है कि आगे जहान और भी है। ब्लॉगों की तादाद तेज़ी से बढ़ रही है, यह एक अच्छी बात है, लेकिन एक समस्या अब जो आ रही है(जिसको कुछ दूरदर्शी साथियों ने काफ़ी पहले देख लिया था) वह यह कि माल की तादाद बढ़ी लेकिन उसको हज़म करने का समय नहीं बढ़ा, सब कुछ हर कोई नहीं डकार सकता तो कैसे मनपसन्द माल चुना जाए? और दूसरे यह कि ब्लॉगरों की जमात के बाहर ब्लॉगों की कितनी पैठ हो रही है? कुछ खास नहीं और मैं समझता हूँ कि कई लोग इस बात से सहमत भी नज़र आएँगे। बहुत से उम्दा लेखक हैं जो एक से बढ़कर एक धांसू आइटम लिखते हैं लेकिन पाठकों तक सही पहुँच न होने के कारण न तो उनको बहुत लोग पढ़ पाते हैं और लोग-बाग भी वंचित रह जाते हैं।
विश्लेषण (analysis)
अब यदि समस्या को समझा जाए, तो एक बात उभर कर सामने आती है – प्रचार(marketing)। जिस ब्लॉग का जितना अच्छा प्रचार हुआ हो उसके पाठक उसके अनुसार ही होते हैं। ध्यान रहे कि बात यहाँ मसौदे की नहीं है; माल की गुणवत्ता पाठक को दोबारा आने को प्रेरित करेगी लेकिन बात यहाँ उसको पहली बार लाने की हो रही है। जब वह पहली बार ही नहीं आएगा, जब उसको पता ही नहीं होगा कि फलां जगह माल मिलता है तो माल अच्छा हो या बुरा इससे क्या फर्क पड़ता है, वह तो आगे सरका ही नहीं। अब हर कोई नाई नहीं होता, कोई बढ़ई भी होता है तो कोई ग्वाला भी; कहने का अर्थ है कि हर किसी को हर काम में महारत हासिल नहीं होती। तो इसी तरह, कुछ लोग जो कि प्रचार के फंडे जानते हैं वे तो अपने माल का प्रचार ठीक-ठाक या बढ़िया तरीके से कर लेते हैं, लेकिन जो लोग इस सब से नावाकिफ़ हैं वे क्या करें? आज के समय का नियम है कि सिर्फ़ माल अच्छा होना ही काफ़ी नहीं है, उसको आगे सही ढंग से सरकाना भी आवश्यक है अन्यथा चाहे लाख टके का माल हो उसकी औकात दो टके की नहीं रह जाती।
दूसरा मुद्दा समय का है और यह भी बहुत बड़ा मुद्दा है। ब्लॉगों की संख्या में तो दिन दुनी रात चौगुनी तरक्की हो रही है लेकिन पाठकों(यदि दूसरों के ब्लॉग पढ़ते हैं तो हम ब्लॉगर भी पाठक गण में आते हैं) के समय में इस तरह इजाफ़ा नहीं हो रहा है, बल्कि बहुत से मामलों में ब्लॉग आदि पढ़ने का समय कम ही हो रहा है। तो ऐसे में सभी को पढ़ना तो दूर, मनपसन्द लेखकों को ही पढ़ने में दिक्कत हो जाती है।
समाधान
अब हम कुछ ब्लॉगरों(दिल्ली ब्लॉगर समूह के सदस्यों) ने इस सबका यह समाधान सोचा कि कुछ ऐसा किया जाए कि ब्लॉगों की समीक्षात्मक नज़रिए से पोस्ट दिखाई जाए। इस बात को लेकर हिन्दी ब्लॉगजगत के कई साथी ब्लॉगरों ने अपने-२ विचार समय-२ पर रखे हैं जिनमें श्रेणियों में ब्लॉग रखने से लेकर समीक्षा तक के उपाय सुझाए गए हैं। कुछ इसी की तर्ज पर चिट्ठाचर्चा भी अनूप जी और अन्य साथी लोग चलाते आए हैं। लेकिन हम लोगों ने सोचा कि ब्लॉग को किसी एक या अन्य श्रेणी में क्यों रखा जाए, एक विषय आधारित ब्लॉग हो तो अलग बात है लेकिन बहुत से साथी एक ही ब्लॉग पर कई विषयों पर लिखते हैं तो इसलिए ब्लॉग को श्रेणियों में रखने के स्थान पर क्यों न प्रत्येक पोस्ट को श्रेणियों में रखा जाए। इससे पाठकों को चुनाव करने में आसानी होगी कि उनको क्या पढ़ना है और क्या नहीं, यानि कि उनके समय का सदुपयोग होगा और वे वही पढ़ेंगे जो वे पढ़ना चाहते हैं। यह कार्य ऑटोमैटिक तरीके से करने की जगह यदि जीते-जागते मनुष्यों द्वारा किया जाए तो गुणवत्ता की दर अधिक होगी ऐसा हम लोगों का मानना है, इसलिए स्वयंसेवकों के दल होंगे जो यह सब कार्य देखेंगे और सिर्फ़ हमारे जैसे ऐरे गैरे नत्थू खैरे ही नहीं बल्कि कई नामी ब्लॉगर भी इस प्रयास से जुड़े रहेंगे और हमारा हाथ बंटाएँगे।
यह तो हुआ समय वाली समस्या का समाधान, लेकिन प्रचार वाली बात का क्या? तो उसके लिए हमारे साथ है एक प्रोफेशनल पब्लिक रिलेशन्स और मार्केटिंग कंपनी जो कि कई बड़ी और नामचीन कंपनियों की मार्केटिंग आदि देखती है। यह प्रोफेशनल मार्केटिंग कंपनी इस प्रयास(वेबसाइट) का प्रचार करने का कार्य करेगी। वेबसाइट का प्रचार होगा तो उम्दा छंटे हुए लेखों तक बढ़ते पाठकों की पहुँच बनेगी और जिस कारण ब्लॉग लेखकों को लाभ मिलेगा, उनके ब्लॉग पर ट्रैफिक बढ़ेगा और यदि उन्होंने अपने ब्लॉग पर विज्ञापन आदि लगा रखे हैं तो आय की संभावना भी बढ़ेगी। जानकार बंधुओं को कदाचित् स्लैशडॉट की याद आ जाए जो कि अंग्रेज़ी के तकनीकी लेखों में एक ऐसी वेबसाइट है जिस पर उम्दा लेखों की जानकारी होती है और लेख के मूल पते का लिंक होता है। स्लैशडॉट के इतने पाठक हैं कि यदि उस पर आपकी वेबसाइट का लिंक आ जाता है तो एक घंटे के अंदर आपका सर्वर ओवरलोड होकर बैठ सकता है, अच्छे अच्छों के सर्वर ऐसे बैठ जाते हैं और इसी लिए इसको स्लैशडॉट इफेक्ट की संज्ञा दी गई।
यह बात बहुतों ने महसूस की होगी कि कई बंधु अच्छा लिखते हैं लेकिन पाठक न मिलने या उत्साहवर्धन न होने के कारण निराश हो लिखना कम कर देते हैं या बंद कर देते हैं; इससे नुकसान लेखक का भी होता है और पाठकों का भी। तो इस सब का एक लाभ यह भी होगा कि गुणवत्ता का आम स्तर बढ़ेगा क्योंकि बहुत से साथी अच्छे से अच्छा लिख ऊपर आने का प्रयत्न करेंगे जिससे पाठकों को भी बढ़िया माल परोसा जाएगा और साथ ही बढ़िया लिख रहे ब्लॉगरों का उत्साहवर्धन भी होगा।
इस तरह का कोई भी प्रयास कितना ही अच्छा क्यों न हो, यदि मौलिक आवश्यकताएँ पूरी करने के लिए नोट नहीं हैं तो अधिक दिन गाड़ी नहीं चलती। ऐसा मैंने होते हुए भी देखा है और स्वयं भी दो-चार हुआ हूँ। और स्वयंसेवक भी कितने ही उत्साहयुक्त और समर्पित क्यों न हों लेकिन एक समय बाद मामला गड़बड़ाने लगता है। इसलिए इस प्रयास का व्यवस्थित तरीके से आयस्रोत भी होगा ताकि सर्वर आदि के खर्चे तो निकलते ही रहे साथ ही परिश्रमी स्वयंसेवकों को कुछ पारिश्रमिक मिल सके। साथ ही समय-२ पर प्रतियोगिताएँ आयोजित करने एवं अन्य बंधुजनों द्वारा आयोजित प्रतियोगिताओं को सपोर्ट कर योग्य ब्लॉगरों आदि को पारितोषिकों से नवाज़ने की भी गुंजाइश बन सके।
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