इधर ज्ञान जी बॉटलनेक्स पर विचार ठेले और प्रबंधकों से सहानुभूति जतलाए कि भई आखिर मानस जात हैं गलती हो ही जावत है, उधर मैं सोच रहा था कि कहीं और की छोड़ सड़क पर देखें तो अधिकतर बॉटलनेक्स मूर्ख लोगों की समझदारी के कारण बनते हैं। ये लोग ऐसे होते हैं कि यदि इनका आईक्यू (IQ) जाँचा जाए तो 70 से नीचे मिलेगा, कोई बड़ी बात नहीं होगी यदि आंकड़ा नेगिटिव में भी चला जाए!!
पहला आम उदाहरण है लाल बत्ती होने पर लेफ़्ट टर्न फ्री वाले मोड़ पर बायीं ओर गाड़ी खड़ी कर देना। अब इससे जिसको बायीं ओर मुड़ना है वह भी खामखा रूकेगा, और यदि उस जगह आने वाले लोगों में बायीं ओर मुड़ने वाले अधिक हैं तो जमावड़ा खामखा ही बड़ा हो जाएगा!! कई बार जमावड़ा इतना अधिक हो जाता है कि लोगों को तीन-चार हरी बत्ती बाद ही मुड़ना नसीब हो पाता है, अब उनके लिए तो लेफ़्ट टर्न कतई फ्री नहीं हुआ!! और यह बॉटलनेक….. या यूँ कहें कि बोतल का गला ही घुट जाता है सिर्फ़ एक-दो लोगों के कारण जो खामखा फटे में अपनी गाड़ी घुसा के बैठ जाते हैं।
दूसरा आम उदाहरण है दायीं ओर मुड़ने वालों का जो सड़क पर दायीं ओर एक या दो लाइन बनाने की जगह तीन-चार लाइन बना के आधी से अधिक सड़क रोक लेते हैं ठीक उसी प्रकार जैसे सड़कों के किनारे बने मकानों के मालिक धीरे-२ खिसक-२ कर सड़क का अच्छा खासा भाग अपने मकान में समेट लेते हैं!! इधर दिल्ली में कई सड़कों पर दायीं ओर की लाइन को निशानदेह करने के लिए प्लास्टिक के त्रिकोण लगाए गए ताकि जिसने दायीं ओर मुड़ना हो वह उस लेन में जाकर रूके लेकिन समझदार लोग उसके बावजूद उस लेन के बाहर दो-तीन लेन और रोक लेते हैं। अब तो अधिकतर जगहों पर वे त्रिकोण भी तोड़ दिए गए हैं, लगाने का कोई लाभ नहीं हुआ वैसे भी। तो इस मामले में होता ये है कि दाएँ मुड़ने के लिए ये समझदार लोग प्रतीक्षा करते हैं और इधर सीधे जाने वाले लोगों के लिए बॉटलनेक बन जाता है!!
वैसे कुछ लोग बोतल के गले में कॉर्क लगा उसको अपने मन मुताबिक बंद करने में भी विश्वास रखते हैं, अकड़ वही जैसा ज्ञान जी की धर्मपत्नी श्रीमति रीता जी ने कहा – हम इंही रहब! का तोरे बाप का सड़क हौ!
हाल ही का उदाहरण है, इधर घर के पास एक सिंगल लेन वाली सड़क पर रात को कुछ अक्खड़ और मूर्ख लड़के गाड़ी आदि खड़ी करके बैठ जाते हैं बाजू में खड़े अपने दोस्तों के साथ बेवड़ा मारने को और गप्पे हांकने को। ऐसे ही एक रात ये लोग खड़े थे, एक गाड़ी आई और हॉर्न बजा के हटने को कहने लगी लेकिन ये ढीठों की भांति टिके रहे, गाड़ी का ड्राईवर उनको बोलने गया तो उसको कहने लगे कि गाड़ी वापस घुमा के दूसरे रास्ते से जाए। लेकिन तभी गाड़ी में से तीन-चार हट्टे कट्टे बंदे उतरे और यह देख गाड़ी के पास खड़े लड़के ने गाड़ी वाले से कुछ कहा और गाड़ी वाले ने शराफ़त दिखाते हुए गाड़ी आगे बढ़ाकर साइड में लगा ली और उतरकर अपने दोस्तों के पास आ गया और उस गाड़ी को तथा उसके पीछे मौजूद मुझे जाने का रास्ता दिया।
अभी बीते रविवार की रात्रि सप्ताहांत नाहन में बिता कर वापस लौटा तो फिर वही सीन था सामने, मेरी गाड़ी के ड्राईवर ने कई बार हॉर्न बजाया लेकिन उनको कोई फर्क नहीं पड़ा, ड्राईवर उनको बोलने गया तो उसको भी वही टका सा उत्तर मिला कि घुमा के दूसरे रास्ते से चला जाए। उसके बाद मैं गाड़ी से उतरा और ब्लफ़ करने के लिए गाड़ी में अंदर ऐसे देखा जैसे किसी से कुछ कहा हो। वही हुआ जो कुछ दिन पहले हुआ था, लड़कों को लगा कि गाड़ी के अंदर और लोग भी हैं और नहीं हटे तो उनकी कुटाई हो जाएगी, इसलिए तुरंत अड़ियल गाड़ी हट गई रास्ते से, कुछ और कहने करने के लिए बचा ही नहीं मामला!!
तो वापस यदि ज्ञान जी की पोस्ट पर आया जाए तो मैं यही कहूँगा कि प्रबंधन कितना ही अच्छा कर लो (सड़कों के मामले में वैसे घसियारा प्रबंधन है, देखने से पता चल जाता है), लेकिन इन जन्मजात बॉटलनेकों और बोतल के ढक्कनों के रहते हालात नहीं सुधर सकते!!
फोटो साभार जेक बेलूची, क्रिएटिव कॉमन्स लाइसेन्स के अंतर्गत
Comments