पिछले अंक से आगे …..

कुआला लमपुर (Kuala Lumpur) तक का सफ़र कोई साढ़े पाँच घण्टे का था, तकरीबन रात्रि पौने दस बजे दिल्ली से विमान उड़ा था। खाना वगैरह निपटा इतने में एक घण्टा और बीत गया। मैं पेशोपश में था कि बाकी के चार घण्टे नींद ली जाए या टाईमपास किया जाए। 😐 वैसे स्टेशन छूटने का डर नहीं था लेकिन आखिरकार सोचा कि चार घण्टे क्या नींद आएगी, इसलिए कोई फ़िल्म आदि देख टाईमपास किया जाए। लेकिन मार पड़े मलेशिया एयरलाईन्स (Malaysia Airlines) को, न कोई ढ़ंग की या नई फ़िल्म उपलब्ध न ही टीवी शो, कुल मिलाकर ऑनबोर्ड एन्टरटेनमेण्ट रद्दी लायक। 😡 तो आखिरकार पॉवर नैप (power nap) लेने की सोची।

अभी आँख बंद ही करी थी कि विमान हिलने लगा और कप्तान साब ने अपनी टूटी फूटी फुसफुसाती अंग्रेज़ी में चेता दिया कि उठ जाओ कमबख्तों स्टेशन आ गया है। मन में एक ही विचार आया – ई मलेशिया एयरलाईन्स वाले जरूर किसी पिछले जन्म का बदला निकाल रहे हैं। 😈 बहरहाल हम विमान से उतर हवाई अड्डे में अंदर घुस गए। शौचालय अंकित थे और उन पर लिखी इबारत पढ़ मन में आया कि यहाँ अंग्रेज़ी अक्षर जानने वाले भारतीय को दिक्कत नहीं होती होगी, क्योंकि हिन्दुस्तान में कई जगह शौचालय को “संडास” कहा जाता है और इधर मलेशिया में ये लोग “टंडास” बोलते हैं। 😉

मनीष बाबू हमको थोड़े दुखियारे से दिखाई दिए, मैंने पूछा कि क्या बात है भई क्यों पाकिस्तान जैसी सूरत बना रखी है। पता चला कि उनका भी वही दुखड़ा था जो मेरा था, टाईमपास करने की सोचे तो कोई फिल्म नहीं ढंग की और निद्रा के लिए पर्याप्त समय नहीं मिला। 😕 अब क्योंकि डिनर के नाम पर हवाई जहाज़ में चिड़िया के चुग्गे समान भोजन मिलता है तो सबको भूख लग आई थी। स्टॉरबक्स पहुँचे तो वहाँ कॉफ़ी और फ़्री फ़ोकट वाई-फ़ाई मिल गया (मैं तुरंत फ़ोरस्कवेयर पर चैक-इन मारा और फ़ेसबुक पर छाप दिया कि कुआला लमपुर पहुँच गए हैं) परन्तु खाने के लिए मफ़िन्स (muffins) के अतिरिक्त कुछ नहीं था उनके पास। 🙄 विनायक ने सुझाव दिया कि चलो कुछ मलेशियन आज़माते हैं। तो रेस्त्राओं की कतार में बर्गर किंग के पास अपने को एक मलेशियन ठीया दिखा और कुछ अजीब से नाम वाला सामान मैंने ऑर्डर कर दिया। मेनू-कार्ड में फोटो तो अच्छी दिख रही थी लेकिन जब मामला सामने आया तो जमा नहीं। उसका स्वाद चखने के बाद तो कतई खान नहीं जमा। अब इसी बात से अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि वह चीज़ इतनी फ़ालतू थी कि मैंने उसका नाम याद रखना भी आवश्यक नहीं समझा। :tdown: इधर फ़ेसबुक पर उड़न-तश्तरी वाले समीर जी की टिप्पणी आई कि भई कुआला लमपुर में क्या बेच रहे हो। ये बात ज़रा देर से दिमाग में आई कि समीर जी तो उड़न-तश्तरी वाले हैं, इन्हीं को पहले बोल देते कि जनाब हमको बाली जाना है तो हो सकता है अपनी शानदार सवारी में हमको लिफ़्ट दे देते, हवाई जहाज़ बदलने वगैरह का टंटा नहीं रहता और पलक झपकते ही बाली पहुँच जाते। 😀

बहरहाल हमारा पुनः उड़ने का समय हो गया था और मलेशिया एयरलाईन्स का एक दूसरा विमान हम लोगों के विराजते ही बाली की ओर निकल पड़ा। चार घण्टे के इस सफ़र में थोड़ी ठीक से झपकी मार ली गई। जैसे ही न्गुरा राय अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे (Ngurah Rai International Airport) के आने की घोषणा हुई मैं सीधा होकर बैठ गया। सूरज चाचू काफ़ी ऊपर आ गए थे, खूब उजाला हो चला था। खिड़की के बाहर देखा तो बस देखता ही रह गया, बहुत ही शानदार नज़ारा था, दो तरफ़ महासागर और उसके पास ही हवाई पट्टी। :tup: हवाई अड्डे में अंदर गए तो वह भी शानदार बना हुआ था, कुआला लमपुर से तो बढ़िया ही लगा। लाईन में लग वीज़ा आदि का ठप्पा लगवाया (भारतीयों को आने पर उसी समय ३० दिन का टूरिस्ट वीज़ा मिल जाता है) और बाहर आकर विनायक और मैंने लोकल ३जी सिम कार्ड लिए (भई पाँच दिन इंटरनेट चाहिए न फोन में)। इतने में हमारे होटल वाला टैक्सी वाला मिल गया और हम २ गाड़ियों में लद होटल की ओर निकल लिए। रास्ते में मनीष ने ड्राईवर से पूछताछ करी तो पता चला कि हमारी इनोवा पेट्रोल पर चल रही है और बाली में पेट्रोल तकरीबन ३५ रूपए (भारतीय) लीटर है। मेरे और मनीष के मुँह से दो मिनट को तो कोई बोल न फूटा। ❗ इतने में हम होटल आ गए।

होटल वालों ने हमको हमारे विला (villa) तक पहुँचाया। विला देख के मन बाग़-बाग़ हो गया, विनायक बाबू ने कतई शानदार जगह चुनी थी। :tup:


( बाली में ऐमरॉल्ड विलाज़ (Emerald Villas) में हमारा विला )

विला में एक स्विमिंग पूल था, उसके बाजू में ही डॉयनिंग टेबल, फ़र्श सफ़ेद मार्बल का। एक ओर दीवार के साथ पेड़-पौधे लगे हुए थे। कुल मिलाकर ऐसा फ़ील आ रहा था कि मानो फ़्लॉरिडा (Florida) जैसी जगह पर किसी समग्गलर के बंगले में आ गए हों (अब थोड़ी पुरानी हॉलीवुड की फिल्मों में उन बंगलों को ऐसे ही दिखाया जाता था)। 😀 विला के ३ बेडरूम में से एक मैंने पकड़ लिया बाकी दोनो दास और शेवानी परिवार ने। लोकल समय के अनुसार दोपहर के कोई तीन बज चुके थे। तो अपने विला में ही लंच मंगवा लिया गया और टुन्न तो सभी वैसे ही हो रहे थे (थकान से भई), इसलिए सांयकाल मिलने का वायदा कर सभी अपने-२ कमरों में चले गए और अपन आकर (और अलार्म लगा कर) सो गए।

सांयकाल थोड़ा देर से उठना हुआ, तैयार होकर सभी निकल पड़े कि पैदल ही थोड़ा आसपास देखा जाए और फिर रात्रि भोज का बंदोबस्त किया जाए। एक रेस्तरां का विनायक ने पता किया कि वह बहुत शानदार है लेकिन वह बंद हो रहा था, रात्रि के दस बजे ही। ऐसा लगा कि बाली न आकर हम हरिद्वार-ऋषिकेश आ गए हैं जहाँ सब लोग रात्रि नौ-दस बजे सो जाते हैं क्योंकि सुबह ब्राह्म मुहूर्त में उठ कर पूजा-अर्चना करनी होती है। 🙄 बहरहाल, हम एक दूसरे रेस्तरां में पहुँचे, वह भी खाली था लेकिन पूछने पर पता चला कि अभी बंद नहीं हो रहा है। वहाँ खाना अच्छा था, खाने से अच्छा रेस्तरां का माहौल था।

अगले अंक में जारी …..