अपने देश में लोग बड़े ही निराले हैं, वेबसाईट बनवानी है तो उसको भी समझते हैं कि साग़-सब्ज़ी खरीद रहे हों….. क्या भाव दिया भैय्या?! ये ज़्यादातर ऐसे लोग होते हैं जिनको इन मामलों में चार आने की समझ नहीं होती। एक अलग तरीके का उदाहरण देखें तो मान लीजिए मारूति 800 या टाटा नैनो जैसी बजट गाड़ी चलाने वाला रॉल्स रॉयस या बेन्टली के शोरूम में चला जाता है तो वो वहाँ क्या पूछेगा? कितना माईलेज देती है भैय्या? 😀 इसी तर्ज़ पर एक विज्ञापन भी बना था, शायद मारूति का ही।

हुआ यूँ कि एक समूह में किसी ने वेबसाईट डिज़ाईनर का रेफ़रेन्स माँगा, एक मित्र ने किसी व्यक्ति का नाम सुझा दिया। खरीददार ने सप्लायर से पूछा कि भई कोई सैंपल दिखाओ तो उसने दिखा दिया। अब खरीददार ने पूछा क्या भाव तो सप्लायर ने बोला कि आपको क्या चाहिए यह समझे बिना भाव नहीं बता सकते। खरीददार अड़ गया, बोला कि वो सब छोड़ो आप ऐसे ही आईडिया दे दो बस। सप्लायर को लगा कि ये बंदा समय बर्बाद करेगा (ठीक भी है ऐसे लोगों के साथ काम करना बहुत आफ़त वाला काम होता है ऐसा मैं अपने निजि अनुभव से कह सकता हूँ) तो उसने हाथ जोड़ दिए कि माफ़ करो जनाब हम ऐसे काम नहीं करते। अब तो खरीददार को लगा कि उसकी तो बेइज़्ज़ती हो गई तो उसने सप्लायर को सरेआम अहंकारी, नामाकूल, कमीना आदि शानदार अलंकारों से नवाज़ दिया। 😈

आगे क्या हुआ? एक मोहतरमा ने अपनी सेवाएँ ऑफ़र करी, खरीददार ने फिर वही पूछा। मोहतरमा ने कहा कि आप संपर्क करने की जानकारी उपलब्ध कराएँ तो अपनी कंपनी का प्रोफाईल और कुछ सैंपल भेज दिए जाएँ। खरीददार इसमें खुश। हालांकि मोहतरमा ने भी यही दोहराया कि बिना खरीददार की आवश्यकता समझे भाव नहीं बताया जा सकता लेकिन इसमें खरीददार को कोई आपत्ति नहीं अब। पहले वाले सप्लायर ने जब यह कहा था तो वह अहंकारी और नामाकूल था! 🙄

सबक: जैसा कि श्रीमान काटजू ने कोई दो वर्ष पहले कहा था, 90% भारतीय मन्दबुद्धि/मूर्ख होते हैं। 😀