कल शनिवार को दिल्ली कॉमिक कॉन में जाना हुआ। दिल्ली में कॉमिक कॉन काफ़ी अर्से से लग रहा है लेकिन मेरा इससे पहले जाना हो ही नहीं पाया था, हर बार कुछ न कुछ फच्चर फंस जाता था। बहरहाल इस बार तो तय कर लिया था कि जाना ही जाना है – चाहे एक दिन ही जाएँ लेकिन 3 दिन का सुपरफैन वाला टिकट ले लिया था क्योंकि सुना था उसके साथ मिलने वाले गिफ़्ट बैग में अच्छा सामान होता है। 😁

तो कल सुबह गाड़ी पर सवार हो मैं और देवाशीष (साथ गया मेरा भाई) कॉमिक कॉन पहुँच गए। सुबह के समय ज्यादा भीड़ भाड़ नहीं थी और हम लोगों की एंट्री आराम से हो गई। एंट्री करते ही सामने मौजूद मारूति ब्रेज़्ज़ा के स्टॉल को नज़रअंदाज़ किया – वह भी कोई देखने की चीज़ है – ठीक है वह खुद एक बहुत बड़ा मज़ाक है लेकिन हम वहाँ कॉमेडी के लिए नहीं कॉमिक्स के लिए गए थे!! 😉

तो हम वो मज़ाक के स्टॉल के बगल में मौजूद राज कॉमिक्स बाय संजय गुप्ता के स्टॉल की ओर बढ़ गए। वहाँ कुछ कॉमिक्स के श्रद्धालु दिखे, और साथ ही मिले दो कॉमिक्स प्रेमी यूट्यूबर – “सब कुछ सिंह” वाले भानु प्रताप सिंह और “सेलिंग सोल” वाले ऋषभ पांडेय। पांडेय जी राज कॉमिक्स के स्टॉल पर हाथ बंटा रहे थे और शिद्दत से दुकानदारी में व्यस्त थे लेकिन बहुत गर्मजोशी से मिले – बन्दे मुझे बहुत बढ़िया लगे। 🙂 उनसे संजय जी के विषय में पूछा तो बोले कि अभी रास्ते में हैं थोड़ी देर में पहुँच जाएँगे। अब दो कॉमिक्स में मुझे दिलचस्पी थी लेकिन सोचा संजय जी आ जाएँगे तो उनसे मिल लेंगे, कॉमिक्स पर हस्ताक्षर भी ले लेंगे और एक उनकी ही छापी हुई कॉमिक्स श्रृंखला का मैंने नया रूप बनाया था तो उस पर भी उनके हस्ताक्षर लिए जाएँगे। उस कॉमिक्स श्रृंखला के लेखक तरुण कुमार वाही जी की भी वहाँ उपस्तिथि की आशा थी इसलिए उनके भी हस्ताक्षर उस पर ले लिए जाएँगे। तो पांडेय जी को हम पुनः लौट के आने का बोल आगे बढ़े।

रैंडम हाउस पेंगुइन के स्टॉल पर पहुँचे तो वहाँ डीसी और मार्वल के कॉमिक्स का जबरदस्त कलेक्शन मौजूद था। और इसी कारण वहाँ अच्छी खासी भीड़ भी थी। वहाँ पर फेसबुक पर एक कॉमिक्स ग्रुप के संचालक स्पर्श मुदगल से मिलना हुआ। ऑनलाइन फेसबुक ग्रुप में बातें हुई है लेकिन रूबरू स्पर्श से पहली बार मिलना हुआ था। अधिक बातें नहीं हो सकी क्योंकि भीड़ अधिक थी और स्पर्श वहाँ पेंगुइन के स्टॉल पर आधिकारिक रूप से उपस्थित थे, सोचा इनको काम धंधे से खींचना ठीक न होगा इसलिए विदा ले हम आगे बढ़े।

कॉमिक कॉन में जापानी ऐनिमे का जबरदस्त दबदबा था। एक पुराने सहकर्मी और मित्र विक्की से मिलना हुआ; उनकी बारह वर्षीय बिटिया जापानी ऐनिमे किरदार कांजीरो बनी हुई थी और अपनी कुछ अन्य सहेलियों साथ कॉमिक कॉन का लुत्फ़ उठा रही थी। फिर कुछ आगे स्टाल दिखे जहाँ जापानी ऐनिमे सम्बंधित कुछ कलेक्टिबल दिखाई दिए – वहाँ मैंने और देवाशीष ने अपनी पसंद की लघु-आकार की जापानी तलवारें (कटाना) ली।

कुछ आगे कुंज़ुम (kunzum) बुक स्टोर का स्टॉल दिखा और वहाँ उसके कर्ता-धर्ता अजय मिल गए। अजय मेरे पुराने मित्र हैं, तो मिलने के बाद उनको थोड़ा गलियाया गया की भई ऐसे व्यस्त हो कि एक अर्से से मिले भी नहीं हो। कुछ देर बातें हुई और फिर हमने सोचा कि चलो आज अजय को बक्श देते हैं, यह समय बंदा थोड़ा व्यस्त होगा। उसके कुछ आगे तदम गयादू अपने स्टॉल पर मिले – तदम एक बहुत ही प्रतिभाशाली कलाकार हैं और ये आजकल मार्वल की कॉमिक्स चित्रित कर रहे हैं।

घूमते फिरते हम होली काऊ के स्टॉल पर पहुंचे जहाँ पर विवेक गोयल से मिलना हुआ। विवेक एक बहुत ही बढ़िया कलाकार हैं और होली काऊ प्रकाशन के कर्ता-धर्ता भी हैं। इनके एक कॉमिक्स किरदार “अघोरी” की ओम्नीबस मैंने पिछले वर्ष ली थी, विवेक के हस्ताक्षर लेने के लिए उसे मैं साथ लाया था। उस पर विवेक के हस्ताक्षर लिए, विवेक के साथ फोटो भी लिया। इसके बाद विवेक ने एक अन्य किरदार “शैतान सिंह” का अपना हस्ताक्षरित ओम्नीबस मुझे चिपकाया। 😁

होली काऊ ने कुछ समय पहले “रावणायन” प्रकाशित की थी जो कि रामायण की कहानी रावण के नज़रिए से लिखी गई है एक कॉमिक्स के रूप में। देवाशीष को यह काफ़ी रुचिकर लगी – वहाँ विवेक के पास रावणायन के अंग्रेजी में एकल इशू ही थे – तो मैंने देवाशीष को विकल्प बताया कि यदि अंग्रेजी में पढ़नी है तो यह एकल इशू का सैट ले लो और यदि हिंदी में पढ़नी है तो इसका सम्पूर्ण संस्करण मेरे पास है घर से ले लेना। उसको भी लगा कि सम्पूर्ण संस्करण ही पढ़ना ठीक रहेगा।

गार्बेज बिन कॉमिक्स के स्टॉल पर उसके कर्ता-धर्ता और कलाकार मो. फ़ैज़ल उर्फ़ फ़ज़्ज़ी भाई से मुलाकात हुई। ये फेसबुक (और इंस्टाग्राम) पर एक ज़माने से कॉमिक्स स्ट्रिप बना रहे हैं और इनके शाहकार गुड्डू और शान से तो अब अपनी पुरानी पहचान है। वहीं उन्ही के पास नीलेश मकवाने जी से भी मुलाकात हो गई। नीलेश जी महाकाल के शहर उज्जैन के वासी हैं और कॉमिक्स अड्डा के नाम से कॉमिक्स का एक ऑनलाइन स्टोर चलाते हैं जो कि शायद आज के समय में भारत का सबसे बड़ा ऑनलाइन कॉमिक्स स्टोर है। अब धीरे-२ कॉमिक्स-अड्डा प्रकाशन की ओर भी कदम बढ़ा रहा है।

बाकी सब अन्य स्टॉल आदि पर विचर हम वापस राज कॉमिक्स के स्टॉल पर पहुँचे। अब कॉमिक कॉन में भीड़ काफ़ी बढ़ चुकी थी और राज कॉमिक्स के स्टॉल पर भी भीड़ बढ़ गई थी। संजय जी के नए प्रकाशन अल्फ़ा कॉमिक्स से प्रकाशित नए ग्राफ़िक नॉवेल “ऑपरेशन गंगा” और राज कॉमिक्स में उनके द्वारा प्रकाशित शक्तिरूपा के सम्पूर्ण संस्करण को मैंने उठाया और तुरंत जा कर उन दोनों पर उनके हस्ताक्षर ले लिए। “प्रोफेसर अश्वत्थामा” की ख्याति वाले “ऑपरेशन गंगा” के लेखक साहिल शर्मा से भी मिलने की इच्छा थी लेकिन वे उस समय वहाँ नहीं थे कहीं इधर-उधर हो लिए थे। इसी के साथ अपनी दूसरी वाली कॉमिक्स पर भी संजय जी और तरुण कुमार वाही जी के हस्ताक्षर लिए। अब देखा जाए तो राज कॉमिक्स मैं वर्ष 1990-91 से पढ़ रहा हूँ, वाही जी की लिखी बहुत सी कॉमिक्स पढ़ी हैं लेकिन इन दोनों से रूबरू मिलना 32-33 साल बाद हुआ। राज कॉमिक्स के स्टॉल पर कैश काउंटर जितनी व्यस्तता संजय जी की भी थी – उनसे मिलने वालों की लाइन लगी हुई थी जो उनके हस्ताक्षर अपनी कॉमिक्स पर चाहते थे और उनके साथ फोटो खिंचवाना चाहते थे। संजय जी बड़े ही सब्र के साथ प्रेम से सबके साथ फोटो खिंचवा रहे थे और बच्चों को टॉफियां दे रहे थे। मैंने दो बार उनके पास चक्कर लगा लिया ताकि दो बार टॉफियाँ ले ली जाएँ!! 😁

सब स्टॉल से हम दोनों भाई निपटे, जिनसे मिलने की चाह थी उन सब से और अन्य लोगों से मिल लिए। इसके बाद पेट पूजा करने की सोची तो खान-पान के इलाके की ओर बढ़ गए। लेकिन वहाँ अत्यधिक भीड़ देख हमने सोचा कि अब और कुछ नहीं है तो निकल लेते हैं, कहीं और जा कर तसल्ली से बैठ कर खाना खाया जाएगा। और इसी के साथ दिल्ली कॉमिक कॉन से हम दोनों भाइयों ने विदा ली।

कुल मिला कर दिल्ली कॉमिक कॉन का अनुभव अच्छा रहा। सुना है अमरीका में होने वाले कॉमिक कॉन का मामला और भी शानदार होता है। इन सब में सैन डिएगो वाला कॉमिक कॉन सबसे अधिक प्रसिद्ध है। कभी मौका लगा तो वहाँ जा कर भी देखा जाएगा।