असीमित क्या है? कुछ भी असीमित नहीं होता, हर चीज़ की एक सीमा होती है एक दायरा होता है। असीमित तो यह ब्रह्माण्ड भी नहीं है, इसका भी कोई न कोई छोर तो अवश्य है, वह बात अलग है कि अभी हमारी समझ और नज़र से दूर है।
लेकिन हम लोग यह सब जानते बूझते हुए भी मार्केटिंग वालों के “अनलिमिटेड …..” नामक इस नागपाश रुपी झांसे में फंस ही जाते हैं। “अनलिमिटेड” मानों हमारे कानों में कोई आकर्षण में लिप्त संगीत घोल देता है, बाज़ार ने इसे मंत्र बना दिया है और हम सब कुछ जानते बूझते हुए भी इस मंत्र के वशीभूत हो जाते हैं।
2000 के दशक के शुरूआती वर्षों में यदि आपको वेब होस्टिंग कंपनी से होस्टिंग सेवा लेनी होती थी तो अलग-२ प्लान की सीमाएँ निर्धारित होती थी कि इतना डिस्क स्पेस मिलेगा, इतना डाटा ट्रांसफर मिलेगा, आदि। फिर कुछ चालू टाइप कंपनियों ने अनलिमिटेड प्लान निकाले – अनलिमिटेड डिस्क स्पेस, अनलिमिटेड डाटा ट्रांसफर – जो सुनने में बहुत ही आकर्षक लगते थे। मेरे फ्रीलान्स के दिनों में क्लाइंट को समझाना पड़ता था कि अनलिमिटेड कुछ नहीं होता – सर्वर पर हार्डडिस्क तो एक तय सीमा की लगी हुई है, उस पर डाटा भरते जाओगे तो वो द्रौपदी की साड़ी की तरह अपने आप बड़ी तो नहीं होती जाएगी। यह सिर्फ़ एक झांसा है क्योंकि उन कंपनी वालों को पता है कि अनलिमिटेड का सुन के लोग आ जाएंगे जो 10-20 मेगाबाइट से अधिक प्रयोग नहीं करेंगे। तो ऐसे में यदि कुछेक ने 70-80 मेगाबाइट प्रयोग कर भी लिया तो क्या ही फ़र्क पड़ जाएगा।
कुछ समय बाद यह अनलिमिटेड की हवा इंटरनेट कनेक्शन देने वाली कंपनियों को लग गई। इंटरनेट सर्विस प्लान पर से डाटा ट्रांसफर की सीमा हटा दी गई (सिर्फ़ कहने मात्र को) और उनको अनलिमिटेड का चोगा ओढ़ा दिया गया। बड़ी कंपनियों में एयरटेल ऐसी पहली कंपनी थी जिसने फाइन प्रिंट में छोटा सा लिख दिया की यह अनलिमिटेड की बारात फेयर यूज़ पालिसी के अंतर्गत ही चलेगी और उसकी सीमा बता दी गई। यानी स्पीड प्लान के हिसाब से आएगी जब तक डाटा ट्रांसफर उस दायरे के अंदर है – जैसे ही दायरा लांघा वैसे ही स्पीड घट कर कछुए की चाल से भी कम हो जाएगी।
डेढ़ दशक बाद जिओ फाइबर आया तो उसने भी यही तरीका अपनाया – अनलिमिटेड डाटा ट्रांसफर लेकिन फेयर यूज़ के दायरे के अंदर ही।
आजकल अब AI आदि का ज़माना है, ChatGPT आदि की हवा है। लेकिन तरीका वही पुराना है – चाहे फ्री प्लान हो या रोकड़े वाला – दायरे सब पर हैं लेकिन छुपा कर रखे हैं। गोल मोल जलेबी टाइप भाषा में बता देते हैं की इस प्लान में थोड़ा मिलेगा, उससे बड़े वाले में थोड़ा ज़्यादा मिलेगा, उससे बड़े वाले में और ज़्यादा मिलेगा आदि। लेकिन कितना मिलेगा इस पर निल बटे सन्नाटा ही रहता है। प्लान के विवरण में कितनी खपत है, कितनी नहीं – सब कुछ जानबूझ कर धुंधला रखा जाता है। अब युक्ति यह होती है ऐसे में कि कंपनी अपने हिसाब से बिना किसी को बताए सीमाएँ निर्धारित कर सकती है क्योंकि सीमाओं का किसी को ज्ञान नहीं तो कम ज़्यादा होने का भी किसी को ख़ास पता नहीं चलेगा। आपसे कहा जाएगा कि “उपयोग सीमित नहीं है, लेकिन अत्यधिक प्रयोग की स्थिति में सिस्टम आपको प्राथमिकता कम देगा”। अब ये “अत्यधिक” कब होता है, कौन तय करता है, कैसे तय करता है – यह सब एक अइय्यार की अय्यारी माफ़िक है।
लेकिन बात सिर्फ तकनीक तक सीमित नहीं है।
जीवन में भी अनगिनत बार हम असीम की चाह रखते हैं। “सब कुछ” पाना चाहते हैं। करियर में असीम ऊँचाइयाँ, रिश्तों में असीम समझदारी, जीवन में असीम सुख और शांति। लेकिन हकीकत यह है कि हर चीज़ की एक थकावट होती है। ऊर्जा की, समय की, भावनाओं की। हम सीमाओं को नकारते हैं, मगर असल में सीमाएँ ही हमारे अनुभवों को अर्थ देती हैं।
एक बार कहीं पढ़ा था – “किसी भी चीज़ की कीमत उसकी सीमितता में है।” सोचने वाली बात है। सोने की कीमत इसीलिए है क्योंकि वह दुर्लभ है। वही बात समय पर लागू होती है – 24 घंटे ही हैं इसलिए हमें उन्हें बाँट कर, सहेज कर चलना पड़ता है। अगर दिन में 72 घंटे होते तो शायद हम थोड़े और आराम-पसंद और आलसी होते।
मेरा एक जानकार “अनलिमिटेड ओटीटी” सब्सक्रिप्शन के चक्कर में चार-पाँच ऐप्स लिए बैठा था। पर असल में समय की कमी के चलते वो सिर्फ एक शो ही देख पाता था। बाकी सब “देख लेंगे कभी” की कतार में महीनो से थे। अनलिमिटेड कंटेन्ट था, लेकिन देखने का समय सीमित। तो क्या वो अनलिमिटेड वाकई उपयोगी था?
हमारे रिश्तों में भी लोग चाहते हैं कि सामने वाला हमें बिना शर्त, बिना थके, हर हाल में समझे और स्वीकार करे। लेकिन क्या इंसान मशीन है? क्या भावनाओं का कोई “फेयर यूज़ पॉलिसी” नहीं होता?
दरअसल, अनलिमिटेड का आकर्षण एक तरह से हमारी असुरक्षा की उपज है कि कहीं कुछ छूट न जाए, कहीं किसी चीज़ की कमी न हो जाए। मगर ज़्यादा विकल्प मिलने से अक्सर निर्णय और कठिन हो जाता है। सीमाएँ कभी-२ जीवन को सरल बनाती हैं। जैसे एक तस्वीर की सुंदरता उसकी फ्रेमिंग में होती है, वैसे ही जीवन की भी।
तो अगली बार जब कोई “अनलिमिटेड” का लालच दे – डाटा हो या डिवाइस, ऑफर हो या अवसर – थोड़ा रुकिए, सोचिए। ये असीमितता भी किसी सीमा के भीतर ही होगी। बस उस सीमा को देखने और समझने की नज़र चाहिए।
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