आज आखिरकार संपूर्ण शक्तिरूपा पढ़ डाली। 2 वर्ष पहले दिसंबर 2023 के दिल्ली कॉमिक कॉन में संजय जी से उनके द्वारा प्रकाशित सम्पूर्ण शक्तिरूपा की हस्ताक्षरित प्रति ली थी। इससे पहले यथारूप संस्करण भी लिया था लेकिन पढ़ना हो नहीं पाया था। नया वाला संस्करण भी उस समय ले तो लिया था लेकिन पढ़ना इसको पिछले वर्ष जुलाई में ही शुरू किया था और कोई 20-25 पेज पढ़ रुक जाना पड़ा था। उसके बाद व्यस्तता के कारण आगे पढ़ना नहीं हुआ। अभी कुछ दिन पहले पुनः खोला तो कहानी याद ही नहीं थी। तो इस बार फ़िर से शुरुआत करी लेकिन इस बार 3-4 समय खण्डों में कॉफ़ी की चुस्कियों के साथ इसको पूरा पढ़ लिया।

इसकी कहानी मुझे कोई खास नहीं लगी और मज़ा नहीं आया। बीच में इसको रबड़ बैंड की तरह खींच दिया गया है और आख़िर में उसको पट से छोड़ समाप्त कर दिया गया है। ऐसा लगता है कि अनुपम जी (जो इसके चित्रकार और कहानीकार दोनों ही हैं) भी आख़िर में उक्ता गए थे कि बस बहुत हो गया अब ख़त्म करो!!

यह कांसेप्ट अच्छा है, कहानी और बेहतर हो सकती थी।

स्पॉइलर अलर्टयदि आपने यह श्रृंखला नहीं पढ़ी है और कहानी के स्पॉइलर नहीं चाहते हैं तो इसके आगे यह ब्लॉग पोस्ट न पढ़ें

इसकी कहानी ग्रीक मिथकों में मौजूद अमेज़ोन्स से प्रेरित है और फिर उसको आगे डेवेलप करके भारतीय मिथकों के रंग में रंगा गया है। लेकिन सबसे अटपटी बात मुझे जो लगी वह हड़बड़ी में किया गया अंत था।

कहानी में कई और जगह भी झोल मिल जाते हैं जैसे ध्रुव की शक्ति को शक्तिरूपा खींच कर स्त्रीभू के पुरुषों में वितरित कर देता है और ध्रुव की हालत अधमरी सी हो जाती है और फिर वह स्त्रीभू जाकर वहाँ की बलशाली स्त्रियों से लोहा ले रहा है। अमरीकी राष्ट्रपति को विवश कर नताशा नेटो आदि के हवाई जहाज़ बुलवा लेती है और फिर वो व्हाइट हॉउस के ऊपर चक्कर लगाने लग जाते हैं मक्खियों की तरह कि जब स्वामिनी का आदेश मिलेगा तब कुछ करेंगे। ये क्या बात हुई भई?! और फिर जब नताशा अपनी इस हवाई फ़ौज के साथ स्त्रीभू पहुँचती है (हवाई जहाज़ को स्केट बोर्ड की तरह प्रयोग कर) तो वहाँ प्रतीक्षा करती है कि स्त्रीभू से कोई आ नहीं रहा सामना करने। बहुत ही अधिक शिष्टाचार है जो रास्ते में एकदम से ही पैदा हो गया था क्योंकि इससे पहले तो यह गायब ही रहा है। और इतना सब हो चुकने के बाद अंततः फ़ौज नहीं लड़ती है वरन स्त्रीभू की शासक सरानी के साथ द्वंद्व युद्ध होता है – कम ऐट मी ब्रो!! और सबसे वाहियात तो अंत हुआ – सिंधु अपने पास वाला शक्तिरूपा भी सरानी को दे देती है और ध्रुव के आने पर देवीना और कौस्तुभा के साथ मिल के सिंधु सरानी को काबू में कर परास्त कर देती है। मतलब एक पल के लिए सोचिए – एक शक्तिरूपा पास में होने पर किसी स्त्री योद्धा से बड़े-२ भी पार नहीं पा रहे थे और यहाँ सरानी के पास दो शक्तिरूपा होने के बावजूद उसको ऐसे बाँध लेते हैं कि मानो कोई बेबस छोटा बालक हो। अरे कौन से लेवल का मज़ाक चल रहा है भई!!

प्रकाशन की बात करें तो रंग रोगन और इफेक्ट्स आदि अच्छे हैं। राज कॉमिक्स ने इससे बेहतर भी किए हैं तो उनके अपने स्तर के अनुसार भी बेहतरीन तो नहीं कह सकते लेकिन इसमें काम बुरा भी नहीं है। अच्छी बात यह लगी कि संजय जी ने इसको अपने प्रकाशन के नए साइज़ में निकाला और बड़े साइज़ में अनुपम जी के बनाए गए कई पैनल बहुत ही शानदार लग रहे हैं। शायद इसी कारण तीन अलग-२ कॉफ़ी शॉप में 3-4 अलग-२ लोगों ने उत्सुकतावश इसको मुझसे माँग कर देखा कि यह कौन सा ग्राफ़िक नॉवेल है।

मेरे ख्याल से राज कॉमिक्स को चाहिए कि अनुपम जी से कहानी लिखवाना बंद कर वास्तविक कहानीकारों से कहानी लिखवाया करें। अनुपम जी दिग्गज आर्टिस्ट हैं, उनकी चित्रकारी बहुत शानदार होती है लेकिन वे कहानीकार नहीं हैं। वह 90 के दशक की बात गयी जब कुछ भी ऊलजलूल डाल के कहानी परोस दी जाती थी, अब वह समय चला गया और पाठक वर्ग (चाहे बच्चे हों या वयस्क) कहानी में थोड़ी अक्ल और समझ और मेहनत की अपेक्षा रखता है न कि बेतरतीब फैले हुए रायते की।

मेरे अनुसार इससे पहले आई श्रंखला – बालचरित – इसके मुकाबले बहुत बेहतर लिखी हुई थी।

कहीं न कहीं मुझे लगता है कि संयुक्त राज कॉमिक्स के कर्ता धर्ताओं को यह लगा होगा कि शक्तिरूपा श्रंखला में दम नहीं और वह नहीं चलेगी इसलिए भी शायद इसको प्रकाशित नहीं किया गया था अन्यथा बन तो यह 2018 में गई थी और सिर्फ़ अंतिम भाग, मृत्युरूपा, पर ही रंग रोगन बाकी रह गया था। और दो वर्ष पहले यह प्रकाशित कर दी गई क्योंकि तब तो कॉमिक्स की माँग थी तो उस समय जो ऊलजलूल कॉमिक्स भी निकाली जा रही थी वह भी नास्टैल्जिया के नाम पर बिक रही थी।