ट्रेन स्टेशन से निकल चुकी है, आशीष की मेहरबानी से मेरा ट्रॉयपॉड उसकी गाड़ी में ही रह गया!!
On 08, Oct 2008 | 7 Comments | In कतरन | By amit
तीन महीने बाद कहीं हवाखोरी के लिए जाना होगा, आज सांयकाल की रवानगी, मन में उत्साह और समय शीघ्र बीते ऐसी बेचैनी – आखिर मन चंचल और बावरा है!!
ए नाइट इन ब्लॉगलैन्ड
On 04, Oct 2008 | 11 Comments | In Blogging, Mindless Rants, ब्लॉगिंग, फ़ालतू बड़बड़ | By amit
बुडापेस्ट में हवाखोरी करके वापस आए तीन महीने से थोड़ा अधिक समय बीत चुका है। इन तीन महीनों में कहीं हवाखोरी तो छोड़िए, घर से भी अधिक निकलना नहीं हुआ है, दफ़्तर के काम में इतना व्यस्त हो गया कि चार-पाँच घंटे सोना और फिर काम में लग जाना, वीकेन्ड को तो भूल ही जाओ! थोड़ा बहुत समय मिलता तो ब्लॉग नाम का कीड़ा काटता, पढ़ने से अधिक लिखकर अपनी फ्रसट्रेशन (frustration) का इलाज किया जाता। छह महीने के काम को तीन महीने में करना वाकई पागलपन है। अब मामला थोड़ा संयत होने लगा है, कल शाम को सॉफ़्टवेयर में एक और बग (bug) का समाधान निकाला, लेकिन अब आलस्य आ रहा था, घड़ी देखी तो जाना कि रात हो गई है, अब सोमवार को पैबंद (patch) लगाया जाएगा यह सोच बॉस को स्टेटस रिपोर्ट ईमेल करने जा रहा था। मन सोच रहा था कि चलो अब कम से कम दो दिन आराम मिलेगा, वीकेन्ड है कहीं नहीं जाना है इसलिए पूर्ण रूप से आराम किया जाएगा और फिर रविवार शाम को एक बंगाली मित्र ने अपने दौलतखाने पर तशरीफ़ लाने का न्यौता दिया है, वहाँ दुर्गा पूजा के लिए लग चुके पंडाल देखे जाएँगे, फोटू ली जाएँगी, एक से बढ़कर एक सजी धजी बंगाली सुन्दरियाँ होंगी….., तो ले जाएँगे तशरीफ़ वहाँ!! 😎
गनीमत है नैनो थी.....
On 03, Oct 2008 | 6 Comments | In Cartoon, Memories, Some Thoughts, Technology, कार्टून, कुछ विचार, टेक्नॉलोजी, यादें | By amit
परसों रात नींद नहीं आ रही थी तो ऐसे ही समय व्यतीत करने के लिए यह कार्टून बना लिया जो कि ठीक ठाक सा बन पड़ा। अब बन गया तो सोचा कि यहाँ ठेल दिया जाए। 😉
यह कार्टून हाथ से अपने मोबाइल फोन पर बनाया(हिन्दी पाठ बाद में कंप्यूटर पर लिखा)। एक दशक से भी अधिक हुआ जब आखिरी बार इस तरह हाथ से चित्रकारी की थी; आठवीं कक्षा के बाद कभी इस तरह मौका नहीं लगा क्योंकि उसके बाद कभी चित्रकला मेरा सबजेक्ट नहीं रहा। उस समय मोटे कागज़ की स्केच बुक (sketch book) में 2बी की पेन्सिल से स्केच (sketch) बनाया जाता था और अब स्टाईलस (stylus) द्वारा पीडीए (PDA) फोन की टचस्क्रीन (touchscreen) पर बनाया! उस समय बनाने के लिए जगह अधिक थी, अब एक छोटी सी स्क्रीन ही है। उस समय दो-तीन तरह की पेन्सिल साथ रखी जाती थी अलग-२ छीली हुई और अब एक स्टाईलस ही है और उसके दबाव की मोटाई को आराम से बदला जा सकता है। वाकई समय कितना बदल गया है! 🙂
On 02, Oct 2008 | 6 Comments | In कतरन | By amit
ट्विट्टर पर मोबाइल से पोस्ट करने के लिए PockeTwit एक बढिया टूल लग रहा है – यह पोस्ट उसी से कर रहा हूँ।
डिजिट ब्लॉग अब हिन्दी में
On 27, Sep 2008 | 5 Comments | In Blogging, ब्लॉगिंग | By amit
काफ़ी समय से यह विचार मन में था कि डिजिट ब्लॉग को पुनः चालू तो किया ही जाए, साथ ही उसका हिन्दी संस्करण भी निकाला जाए जिसमें न केवल अंग्रेज़ी संस्करण के लेखों के अनुवाद होंगे वरन् हिन्दी में मौलिक लेख भी होंगे।
अंततः काफ़ी विचार और मान-मनौव्वल के बाद पेश है डिजिट ब्लॉग (diGit Blog) का हिन्दी संस्करण। :tup:
दूसरों के ईमेल - इनकी बपौती
On 27, Sep 2008 | 12 Comments | In Mindless Rants, Satire, व्यंग्य, फ़ालतू बड़बड़ | By amit
अक्सर होता है कि मित्र और परिचित लोग ऐसे ईमेल भेजते हैं जो उन्होंने एकसाथ कई लोगों को भेजे होते हैं। एक मित्र सर्कल में तो ईमेल सामने रहें (यानि कि सब प्राप्तकर्ताओं को अन्य लोगों के ईमेल दिखाई दें) तो चल जाता है, क्योंकि वहाँ तो प्रायः सभी एक दूसरे से परिचित होते हैं और एक दूसरे के ईमेल उनके पास होते ही हैं। लेकिन कई बार ऐसा होता है कि जो ईमेल आया वह पचास अन्य लोगों को भी गया है और भेजने वाले के अतिरिक्त प्राप्तकर्ता कदाचित् ही किसी को जानता हो। ऐसे में श्रेयस्कर यही होता है कि भेजने वाला सभी को ब्लाइंड कार्बन कॉपी (BCC) भेजे ताकि किसी भी व्यक्ति को अन्य प्राप्तकर्ता का ईमेल न पता चले।
एक वर्ष.....
On 23, Sep 2008 | 17 Comments | In Some Thoughts, कुछ विचार | By amit
संसार रूपी कटु-वृक्ष के केवल दो फल ही अमृत समान हैं;
पहला, सुभाषितों का रसास्वाद और दूसरा, अच्छे लोगों की संगति।
— चाणक्य
एक वर्ष में कितना कुछ बदल जाता है, व्यक्ति पहले से अधिक समझदार(अथवा मूर्ख) हो जाता है, पहले से अधिक अनुभवी हो जाता है, आस पास के लोग बदल जाते हैं, स्वयं व्यक्ति पहले सा नहीं रहता। एक पड़ाव पार हुआ और अगले पड़ाव की यात्रा आरंभ हुई। :tup:
माइक्रोब्लॉगिंग का फंडा फॉर डमीज़.....
On 22, Sep 2008 | 15 Comments | In Blogging, ब्लॉगिंग | By amit
माइक्रोब्लॉगिंग? लो अब आप सोचने लग गए होंगे कि यह क्या नया शगूफ़ा आ गया!! अभी तो ब्लॉगिंग, और वह भी यूनिकोडित हिन्दी ब्लॉगिंग और उसके बाद हिन्दी मोब्लॉगिंग (Moblogging), के सदमे से ही न उबरे थे, अब यह नई आफ़त कहाँ से आ गई!!
तो आईये पहले ज़रा फटाफट जानते हैं कि यह माइक्रोब्लॉगिंग (Micro Blogging) आखिर है क्या। विकिपीडिया के अनुसार:
On 21, Sep 2008 | 3 Comments | In कतरन | By amit
हिन्दी में एक पोस्ट ट्विट्टर के मोबाइल संस्करण से जो कि देखने में बहुत बेकार है!!