कभी-२ ऐसा हो जाता है कि कोई व्यक्ति ईमेल भेजना किसी को चाहता है और गलती से भेज किसी अन्य को देता है। मैं स्पैम या विज्ञापन वाली ईमेलों की बात नहीं कर रहा, मैं ईमानदार गलती की बात कर रहा हूँ। जैसे कुछ समय पहले मुझसे हुआ था, पंकज भाई को ईमेल भेज रहा था लेकिन गलती से किसी अन्य का ईमेल टाइप हो गया और उन साहब को चला गया। उनका जवाबी ईमेल आया कि जिसमें उन्होंने कहा कि मैं शायद किसी और को ईमेल भेज रहा था और उनको भेज बैठा तो मुझे गलती का एहसास हुआ और उनसे माफ़ी माँग पंकज भाई को ईमेल पुनः भेजा। यह गलती हुई एक जैसे लगने वाले ईमेल पते के कारण। फोन पर यह आम बात होती है, रांग नंबर लग जाता है और आ भी जाता है।
कॉमिक्स कॉमिक्स और कॉमिक्स
On 10, Mar 2008 | 27 Comments | In Memories, यादें | By amit
परसों बताए रहे कि अपनी कॉमिक्स की लत की शुरुआत कैसे हुई।
पर हालात उस समय इतने भी बुरे नहीं हुए थे, शुरुआती दौर था, संक्रमण धीरे-२ बढ़ रहा था। अब मन में होता कि जेब खर्च बचाओ, होली-दीवाली पर जो पैसे मिलते उनको भी बचाओ और फिर सस्ते में पुरानी कॉमिक्स लाओ। डॉयमण्ड के चाचा चौधरी, बिल्लू, पिंकी और राजन इकबाल को जल्द ही विदा कह आगे बढ़े, तुलसी कॉमिक्स से उन दिनों तीन किरदार आते थे रेगुलर – जम्बू, तौसी और अंगारा।
दिन तो वो भी थे
On 08, Mar 2008 | 4 Comments | In Memories, यादें | By amit
चिट्ठाकार गूगल समूह में कॉमिक्स की बात क्या चली कि सभी को अपने दिन याद आ गए। इससे पहले तकरीबन दो साल पहले प्रतीक बाबू ने अपने अड्डे पर पोस्ट ठेल के सबको दिन याद दिलाए थे। पर इस बार तो यह शायद मियादी बुखार की तरह फैले, जीतू भाई और रवि जी अपने-२ अड्डों पर पोस्ट ठेल चुके हैं, एक मैंने भी यहाँ यह ठेल दी है, आगे पता नहीं कौन-२ चपेट में आता है। 😉
..... और मच गई लूट
On 07, Mar 2008 | 3 Comments | In Technology, टेक्नॉलोजी | By amit
नई टेक्नॉलोजी जब आती है तो कई बार विकल्पों के साथ आती है, कम से कम डाटा स्टोरेज और वीडियो स्टोरेज के मामले में ऐसा कहा जा सकता है। और जब एक ही चीज़ के भिन्न प्रकार हों तो होता है उनमें युद्ध – विजेता का हो जाता है एकाधिकार – क्योंकि एक से अधिक तलवारें एक म्यान में नहीं रह सकती।
कैसा युद्ध? अब मैंने तो सिर्फ़ पिछली बार के युद्ध के बारे में पढ़ा ही है क्योंकि अपन युद्ध के अंतिम दिनों में पैदा हुए थे और जब तक अपने को कुछ समझ आती तब तक युद्ध समाप्त हो चुका था। यह युद्ध था सोनी(Sony) और जेवीसी(JVC) के बीच वीडियो रिकॉर्डिंग फॉर्मेट(format) के कारण। सोनी(Sony) ने सन् 1975 में निकाला बीटामैक्स (Betamax) का वीडियो कैसेट और उसके एक वर्ष बाद जेवीसी(JVC) ने निकाला अपना वीएचएस (VHS) वीडियो कैसेट। क्या किसी को याद आ रहा है कि विजयी कौन हुआ था? 😉 लगभग एक दशक तक चली इस टेक्नॉलोजी की लड़ाई में आखिरकार जेवीसी(JVC) की तकनीक विजयी हुई और सोनी(Sony) का बीटामैक्स(Betamax) पिट गया। उसके बाद तकरीबन अगले एक दशक तक हर ओर वीएचएस(VHS) का राज रहा। डिजिटल टेक्नॉलोजी आई तो पहले आई वीडियो सीडी(Video CD) और फिर डीवीडी(DVD)। इस डीवीडी(DVD) में भी कई लोचे रहे, एक फॉर्मेट था DVD R+ और दूसरा DVD R- था, पर खैर इनके लोचे से आगे बढ़ते हैं।
ब्लॉगों की गली में टॉप 100 ब्लॉग
On 06, Mar 2008 | 18 Comments | In Blogging, Here & There, इधर उधर की, ब्लॉगिंग | By amit
यह ब्लॉगस्ट्रीट क्या है जी? किस तरह के ब्लॉगों की गली है? भारतीय ब्लॉगों की गली है या हर तरफ़ के ब्लॉगों की? इसकी एक शीर्ष के 100 ब्लॉगों की सूची है और एक 100 सबसे अधिक प्रभावशाली ब्लॉगों की।
अब इसकी 100 सबसे अधिक प्रभावशाली ब्लॉगों की सूची में तो न अपन हैं और न ही कोई अन्य हिन्दी ब्लॉग, पर शीर्ष के 100 ब्लॉगों की सूची में मेरा ब्लॉग भी है और अन्य तीन हिन्दी ब्लॉग भी हैं। हिन्दी का जो ब्लॉग सबसे ऊपर है वह है रवि जी का ब्लॉग 32वें स्थान पर, उसके बाद 62वें स्थान पर विराजमान है समीर जी की उड़नतश्तरी, तत्पश्चात 82वें स्थान पर है मेरा वर्डप्रैस.कॉम वाला ब्लॉग, और अंतिम हिन्दी ब्लॉग है 83वें स्थान पर अक्षरग्राम।
ठग बैंक और उनके धोखेबाज़ कर्मचारी
On 05, Mar 2008 | 7 Comments | In Mindless Rants, फ़ालतू बड़बड़ | By amit
अजय के अनुभव के बारे में जाना कि कैसे एबीएन ऐमरो (ABN Amro) बैंक के कर्मचारियों ने उनको ठगा। यह पढ़ मुझे लगता है कि अच्छा ही है कि मैंने हर बार एबीएन ऐमरो (ABN Amro) से फोन आने पर कॉल डिसकनेक्ट की। अभी कुछ दिन पहले ही उनके कॉलसेन्टर से फोन आने शुरु हुए थे कि कार्ड ले लो वगैरह और फिर आखिरकार मुझे कड़क होकर यह कहना पड़ा कि आइन्दा यदि फोन आया तो हैरेसमैन्ट (harassment) की शिकायत पुलिस में दर्ज करवा दूँगा। यह धमकी देने के बाद फोन आने बंद हुए।
लेट्स कनेक्ट
On 04, Mar 2008 | 2 Comments | In Uncategorized | By amit
पहले तो साथी ब्लॉगर अजय जैन को उनकी पहली किताब – लेट्स कनेक्ट: यूज़िंग लिंक्डइन टू गेट अहेड एट वर्क (Let’s Connect: Using Linkedin to get ahead at work) – छपने पर बधाई। आज की तारीख़ में लिंक्डइन (Linkedin) सबसे अधिक प्रसिद्ध प्रोफेशनल नेटवर्किंग (professional networking) वेबसाइट है। यहाँ प्रोफेशनल से मेरा अर्थ व्यवसायिक है। इससे पहले और बाद में अभी तक जितनी भी नेटवर्किंग वेबसाइट आई हैं वे या तो सोशल नेटवर्किंग(social networking) वेबसाइट हैं(जहाँ आप मित्र बनाते हैं एवं पुराने मित्रों के संपर्क में रहते हैं) अथवा डेटिंग वेबसाइट(dating website) हैं। लिंक्डइन (Linkedin) एक ऐसी वेबसाइट आई जिसका मकसद जीवन के कामकाज़ी आयाम में नेटवर्किंग कराना है, यहाँ आप अपनी प्रोफाइल बना अभी तक के अपने काम-काज़ी जीवन का अनुभव का ब्यौरा डालते हैं, यानि कि एक तरह से अपना रिज़्यूमे (Resumé) डालते हैं, अपने मित्रों, परिचितों तथा (वर्तमान एवं भूतकाल के)सहकर्मियों आदि का नेटवर्क बनाते हैं। इसी तरह के अपने तथा मित्रों आदि के नेटवर्क से होते हुए कोई आपको नौकरी देने की पेशकश कर सकता है या आपको सह-भागी बना किसी काम की पेशकश भी कर सकता है।
ई है हमार नया अड्डा
On 02, Mar 2008 | 16 Comments | In Blogging, Mindless Rants, ब्लॉगिंग, फ़ालतू बड़बड़ | By amit
कोई सवा दो वर्ष पहले, अक्तूबर 2005 में, मैंने वर्डप्रैस.कॉम पर अपना ब्लॉग उस समय रजिस्टर किया था जब वह बाज़ार में आई नई सेवा थी और उस समय की अन्य नई सेवाओं की भांति बिना न्योते के उस पर भी खाता नहीं बनाया जा सकता था। तब मैंने भी अपना ईमेल पता वहाँ कतार में लगाया था और कुछ समय बाद मुझे वह गोल्डन टिकिट मिला था जिससे मैंने वहाँ वह ब्लॉग बनाया था। उस समय इरादा तो उस पर कुछ करने का नहीं था सिवाय कुछ टैस्टिंग आदि करने के कि देखें वह क्या बला है और कितना अच्छा है। लेकिन फिर देवेन्द्र पारिख के हिन्दी राइटर का पता चला तो मैंने सोचा कि चलो एक ब्लॉग हिन्दी में बना लें, हिन्दी लिखने का अभ्यास जो दसवीं कक्षा के बाद छूट गया था वह वापस आ जाएगा, और यह सोच मैंने एक माह बाद अपना वह प्रथम हिन्दी ब्लॉग आरंभ किया था।
जोधा-अक़बर सिर्फ़ एक फिल्म है
On 27, Feb 2008 | 9 Comments | In Mindless Rants, Movies, फ़ालतू बड़बड़, फ़िल्में | By amit
अभी हाल ही में रिलीज़ हुई रितिक और ऐश्वर्य की फ़िल्म जोधा अक़बर को लेकर काफ़ी हल्ला हो चुका है। बहुतों का कहना है कि जोधा वास्तव में मुग़ल बादशाह अक़बर की शरीक-ए-हयात न थी वरन् उनके साहिबज़ादे और अगले मुग़ल बादशाह जहाँगीर की बेग़म थी। और ये कुछ लोग इसलिए आशुतोष गोवारिकर से खफ़ा हैं कि खामखा पुत्रवधु को ससुर की लुगाई करार दिया जा रहा है और इतिहास की वाट लगाई जा रही है।
बेक़रार करके हमें यूँ न जाईये .....
On 19, Feb 2008 | 2 Comments | In Music, संगीत | By amit
पिछला जो गाना अपने मोबाइल की रिंग बैक टोन/कॉलर ट्यून के रूप में सैट किया था वो माता जी को पसंद नहीं आया, बोलीं कि क्या रोता सा गाना लगा रखा है कुछ अच्छा सा खुशनुमा गीत लगाऊँ। तो मैं भी सोच में पड़ गया कि गाना तो बढ़िया है परन्तु जंच नहीं रहा, ऐसा एकाध मित्र ने भी कहा। तो अपन पुनः पहुँचे एमटीएनएल की प्लेट्यून्स वेबसाइट पर और लगा पुनः तलाशने किसी ढंग के गाने को। आजकल के जो नए गाने उसमें उपलब्ध हैं वो कुछ खास पसंद न आए तो पुराने गाने सुनने लगा। मन्ना डे, हेमंत कुमार और किशोर कुमार के कई गाने सुनने के बाद आखिरकार एक गाना पसंद आया हेमन्त कुमार का गाया हुआ सन् 1969 में आई फिल्म खामोशी का – तुम पुकार लो