Image Image Image Image Image
Scroll to Top

To Top

पाँच इंद्रियों का बाग़ - भाग २

पिछले भाग से जारी…..


( इस फोटो को कंप्यूटर पर सेपिआ [sepia] किया गया है )


( इस फोटो को कंप्यूटर पर श्वेत-श्याम [black & white] किया गया है, मूल फोटो यहाँ है )

इस बाग़ में लिए गए सभी फोटो यहाँ हैं

Click here to read full article »»

Tags | , , , , , , , , , , , , ,

पाँच इंद्रियों का बाग़ - भाग १

बीते दिनों में एक रविवार सुबह संतोष के साथ कुतुब मीनार के पास स्थित पाँच इंद्रियों के बाग़ यानि कि गॉर्डन ऑफ़ फाईव सेन्सेस (garden of five senses) जाना हुआ और वहाँ रंग-बिरंगे फूलों और तितलियों के साथ ही देखने को मिले अमूर्त कला (abstract art) के बढ़िया नमूने।


( इस फोटो को कंप्यूटर पर सेपिआ [sepia] किया गया है, मूल फोटो यहाँ है )

Click here to read full article »»

Tags | , , , , , , , , , ,

मैक्रो के खेल निराले .....

अभी हाल ही में मैक्रो(macro) तस्वीरों का विचार मन में समाया, कि मैक्रो(macro) पर हाथ आज़माया जाए। कुछेक मैक्रो तस्वीरें ली, लेकिन वो बात नहीं आ रही थी, अपने कैमरे के मैक्रो ऑटोफोकस में मैं सब्जैक्ट के सिर्फ़ पाँच सेन्टीमीटर निकट जा सकता था और ज़ूम बिलकुल नहीं कर सकता था, यह आम मामलों में बहुत अच्छा है लेकिन यदि आप किसी फूल के मध्य भाग का मैक्रो(macro) लेने का प्रयास कर रहे हैं तो दिक्कत है अथवा थोड़ी दूर से किसी चीज़ का फोटो लेने की सोच रहे हैं तब भी दिक्कत आ सकती है। जैसे यह निम्न फोटो मैंने बिना किसी मैक्रो(macro) लेन्स की सहायता के पिछले माह पालमपुर यात्रा के दौरान ली थी।

Click here to read full article »»

Tags | , , , , ,

पंद्रहवां कुतुब उत्सव .....

On 04, Oct 2007 | 7 Comments | In Music, संगीत | By amit

पिछले सप्ताहांत, 29 और 30 सितंबर 2007, पर दिल्ली पर्यटन विभाग ने पंद्रहवें वार्षिक कुतुब उत्सव का आयोजन दिल्ली में कुतुब मीनार के पीछे मौजूद रामलीला मैदान में किया था। दो शाम के इस उत्सव में कुल पाँच संगीतमयी कार्यक्रम हुए और इसके पास (pass) सभी के लिए मुफ़्त में उपलब्ध थे। समय से इसके पास (pass) न प्राप्त कर पाने बावजूद भी मैं, योगेश और मदन इस आशा में शनिवार सांय तकरीबन छह बजे कुतुब मीनार पहुँच गए कि कदाचित्‌ द्वार पर ही कुछ जुगाड़ हो जाए। किस्मत ज़ोरों पर थी, द्वार पर दिल्ली पर्यटन के स्टॉल पर से एक पास (pass) मिल गया और उसी पर हम तीनों को अंदर जाने दिया गया, अंदर कोई खास जनता नहीं पहुँची थी(कदाचित्‌ भारत और ऑस्ट्रेलिया के क्रिकेट मैच के कारण) और हमको प्रैस वालों के लिए आरक्षित बीचो-बीच स्टेज के सामने मौजूद बढ़िया सीटें मिल गई। हमने सोचा था कि कदाचित्‌ कैमरे अंदर नहीं ले जाने दिए जाएँगे, इसलिए चांस नहीं लिया और कैमरे नहीं लाए, लेकिन वहाँ पहुँच दिल्ली पर्यटन विभाग के एक अधिकारी से पता चला कि कैमरे वर्जित नहीं हैं।

Click here to read full article »»

Tags | , , , , , , , , , , , , ,

सस्तेलाल के लिए स्मार्ट फोन

पाँच-छह वर्ष पहले कॉलेज के दौरान मेरे जन्मदिन पर माँ ने मेरा पहला मोबाइल फोन, नोकिआ 3315, और मेरा मोबाइल कनेक्शन नंबर(जो आज भी वही है) मुझे उपहार स्वरूप दिया था। उस समय 3315 ही नोकिआ का सबसे सस्ता फोन उपलब्ध था जो कि चार हज़ार एक सौ रूपए देकर खरीदा था। मोबाइल फोनों के बारे में उस समय जानकारी बिलकुल नहीं थी(आज भी कोई खास नहीं है), फोन के साथ आए मैनुअल (manual) को पढ़कर एक घंटे के अंदर-२ फोन का पूर्ण प्रयोग करना सीखा था। उस समय अपनी मोबाइल ज़िंदगी श्वेत-श्याम ही थी, कुछ महीनों बाद एक क्लाइंट का नोकिआ 7250 फोन देखने को मिला था जिसमें रंगीन स्क्रीन थी, आकार छोटा था लेकिन कीमत (तकरीबन सत्ताईस हज़ार रूपए) बहुत बड़ी थी, वो बात अलग है कि ढाई वर्ष पूर्व 2005 में मैंने उसी का अगला वर्ज़न 7250i तकरीबन आठ हज़ार दो सौ रूपए में ब्रांड न्यू (brand new) लिया था जो आज भी मेरे पास है!! उसके कुछ समय बाद इससे भी महंगे और उच्च तकनीक वाले फोन मॉडलों के बारे में पता चला, इंटरनेट के माध्यम से उनके दर्शन भी किए और उनकी खूबियों के बारे में भी पढ़ा। स्मार्टफोन बाज़ार में थे लेकिन दाम बहुत उँचे थे!! हार्डवेयर के लगातर गिरते दामों को देख यह सांत्वना मन में थी कि कभी दाम इतने गिर जाएँगे कि ये अपने बजट में समा जाएँगे और ऐसा हुआ भी। पिछले वर्ष दिसंबर में जब मैं अपने लिए नया फोन देख रहा था तो नोकिआ एन सीरीज़ (n series) के एन70 म्यूज़िक एडिशन (N70 Music Edition) के कम दाम का पता चला तो उसे खरीद लिया, इस तरह यह मेरा पहला स्मार्ट फोन हुआ, लेकिन अधिकतर लोग जो कि आठ-नौ हज़ार से नीचे का ही बजट रखते हैं उनके लिए अभी भी दिल्ली दूर थी। इधर उन्नत होती तकनीक के कारण स्मार्ट फोन के मॉडलों का बाज़ार में जैसे सैलाब आ रहा हो, ओ२ हो या नोकिआ, मोटोरोला हो या सोनी-एरिक्सन, सभी अपने स्मार्ट फोन मॉडलों के उन्नत रूप कम दाम में बाज़ार में निकाल रहे हैं!! लेकिन ढंग के मॉडलों के दाम अभी भी दस हज़ार से ऊपर ही हैं।

Click here to read full article »»

Tags | , , ,

मोबाइल पर लिखी हिन्दी .....

पहले माँग थी कि मोबाइल पर हिन्दी चलनी चाहिए। जब इस वर्ष मई में मैंने मोबाइल फोन पर हिन्दी पाठ दिखा दिया तो उसके बाद मोबाइल फोन पर यूनिकोड हिन्दी में लिखने पर ज़ोर दिया जाने लगा। आज जगदीश जी ने अपने नए नवेले मोबाइल द्वारा जब अपने वर्डप्रैस.कॉम ब्लॉग पर हिन्दी लिख के दिखा दी तो मन बहुत प्रसन्न हुआ कि यह किला भी फतह हुआ। और जब उन्होंने लिखने का तरीका बताया तो मन और भी प्रसन्न हो गया, यह तरीका वही है जो मैंने अपने नोकिआ 7250i मोबाइल फोन पर प्रयोग किया था लेकिन पर्याप्त मेमोरी न होने के कारण उसमें एरर आ गया था और हिन्दी पोस्ट ब्लॉग पर प्रकाशित न हो पाई थी। चूंकि मैं निश्चित नहीं था कि इतने आसान तरीके से हिन्दी लिखी जा सकेगी, मैंने इस बात को तब तक किसी के साथ न बांटने का निश्चय किया जब तक मैं किसी ठोस नतीजे पर नहीं पहुँच जाता या कोई अन्य इस पर कुछ ठोस करके नहीं दिखाता। ब्लॉग पर पोस्ट नहीं हुई तो क्या हुआ, अभी-२ जगदीश जी को अपने नोकिआ 7250i से हिन्दी में एसएमएस(sms) भेजा और जगदीश जी ने तसदीक की कि उनको मेरे द्वारा हिन्दी में लिखा गया संदेश बिलकुल सही रूप में प्राप्त हुआ है और उनका उत्तर भी हिन्दी में आ गया जिसको मैं मोबाइल पर आराम से पढ़ पाया हूँ। 🙂

Click here to read full article »»

Tags | ,

क्रिकेटिया रस में डूबे कुछ यादगार पल .....

On 27, Sep 2007 | 7 Comments | In Memories, Sports, खेल, यादें | By amit

स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने बताया है कि आजकल क्रिकेटिया ज्वर चल रिया है, भारतीय जवान पहला २०-२० वाला अर्द्ध क्रिकेट विश्वकप जीत लाए हैं। अब इस पर भी प्रश्न हो रहे हैं, कोई कह रहा है कि हॉकी वालों को क्यों भूल गए और रईसों पर पैसे की बारिश क्यों तो दूसरी ओर कोई कुछ गरीब क्रिकेटरों के हक़ के लिए लड़ रहा है। इधर जीतू भाई अपने बचपन के बीते क्रिकेटिया दिनों में पहुँच गए तो मेरे को लगा कि क्रिकेट तो मैं भी काफ़ी खेला हूँ बचपन में, काफ़ी क्या जितना खेला हूँ उससे भी मन नहीं भरा!! 😉 दसवीं के बोर्ड की परीक्षाएँ चल रही थीं, अगले दिन परीक्षा होती, पाठ तैयार होता या न होता, क्रिकेट खेलने अवश्य पहुँच जाता और जब वापस आता तो माता जी से अपने लिए स्तुतिगान सुनता और झापड़ों का प्रसाद भी मिलता बकायदा!! 😉 इतना ही नहीं, रात को भी पूरा इंतज़ाम होता अंडर द लाइट्स (under the lights) खेलने का। 😉 अब क्या है, नानी जी की सोसायटी में ही अपने सारे यार दोस्त, साथ के भी, और बड़े (अकड़ू और खड़ूस)भईया लोग भी, और सोसायटी की एक इमारत में नीचे एक बड़ा सा हॉल(चार फ्लैटों के जितने एरिया में), उसी में मरकरी (mercury) लाईटें लगाई, बिजली के मेन्स में तार जोड़ी और एक क्रिकेट वाले नेट का जुगाड़ किया और रात को खेलने के लिए मामाला सेट!! अब क्या है कि इस हॉल के एक मुँह पर सोसायटी का खुला मध्य-भाग है और दूसरे मुँह पर एक मीटर दूर दीवार है, तो खुले मुँह पर नेट लगा दिया जाता ताकि गेंद अंधेरे में खो न जाए। 😉 फिर दो तरीके का क्रिकेट खेला जाता; लाँग पिच (long pitch) और शॉर्ट पिच (short pitch)। लाँग पिच में हॉल के एक मुँहाने पर बल्लेबाज़ होता और दूसरे पर से तेज़ गेन्दबाज़ी होती(गेन्दबाज़ बाहर से भाग के आता), वहीं दूसरी ओर शॉर्ट पिच तब खेलते जब खेलने वाले अधिक हों, तो लंबाई में खेलने की जगह चौड़ाई में खेला जाता, बायीं ओर की दीवार के पास बल्लेबाज़ और दायीं ओर की दीवार पर गेंदबाज़ बिना हाथ घुमाए स्पिन गेन्दबाज़ी करता और लेग साइड पर रन बनाने होते(कभी-२ इसको पलट कर ऑफ़ साइड रन बनाने वाला भी खेला जाता)।

Click here to read full article »»

Tags | ,

बीता एक और साल .....

 

एक बार में एक दिन जीयो; पीछे मुड़ देखकर दुख न करो क्योंकि जो बीत गया सो बीत गया, भविष्य के बारे में सोच चिन्तन न करो क्योंकि वह अभी आया नहीं है। आज को जीयो और उसको इतना अच्छा बनाओ कि वो यादगार बन जाए।

– अज्ञात

Click here to read full article »»

Tags | , , ,

लोमो

नहीं-२, यह कोई मोमो (momo) जैसा व्यंजन नहीं है जिसको बनाया और खाया। 😉 यह दरअसल नाम है रूस के एक कैमरा निर्माता का जो इसी नाम के कैमरे बाज़ार में लगभग पिछले सत्तर वर्षों से निकाल रहा है। शुरुआती दौर में सरकारी रही और 1993 में पब्लिक हुई यह कंपनी कहने को तो रूस की सबसे बड़ी ऑप्टिक निर्माता है लेकिन इसके कैमरे ज़रा अलग तरह के होते हैं। इसके कैमरे बहुत ही घटिया दर्जे के लेन्स प्रयोग करते हैं जिस कारण उनके द्वारा ली गई तस्वीरों में एक अलग बात होती है। इसके द्वारा ली गई तस्वीरें बहुत अच्छी क्या अच्छी भी नहीं आती, विग्नेटिंग दिखाई पड़ती है (यानि कि तस्वीर के बॉर्डर स्पष्ट नहीं होते, काले से होते हैं) और काफ़ी सैचुरेटिड (saturated) होती हैं यानि कि उनमें रंगों के कुछ शेड बहुत तीव्र होते हैं और तस्वीर बीच में से कुछ अधिक ही शॉर्प (sharp) होती है। लोमोग्राफ़ी के ऑस्ट्रियाई संस्थापक 1991 में चेकोस्लोवाकिया (czechoslovakia) की राजधानी प्राग (prague) के दौरे के दौरान लोमो कैमरे से रूबरू हुए और इस कैमरे से निकली धुंधली सी तस्वीरें उनको बहुत भा गई। उन्होंने इस तरह की तस्वीरों को कला के तौर पर बाज़ार में स्थापित किया और फिर लोमो कंपनी से एक करार किया जिसके तहत रूस के बाहर यह ऑस्ट्रियाई कंपनी लोमो कैमरों की एकलौती वितरक बनी।

Click here to read full article »»

Tags | , , , , , , , , , ,