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इट्स द इन थिंग!!

हर मूर्ख आज ब्लॉगर सिर्फ इसलिए बनना चाहता है ताकि ग्लोबल स्टेज का लाभ उठाए, सबको बताए कि वह कितना मूर्ख है! जय हो मूर्खता!!!

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गूगल की नई खरीद

काफी टैम से गूगल ने कोई खास वेब प्रापर्टी नहीं खरीदी थी, लगता है कि गूगल के खरीद-फरोख़्त डिपार्टमेन्ट वाले उपल्ब्ध ऑप्शन्स एनालाइज़(analyse) कर रिये थे। और आखिरकार कर ली, मेरा मतलब ऑप्शन्स एनालाइज़!! तो लो भई, अब गूगलवा ने खरीद लिया फीडबर्नर को, और यह खबर उनके मुख्यपृष्ठ पर भी दिखाई दे रही है। फीडबर्नर शिकागो स्थित वेबसाइट है जो कि फीड वितरण सेवाएँ उपलब्ध करवाने के साथ-२ उनमें विज्ञापन आदि की सेवाएँ भी उपलब्ध करवाती है।

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अल-जज़ीरा सबके लिए

विख्यात अरबी टीवी चैनल अल-जज़ीरा, जिसने ओसामा बिन लादेन के वीडियो दिखा ख्याति पाई, मध्य-पूर्व के बाहर सभी के टीवी सैटों पर नहीं आता। अब यह दूरी समाप्त हो गई क्योंकि अब इसके वीडियो यूट्यूब पर अंग्रेज़ी में यहाँ उपलब्ध हैं। (हैट टिप – मोहामिद)

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ओ बाज़ार में बैठे लोगों .....

अभी पिछले दो वर्षों में देशी और विदेशी कंपनियों के बड़े-२ स्टोर, मॉल आदि काफी तादाद में खुले हैं, धड़ाधड़ खुल रहे हैं और आगे भी खुलेंगे। उपभोग्ता वर्ग में बहुतों को इनके आने से प्रसन्नता हुई है, लेकिन कई देशी दुकानदारों आदि को बहुत टेन्शन हुई है और इस सबके खिलाफ़ बहुतों ने खुलकर अपना विरोध जताया है, कारण साफ है, ऐसे बड़े-२ स्टोर आने से उनकी दुकानदारी को खतरा है, अपना धंधा उनको बर्बाद होता दिखाई दे रहा है। इस विषय पर कई ब्लॉगर अपने विचार प्रस्तुत कर चुके हैं। लेकिन यदि इन दुकानदारों का धंधा बर्बाद हो रहा है या होने वाला है तो उसमें दोष किसका है?

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डोमेन कैसा लें और कहाँ से लें .....

श्रीश ने कहा कि डोमेन आदि कैसे लें इस पर मैं एक लेख लिखूं तो आज समय मिलने पर मैंने सोचा कि चलो इस काम को भी निपटा दिया जाए। 😉 वैसे मैंने इस पर कोई दो वर्ष पहले अंग्रेज़ी में लिखा था – Shopping for a Domain? How to? – तो सोचा कि उसी से माल मसाला लेकर आज के हिसाब से अपडेट कर छाप देते हैं!! 😉 तो प्रस्तुत है जो मुझसे बन पाया। 🙂

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तुन्गनाथ - भाग २

पिछले भाग से आगे …..

समीर जी ने पूछा कि नए स्लीपिंग बैग में ठंड झेल पाए कि नहीं, तो उसके संबन्ध में भी एक रोचक वाक्या हुआ। अब हुआ यूँ कि अपन नए स्लीपिंग बैग का कुछ अधिक ही भाव खा गए, और शुक्रवार की रात को केवल एक पतली सी टी-शर्ट और ट्रैक पैन्ट पहने ही घुस गए उसमें। थोड़ी देर बाद शरीर के ऊपरी भाग में ठंड सी लगने लगी, क्योंकि ऊपर से स्लीपिंग बैग खुला था!! जैकेट आदि पहन इसलिए नहीं सोया था कि सोचा स्लीपिंग बैग ही काफ़ी रहेगा!! 😉 तो गलती में कुछ सुधार करते हुए जैकेट को ओढ़ लिया और उसके बाद ठंड नहीं लगी!! 🙂 शनिवार की रात जो ऊपर तुन्गनाथ पर बिताई, तब तक समझ आ गई थी, इसलिए जैकेट और जुराब पहन के सोया था, बहुत गर्म सा रहा और अच्छी नींद आई, रविवार सुबह जल्दी ही उठ गया(बाकी सब मेरे से पहले उठ चुके थे) और अपने को बहुत तरोताज़ा महसूस किया। 😀

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तुन्गनाथ - भाग १

मई 2007 के दूसरे सप्ताहांत पर पुनः तुन्गनाथ जाने का कार्यक्रम बना। पिछली बार का हादसा याद था, लेकिन जोश बरकरार था और मन में नई उमंग थी। इस बार की अपनी यात्रा भी अलग होनी थी, इस बार तम्बू वगैरह लेकर चल रहे थे, पैक्ड रेडी-टू-ईट(ready-to-eat) खाना साथ था जो कि तुरन्त बनने वाली किस्म का था। तुन्गनाथ पर पिछली बार की ठंड का अनुभव होने के कारण मैंने यात्रा पर निकलने से पहले ला-फूमा का नया स्लीपिंग बैग खरीदा जो कि 5 डिग्री सेल्सियस से 0 डिग्री सेल्सियस तक का तापमान आराम से झेल लेता है; पहली रात तम्बू चोपता में लगाना था और समुद्र स्तर से लगभग साढ़े बारह हज़ार फीट की ऊँचाई पर रात को तापमान कम होने की पूरी आशा थी, मई में भी, क्योंकि इतनी उँचाई पर सारा साल ही ठंड रहती है। एक और खास बात यह थी कि यह व्हर्लविन्ड(whirlwind) यात्रा होनी थी क्योंकि यदि इसको आराम से करना हो तो चार दिन लगते हैं और हमे इसको तीन दिन में निपटाना था। 😉 इस बार दिल्ली से गाड़ी ले जाने की जगह हम हरिद्वार तक ट्रेन से गए और वहाँ से आगे जाने के लिए टाटा सूमो ली। केवल योगेश और मेरी ही यह तुन्गनाथ की दूसरी यात्रा थी, बाकी के पाँचों साथी पहली बार जा रहे थे।

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कोई खतरा नहीं आपको .....

क्या आपके पास अपना डोमेन है? क्या आपको लगता है कि कोई उसे हड़प लेगा? कैसे हड़प लेगा जी, कोई बाबा का राज है क्या!! इन प्रश्नों से अज्ञान मस्तिष्क उलझना आरम्भ कर देता है जब वह पढ़ता/सुनता है कि डोमेन हड़पना भी संभव है। लेकिन क्या ऐसा संभव है?? फिलिप जी ने लिखा है कि जाल लुटेरे आपका डोमेन लूट सकते हैं। अब उन्होंने यह तो बता दिया कि आपका कौन सा डोमेन आपके हाथ से निकल सकता है अर्थात्‌ कोई अन्य आपके डोमेन में क्यों रूचि ले सकता है लेकिन यह कैसे होगा तथा उनके साथ कैसे हुआ यह उन्होंने अभी नहीं बताया है, लेकिन मैं इस विषय पर अपने विचार यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ।

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मुक्तेश्वर - भाग ४

पिछले भाग से आगे …..

रविवार सुबह जल्द ही आँख खुल गई। लगभग सभी जाग गए थे; बाहर बाल्कनी में आकर देखा तो आज की सुबह आकाश पिछली सुबह के मुकाबले काफ़ी साफ था। इसलिए आज सामने स्थित पर्वत शिखरों की तस्वीरें बेहतर आईं। इतनी दूर होने पर भी नंदा देवी, चौखम्बा, त्रिशूल आदि इतनी पास लग रही थी कि मन कर रहा था कि हनुमान की भांति एक ही छलांग लगा किसी एक के शिखर पर लैंड कर जाओ। 😉

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मुक्तेश्वर - भाग ३

पिछले भाग से आगे …..

अगले दिन की सुबह बढ़िया थी, लेकिन हमारे पहली मंज़िल पर स्थित कमरे की बाल्कनी से सामने नंदादेवी, पूर्वी नंदादेवी, चौखम्बा, त्रिशूल आदि साफ़ नज़र नहीं आ रहे थे, उनकी शिखाओं को बादलों और धुंध ने घेर रखा था, बर्फ़ ने अपनी चादर से तो वैसे ढक ही रखा था। सुबह जल्दी ही निकलने का कार्यक्रम था, मेरे को नींद आ रही थी, जाने का मन नहीं था लेकिन मेरी एक नहीं चली, कह दिया गया कि यदि नींद आ रही है तो गाड़ी में सो जाउँ, जंगल वाले शॉर्टकट से जाने पर भी अल्मोड़ा पहुँचने में एक-डेढ़ घंटा तो लगेगा ही, तो हम लोग पौने आठ तक निकल लिए। लेकिन मेरा मन कुछ अजीब सा हो रहा था, उल्टी सी आने को हो रही थी, तबियत खराब लग रही थी। 🙁

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