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मुक्तेश्वर - भाग २

पिछले भाग से आगे …..

सारी रात शर्मा जी का संगीत सुनते-२ बीती, जब भी नींद आने लगती, एरिस के दूत मच्छर कान के पास अपनी म्यूज़िकल नाइट का आयोजन करने लगते। खैर, किसी तरह रात्रि बीती। सुबह हलद्वानी पर गाड़ी रूकी तो हम लोग भी उतर लिए। बस अड्डा रेलवे स्टेशन से लगभग एक किलोमीटर ही दूर है, लेकिन पता न होने के कारण ऑटो वाले ने हम लोगों से चालीस रूपए ऐंठ लिए। बस अड्डे पर पहुँच सभी ने थोड़ी पेट पूजा की, तकरीबन एक घंटा प्रतीक्षा के बाद दीपक का दोस्त मनोज भी चण्डीगढ़ से पहुँच गया। अब आगे जाने के लिए हम लोगों को एक गाड़ी चाहिए थी, मोलभाव के बाद आठ सौ रूपए प्रतिदिन(डीज़ल का खर्च अलग) पर एक टाटा सूमो मिल गई और हम लोग अपने रास्ते लग लिए।

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अलविदा .....

आज से ठीक 2 वर्ष और 6 माह पहले मैंने अपनी कमाई से अपनी पहली मोटरसाइकल खरीदी थी, एलएमएल ग्रैप्टर। ऑफिस और अन्य कहीं भी जाने के लिए बसों की भीड़ में धक्के खा-२ मैं तंग सा आ गया था इसलिए एक मोटरसाइकल लेने का निर्णय लिया था। दीपावली पास में थी तो माँ ने कहा कि धनतेरस वाले दिन खरीदूँ तो शुभ होगा। अब मेरा इन सब चीज़ों में विश्वास नहीं लेकिन उनका कहा न टालते हुए मैं 10 नवंबर सन्‌ 2004 को ऑफिस से आधे-दिन की छुट्टी लेकर पापा के साथ शोरूम गया और अपनी पहली मोटरसाइकल ले आया।

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चल गई ..... चल गई .....

अभी हाल ही की अपनी पोस्ट में मैंने अपने मोबाईल(नोकिआ एन 70) पर हिन्दी न चलने की समस्या के बारे में लिखा था। मेरे दूसरे मोबाईल, नोकिआ 7250i, में भी हिन्दी भाषा का विकल्प होने के बावजूद यूनिकोड हिन्दी ब्राउज़र में नहीं दिख रही थी।

अचानक ही एक दिन घूमते-घामते ऑपरा मिनी की वेबसाइट पर पहुँच गया। यह जावा में लिखा ऑपरा का मोबाईल के लिए फोकट वाला ब्राउज़र है, अन्यथा इसका रेगुलर ब्राउज़र फोकट नहीं है। जब देखा कि ऑपरा मिनी मेरे नोकिआ 7250i के लिए भी उपलब्ध है तो तुरंत इसको मोबाईल पर डाऊनलोड कर इंस्टॉल किया। सब हो चुकने के बाद मैंने सोचा कि इसमें भी ट्राई मार लिया जाए। मैंने स्पाईसी आइस ब्लॉग खोला और आश्चर्य, घोर आश्चर्य, जीतू भाई की टुन्डेनवाब वाली पोस्ट एकदम मस्त तरीके से दिखाई दे रही थी!!! मैंने सोचा कि पक्का कर लिया जाए और स्पाईसी आइस पर मैंने अपनी चाईनीज़ खाने वाली पोस्ट खोल कर देखी तो चित्र सहित वह एकदम सही दिखाई दे रही थी, कहीं कोई टूटा-फ़ूटा यूनिकोड नहीं दिखाई दे रहा था। पढ़ रहे हैं ना मिश्रा जी?? हिन्दी या तो बिलकुल नहीं दिखाई देती और यदि दिखाई देती है तो एकदम टनाटन!! ई है नोकिआ….. ई है नोकिआ….. ई है नोकिआ मेरी ऽऽऽ जान!! 😉 😀

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मूर्ख समझदार ??!!

क्या मेरा अनुभव ही ऐसा रहा है या वाकई में कॉल सेन्टर वाले और तकनीकी सपोर्ट वाले सभी लगभग मूर्ख होते हैं? कुछ सप्ताह पूर्व मैंने किसी पत्रिका में महानगर टेलीफोन निगम का विज्ञापन देखा था कि उनके जिन मोबाइल सेवा ग्राहकों ने जीपीआरएस सुविधा ले रखी है उनको एज्ज(EDGE) सेवा पर मुफ़्त अपग्रेड किया जाएगा। तो पहले तो मैं इस बारे में कुछ खास उत्साहित नहीं था क्योंकि मुझे लगा कि मेरे नोकिआ एन70 में यह तकनीक है ही नहीं, बेशक महानगर टेलीफोन निगम यह सुविधा प्रदान करने वाली भारत में पहली कंपनी होती। लेकिन कुछ दिन पहले मैंने नोकिआ की वेबसाइट पर देखा कि नोकिआ एन70 म्यूज़िक एडिशन(Nokia N70 Music Edition) में यह तकनीक है और मेरा फोन भी यही है, तो मैंने महानगर टेलीफोन निगम के कॉलसेन्टर में फोन लगाया यह पूछने के लिए कि यह सुविधा अपने आप चालू होती है या करवानी पड़ती है।

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मुक्तेश्वर - भाग १

On 25, Apr 2007 | 10 Comments | In Wanderer, घुमक्कड़ | By amit

खजुराहो और ओरछा घूमकर आए तकरीबन दो महीने हो गए थे, घुमक्कड़ कीड़ा कुलबुला रहा था। गुड फ़्राईडे वाले सप्ताहांत पर पुनः पहाड़ों में हो आने का कार्यक्रम बना, जगह चुनी गई अल्मोड़ा के थोड़ा आगे उपस्थित बिन्सर। ट्रेन की काठगोदाम तक की टिकटें करवा दी गई, अत्यधिक भीड़ होने के कारण वेटिंग लिस्ट में मिली। यहाँ पंगा हुआ, जाने की टिकट तो सही मिल गई, लेकिन हितेश ने रेलवे में अपने जिस जुगाड़ से टिकट करवाई थी उन सरकारी बाबू ने समझदारी दिखाते हुए सोचा कि रविवार को आठ नहीं सात तारीख है और इसलिए वापसी की उन्होंने सात तारीख की टिकट करवा दी!! अब वो टिकटें हमारे लिए बेकार, आठ तारीख की टिकटें उपलब्ध नहीं थी, इसलिए उनको तो कैन्सल करवाया और यही सोचा गया कि वापसी बस में ही करनी होगी। पर अभी बस कहाँ, कुमाऊँ मण्डल में पूछने पर पता चला कि उनके बिन्सर वाले यात्री निवास में जगह नहीं है, वहाँ मौजूद अन्य रहने के ठिकाने अपने बजट से थोड़ा ऊपर हो जाते और तम्बू आदि लगाने की वहाँ आज्ञा नहीं। दूसरी जगह के रूप में सितलाखेत सही लगा तो उसके बारे में जानकारी ली गई, लेकिन पुनः बात नहीं बनी। एकाध जगह और देखी लेकिन बात नहीं बनी, अपना पोपट होता नज़र आ रहा था, काठगोदाम के आजू-बाजू और जगह तलाशी जा रही थी वर्ना टिकटें कैन्सिल करवा कहीं और निकलना पड़ता। पुनः लान्सडौन वाली स्थिति हो गई थी। तभी नक्शे में मुक्तेश्वर दिखाई दिया और उसके बारे में पता किया, वहाँ के कुमाऊँ मण्डल के यात्री निवास में कठिनाई से एक चार बिस्तरों का फैमिली कक्ष और दो बिस्तरों का डीलक्स कक्ष मिला, कुछ भी हो अपना जुगाड़ तो हो गया।

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अब मोबाईल से भगाएँ मच्छर

आजकल तकनीक काफ़ी तरक्की पर है, कब कौन सा गुल देखने को मिल जाए कुछ कहा नहीं जा सकता। अभी कुछ दिन पहले ऐसे ही अपने सिम्बियन मोबाईल संबन्धी गूगल पर खोज कर रहा था कि यह एक मज़ेदार सॉफ़्टवेयर मिल गया जिसका नाम है मोस्कीटो नेट(mosquito net) यानि कि मच्छरदानी। अब यह सॉफ़्टवेयर मज़ेदार इसलिए नहीं है कि इसका नाम बढ़िया है बल्कि इसलिए है क्योंकि इसका काम रोचक है। यह आपके सिम्बियन फोन को मच्छर भगाने की मशीन बना देता है। कैसे?? बहुत ही सीधा सा वैज्ञानिक फ़न्डा है।

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खजुराहो और ओरछा - भाग २

पिछले भाग से जारी …..

( खजुराहो के पूर्वी भाग में स्थित जैन मंदिर )

( शिल्प कला के उत्कृष्ट नमूने )

( दूल्हा देव मंदिर )

( जावारी मंदिर )

( राम राजा मंदिर – ओरछा के इस मंदिर में राम राजा के रूप में पूजे जाते हैं, भगवान के रूप में नहीं। )

( सुबह सवेरे बेतवा नदी के किनारे )

( इस तस्वीर को लेने के लिए काफ़ी मशक्कत की, नदी के बीचो-बीच चिकने पत्थरों पर से होकर जाना पड़ा। एक अमेरिकन मिला था जाने से पहले जो कि फ़िसलकर गिरते-२ बचा था, उसी ने बताया कि जहाँ वह फ़िसला था वहाँ से अच्छा दृश्य दिखाई दे रहा है। )

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फैलता हुआ युद्धक्षेत्र

इंटरनेट पर सबसे अधिक प्रयोग होने वाला पोर्टल बनने की होड़ में सबसे आगे हैं तीन महारथी; याहू, गूगल और एमएसएन। अभी तक इनका युद्धक्षेत्र कंप्यूटरों तक ही सीमित था परन्तु नित नई तकनीक वाले मोबाईल फोनों के बाज़ार में उतरने और प्रयोगकर्ताओं के मोबाईल सेवाओं के प्रति जागृत होने से अब इस युद्धक्षेत्र का दायरा बढ़ रहा है और अब युद्ध मोबाईल फोनों पर भी होगा।

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खजुराहो और ओरछा - भाग १

15 फ़रवरी को दिल्ली से निकले और 16 फ़रवरी को खजुराहो पहुँच गए। इस बार यात्रा पर निकले सिर्फ़ मैं और योगेश, दिल्ली से झांसी और झांसी से वापस दिल्ली, बस ये दो ट्रेन की टिकटें पहले से आरक्षित करवाई थीं, इसके अतिरिक्त कहीं कोई बुकिंग नहीं, हम दोनों अपने-२ बैग उठाए चल दिए थे 3 दिन वाले सप्ताहांत की यात्रा पर, कार्यक्रम था खजुराहो और फिर ओरछा घूमने का।

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दूषित मानसिकता तथा पूर्वाग्रह

लोगों की मानसिकता कितनी दूषित है और कैसे वे पूर्वाग्रहों से ग्रसित हैं, इसके अनेकों उदाहरण मिल जाएँगे। इधर मैंने सोचा कि मोटापा कुछ अधिक बढ़ गया है, सुबह सवेरे की सैर से स्वास्थ्य लाभ किया जाए। यह सोच मैं सैर पर जाने के लिए कल सांय अडीडास के हल्के और आरामदायक जूते लेकर आया और आज सवेरे छह बजे के शुभ मुहूर्त में उनको पहन अपने घर के पास के डिस्ट्रिक्ट पार्क की ओर चल दिया। अब पार्क इतना बड़ा है कि इसका एक वृत्ताकार पूर्ण चक्कर एक मील(1.61 किलोमीटर) से कुछ मीटर अधिक है। मैंने सोचा कि इसके 3-4 चक्कर लगा कर घर चलेंगे, शुरुआत के लिए इतना काफ़ी है। 🙂

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