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दुनिया के अंतिम छोर पर .....

On 21, Mar 2007 | 4 Comments | In Movies, फ़िल्में | By amit

आहा, अभी पिछले दिसम्बर मैंने “पॉयरेट्स ऑफ़ द कैरिबियन – डैड मैन्स चैस्ट” (कैरिबियन के समुद्री डाकू – मुर्दे का संदूक) के बारे में बताया था कि वह कितनी सही फ़िल्म थी। और साथ ही यह भी बताया था कि इस शृंखला की अंतिम फ़िल्म “पॉयरेट्स ऑफ़ द कैरिबियन – ऐट वर्ल्ड्स एन्ड” (कैरिबियन के समुद्री डाकू – दुनिया के अंतिम छोर पर) से कितनी आशाएँ हैं, फ़िल्म का जबरदस्त होना तय सा है जो कि किसी भी शृंखला की अंतिम फ़िल्म को होना चाहिए। यह अंतिम फ़िल्म इस वर्ष 25 मई को रिलीज़ हो रही है और इसका ट्रेलर मैंने अभी-२ देखा है, वाकई बहुत सही लग रिया है। 😀 आप भी देखें।

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टेक्नॉलोजी का उत्तम प्रयोग ब्लॉगर भेंटवार्ता में

On 20, Mar 2007 | 9 Comments | In Blogger Meetups | By amit

शनिवार को आदतन देर से उठा, भई सप्ताहांत पर देर तक नहीं सोऊँगा तो कब सोने को मिलेगा!! लेकिन एक कारण यह भी था कि मैं देर से सोया था। बहरहाल, उठकर GTalk खोल बैठा था कि कोई टाईमपास को मिले, नीरज भाई दिख गए ऑनलाईन। थोड़ी देर इधर-उधर की बात की, तत्पश्चात मैंने पूछा कि क्या उनका अवकाश है तो बोले कि है। तो मैंने कहा कि भई मिलो फिर, तो उनका उत्तर था कि सायं पाँच बजे उनके घर पहुँच जाऊँ, सृजनशिल्पी जी और मैथिली जी को भी उन्होंने न्यौता दे दिया था। अब मैंने सोचा कि शनिवार है, सांय काल है, नोएडा जाने वाली ओर अधिक यातायात नहीं होगा, आधे घंटे में पहुँच जाउँगा, इसलिए ठीक साढ़े चार बजे घर से निकला। परन्तु मार पड़े बेवक्त के यातायात को और बेवकूफ़ लोगों को, सफ़दरजंग हस्पताल से पहले, साऊथ एक्स और आश्रम चौक के बाद ऐसा यातायात मिला(कई जगह तो खामखा का ठहराव था) कि खामखा का आधा घंटा बर्बाद हो गया और मैं पाँच बजकर बीस मिनट पर पहुँचा। इसी बीच रास्ते में नीरज भाई का फोन भी आ चुका था। बहरहाल नीरज भाई का घर ढूँढने में कोई दिक्कत नहीं आई। पहुँचकर पता चला कि (हर बार की तरह?)मैं ही सबसे पहले पहुँचा हूँ!! 😉

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समाज के सर्वज्ञ

जो कोई भी अख़बार आदि पढ़ता है अथवा टीवी पर समाचार चैनलों को झेलता है उसे कभी न कभी तो इस बात का एहसास होता ही होगा कि समाचार माध्यम पर जो बकवास की जा रही है उसका आगा-पीछा कुछ भी समाचार प्रस्तुत करने वाले को नहीं पता लेकिन फिर भी वह पिले जा रहा है, अपनी नौकरी बजाए जा रहा है, रिजक़ कमाए जा रहा है!! पत्रकार को जिस विषय की वह रिपोर्टिंग कर रहा है बहुतया उसके बारे में कुछ नहीं या बहुत कम ही पता होता है, लेकिन वह दर्शाता ऐसे है कि उससे अधिक उस विषय पर कोई नहीं बकवास कर सकता। ऐसा क्यों होता है? अब मेरी समझ में इसके केवल दो ही कारण आते हैं:

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6 घंटे चली दिल्ली की हिन्दी ब्लॉगर भेंटवार्ता .....

आज दोपहर 12 बजे क्नॉट प्लेस में वेन्गर के पास वाले एक कैफ़े कॉफ़ी डे में हिन्दी ब्लॉगर भेंटवार्ता का आयोजन निश्चित किया गया, तमाम सर्कुलर नोटिस आदि छाप फैला दिए गए थे। अब तुरत-फुरत ब्लॉगर भेंटवार्ता आयोजित की गई थी इसलिए कुछ लोग नहीं भी आ पाए। पर बहरहाल, मैं समय से पूरे 10 मिनट पहले कैफ़े में पहुँच गया और पंडित शिवकुमार शर्मा को सुन समय व्यतीत करने लगा। जब निर्धारित समय से बीस मिनट ऊपर हो गए और कोई नहीं आया तो मैंने जगदीश जी को फुनवा लगाया और उन्होंने कहा कि वे 10-15 मिनट में पहुँच रहे हैं। मैं आश्वस्त होकर बैठ गया कि सामूहिक रूप से मुझे उल्लू नहीं बनाया जा रहा और वाकई कोई भेंटवार्ता हो रही है। लेकिन उसके भी 25 मिनट ऊपर हो गए और कोई नहीं आया, न सृजनशिल्पी जी और न ही जगदीश जी(जिनको कि 10 मिनट पहले पहुँच जाना चाहिए था)! तो अब मैंने नीरज बाबू को फोन लगाया और उनसे पूछा कि वे कहाँ हैं। उनका तो भेंटवार्ता में आने का कार्यक्रम ही नहीं था क्योंकि वे ऑफ़िस में नौकरी बजा रहे थे, तो ऐसे ही उनसे बात होने लगी और फिर मैंने अपनी खीज व्यक्त की कि एक घंटा होने को आया और कोई भी नहीं आया अभी तक, स्वयं आयोजक सृजनशिल्पी जी तक नदारद थे। इसी बीच मैंने एक कॉफ़ी मंगवा ली थी और शनिवार के एक अख़बार में कुछ समाचारों को पढ़ते हुए कुछ नोट्स बना रहा था(उनसे एक पोस्ट लिखूँगा शीघ्र ही)। अभी नीरज बाबू से बतिया ही रहा था कि यदि अगले पाँच मिनट तक कोई नहीं आया तो मैं निकल लूँगा क्योंकि मुझे लग रहा था कि मुझे उल्लू बनाया गया है, जगदीश जी मुझे आते दिखाई पड़े। आते ही उन्होंने बताया कि पास ही में मौजूद दूसरे कैफ़े कॉफ़ी डे में सभी लोग जमा हो गए हैं। मैं अवाक्‌ रह गया क्योंकि दिशानिर्देश तो मैंने इसी कैफ़े के दिए थे तो सभी कहाँ पहुँच गए!! खैर बहरहाल, मैं अपनी कॉफ़ी का भुगतान कर जगदीश जी और मसिजीवी साहब के साथ हो लिया।

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वीर योद्धाओं के देश में - भाग ४

On 10, Mar 2007 | 4 Comments | In Wanderer, घुमक्कड़ | By amit

पिछले अंक से आगे …..

सावित्री मंदिर से नीचे आकर हम प्रसिद्ध ब्रह्मा मंदिर की ओर बढ़ चले। वैसे प्रचलित मान्यताओं के अनुसार रचियता ब्रह्मा का संसार में एक ही मंदिर है और वह पुष्कर में है, लेकिन बाद में एन्सी ने खोज करके बताया कि यह सत्य नहीं है, ब्रह्मा के और भी मंदिर हैं। बहरहाल, हम मंदिर हो आए और वहाँ तस्वीरें भी लीं।

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In Uncategorized

By amit

अंधा है कानून ..... गुंडों का है राज

On 02, Mar 2007 | 16 Comments | In Uncategorized | By amit

बहुत लोग कहते हैं कि हमारा देश तरक्की पर है। कुछ लोग इसको यथार्थ के रूप में कहते हैं और कुछ इसको व्यंग्य के तौर पर। जो लोग व्यंग्य के तौर पर कहते हैं उनमें से कुछ का इशारा कदाचित्‌ इसी ओर होता है। साठ साल पहले हमने लड़-झगड़कर अंग्रेज़ों से देश को आज़ाद करवा लिया, परन्तु क्या हम सही मायने में आज़ाद हुए? यदि समाज और उस पर राज करते कीड़ों को देखो तो एहसास होता है कि आज़ादी अंग्रेज़ों से तो मिल गई परन्तु उनकी जगह देशी तानाशाह आ गए, आज़ाद तो हम हुए नहीं, सिर्फ़ गुलामी की रस्सी, नाक की नकेल में बंधी, एक के हाथ से निकल दूसरे के हाथ में चली गई, और अभी भी भारत में हैं अंधेर राज।

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क्रेडिट कार्ड ले लो ..... लोन ले लो लोन

यह क्या हो रहा है? कभी सुना था कि अमेरिका में टेलीमार्केटिंग तथा डोर-टू-डोर सेल्समैन/सेल्सवूमन परेशान करते हैं लेकिन अब यही चलन यहाँ भारत में भी चल निकला है!!! किसी को नया फ़ोन कनेक्शन लिए अभी एक दिन नहीं होता कि सबसे पहले घंटी बजाने वाला कोई न कोई टेलीमार्केटिंग वाला होता है। अभी मैंने कुछ समय पहले ऑफ़िस के कार्य के लिए आईडिया वालों का नया कनेक्शन लिया केवल जीपीआरएस(GPRS) सुविधा के लिए और कनेक्शन चालू होते ही पहला फ़ोन बजा एयरटेल वालों के यहाँ से, उनके कॉल-सेन्टर वाली मोहतरमा ने मुझसे पूछा कि क्या मैं उनका(एयरटेल) वालों का पोस्ट-पेड कनेक्शन लेना चाहूँगा!! मन तो किया कि उसे चार गाली सुनाऊँ और फ़ोन काट दूँ, लेकिन उसको प्यार-मोहब्बत वाली भाषा में समझाया कि पुनः इस नंबर पर फ़ोन न करे!!

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संगीत के उस्ताद

On 26, Feb 2007 | 8 Comments | In Music, संगीत | By amit

लगभग एक माह पहले मेरे इनबॉक्स में एक विज्ञापन वाली ईमेल आई। अब वैसे तो रोज़ ही कई सौ आती हैं लेकिन यह उन जैसी नहीं थी। यह इंडिया टुडे वालों की ओर से आई थी जिसमें उन्होंने मुझे इंडिया टुडे बुक क्लब की सदस्यता ऑफ़र की। शर्त यह थी कि उनके कैटालॉग में से मैं कोई भी दो पुस्तकें अथवा संगीत की सीडी खरीदूँ, वे मुझे उसी कैटालॉग में से मेरी पसंद की कोई चार पुस्तकें अथवा सीडी मुफ़्त में देंगे और साथ में सदस्यता भी जिसके अंतर्गत मैं भविष्य में हर खरीद पर छूट प्राप्त करूँगा।

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वीर योद्धाओं के देश में - भाग ३

On 26, Feb 2007 | 7 Comments | In Wanderer, घुमक्कड़ | By amit

पिछले अंक से आगे …..

सुबह उठ सभी जल्दी तैयार हुए और होटल में ही तुरन्त नाश्ता निपटा के दरगाह शरीफ़ की ओर निकल पड़े। पार्किंग में गाड़ी खड़ी कर हम लोग दरगाह की ओर चल पड़े। बाज़ार में हितेश और योगेश ने सुन्दर सी टोपियाँ खरीदीं।

( दरगाह में जाने के लिए तैयार )

हितेश तो लाल रंग की जैकेट, अपनी टोपी और धूप के चश्में के कारण किसी फिल्म का हीरो टाईप ऑटो ड्राईवर लग रिया था!! 😉 हमको बाज़ार में ही एक साहब मिले जो हमारा मार्गदर्शन करते हुए हमें दरगाह तक ले गए। दरगाह पर चढ़ाने के लिए चादर आदि ले कर हमने दरगाह में प्रवेश किया, वे साहब निरंतर हमारे साथ मार्गदर्शन करते हुए चल रहे थे। फ़िर एक जगह अंदर अंदर प्रवेशद्वार पर वे रूके, वहाँ बैठे मुल्ला जी ने हमें अपने सामने बिठा हमसे अजमेर शरीफ़ के दरबार में दुआ मंगवाई।

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वीर योद्धाओं के देश में - भाग २

On 11, Feb 2007 | 7 Comments | In Wanderer, घुमक्कड़ | By amit

पिछले अंक से आगे …..

तारागढ़ में मैंने कुछ अच्छी तस्वीरें ली थीं परन्तु फिर भी मन थोड़ा खिन्न था, कदाचित्‌ किले की अनुपस्थिती देख। बहरहाल अब हम तारागढ़ से नीचे वापस अजमेर में आ गए और पता पूछते हुए अना सागर के नाम से प्रसिद्ध कृत्रिम तालाब की ओर बढ़ चले। वहाँ पहुँच के लगा कि पहले भोजन कर लिया जाए, लगभग सभी क्षुधा पीड़ित थे, तो पास ही मौजूद “पंडित भोजनालय” में जाने की सोची। लेकिन वहाँ अंदर जाकर कुछ का मन बदल गया, वहाँ खाने का उनका मन नहीं था, लेकिन हमारे ड्राईवर साहब अपने भोजन का ऑर्डर दे चुके थे, तो इसलिए हम लोग भी बैठ गए कि जैसे ही वे अपना भोजन समाप्त करेंगे तो हम चल के किसी अन्य रेस्तरां में भोजन लेंगे।

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