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पाँच बातें

हद हो गई, जीवन कितनी शांति से मस्त चल रहा था, अचानक ही बेन ने मुझे टैग कर दिया!! चलो अब कर दिया तो कर दिया, निपट लेते हैं!! 😉

वैसे पिछली बार अल्का जी ने मुझे खूब फ़ंसाया था टैग कर, लेकिन इस बार मामला थोड़ा आसान है!! 😉 इस बार सिर्फ़ अपने बारे में पाँच ऐसी बातें बतानी हैं जो आमतौर पर अन्य लोगों(यानि कि आपके ब्लॉग के पाठकों) को नहीं पता!! तो अर्ज़ करते हैं:

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वीर योद्धाओं के देश में - भाग १

On 03, Feb 2007 | 4 Comments | In Wanderer, घुमक्कड़ | By amit

अभी हाल ही में, यानि कि कुछ दिन पहले ही, पर्वतों में नव-वर्ष का स्वागत किया परन्तु घूमने फ़िरने का कीड़ा पुनः कुलबुला रहा था, इसलिए फिर कहीं घूम आने की सोची। इस बार किसी पर्वतीय स्थल की ओर न जाने का निर्णय लिया, सर्दियों का मौसम है इसलिए धूप से नहाया राजस्थान हमें आवाज़ दे बुला रहा था। पिछले वर्ष नवंबर के अंत में उर्स के दौरान जहाँ हम न जा पाए, उस वीरों के देश अजमेर घूम आने का हमने मन और प्रोग्राम बनाया। जैसे कि अब आदत हो गई है और जैसा कि अब अपेक्षित रहता है, इस यात्रा के आरम्भ में भी वही पुरानी नौटंकियाँ हुई, कलाकार लोगों की आदत आराम से थोड़े ही छूटती है!! 😉 बहरहाल, हमेशा की तरह अपना इरादा पक्का था, साथ देने वालों की कमी नहीं थी, तो अपना रायता नहीं बिखरा। 26 जनवरी का शुक्रवार था, इसलिए तीन दिन की सप्ताहांत की छुट्टी थी, तो मैं, योगेश, एन्सी और शोभना 25 जनवरी की रात को अजमेर की ओर निकल पड़े। साथ में एन्सी के मित्र मनीष भी थे जो अपने घर जयपुर जा रहे थे, अब चूँकि जयपुर अजमेर के रास्ते में ही पड़ता है इसलिए हमने उनको जयपुर तक लिफ़्ट देना सहर्ष स्वीकार लिया। स्निग्धा और हितेश 26 की शाम तक अजमेर पहुँचने वाले थे क्योंकि स्निग्धा की बंगलूरू से दिल्ली की उड़ान 26 तारीख़ की सुबह की थी।

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पर्वतों में नव वर्ष - भाग ३

On 01, Feb 2007 | 6 Comments | In Wanderer, घुमक्कड़ | By amit

पिछले भाग से आगे …..

अगले दिन सुबह जल्दी उठ सभी तैयार हुए, नाश्ता कर वापसी की राह पकड़ने को सभी आतुर थे। लेकिन जल्दी निकलना कदाचित्‌ किस्मत में नहीं था, रिसॉर्ट वाले से पंगा हो गया। दिल्ली से जब बुकिंग करवाई थी तो उसने कमरों का किराया 1000 रूपये प्रति दिन के हिसाब से बताया था और बिल में उसने उनके 1800 और 2800 रूपये लगा दिए थे यह कहकर कि 1000 वाले कमरे उपलब्ध नहीं थे। कहने का अर्थ यह कि हमें उसके अनुसार महंगे कमरे में ठहरा दिया और हमें बताना भी उचित नहीं समझा कि जो कमरे हमें दिए जा रहे हैं वे महंगे हैं!! बिल की जाँच करने से पता चला कि साहब ने खाने-पीने के बिल इत्यादि जोड़ने में भी घपला किया हुआ था, 1000 रूपये खामखा के अधिक लगा रखे थे। तो बस बिल को लेकर तकरीबन एक घंटा बहस हुई और फ़िर हम अपने मन मुताबिक पैसे देकर वहाँ से चल दिए। लान्सडौन जाने वाले ध्यान रखें, इस अनुभव के आधार पर मैं रिट्रीट आनंद नामक जंगल रिसॉर्ट में रहने की किसी को सलाह नहीं दूँगा, वहाँ अन्य होटल आदि भी हैं, गढ़वाल मण्डल वालों का यात्री निवास भी है जहाँ ठहरा जा सकता है।

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हिन्दी में बात करके प्रसन्नता होगी .....

पहले भी कई बार लिखा जा चुका है, मैंने भी लिखा है तथा अन्य लोगों ने भी लिखा है, कि क्या कारण हो सकते हैं कि लोग हिन्दी जानते हुए भी हिन्दी में बात नहीं करते। जब भी किसी अच्छे हाई-फ़ाई रेस्तरां में जाता हूँ और वहाँ पर पूछा जाता है:

हैलो सर! व्हॉट वुड यू लाईक टु हैव?

या किसी अन्य संस्थान में जाओ तो वहाँ पर स्वागत कक्ष में बैठी महिला पूछतीं हैं:

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अपना नाम स्वयं कैसे खराब करें?

क्या सिर्फ़ मेरा तजुर्बा ऐसा रहा है या वाकई भारतीय व्यवसायिक वेबसाइटें ऐसी हरकतें करती हैं जो कि समझदारी से बहुत दूर होती हैं?? पिछले कई वर्षों में ऐसे कई नमूने देखे हैं, अब ताज़ा तरीन नमूना पेश-ए-खिदमत है।

कुछ अरसा पहले वेबचटनी नामक कंपनी ने बड़े धूम धड़ाके के साथ एक ट्रैवल संबन्धी वेबसाइट ओके टाटा बॉय बॉय आरम्भ की थी जिसे वे लोग आज भी भारत की पहली ऑनलाइन ट्रैवल बिरादरी कहते है। अब कहने को तो हर कोई अपने को पहल करने वाला कहता है तो इसलिए इनके इस दावे को चुनौती नहीं दे रहा, लेकिन अब कोई खुद ही अपना नाम डुबाने की कोशिश करे तो क्या करें? इस वेबसाइट से कभी कभार विज्ञापन वाली ईमेल भेजी जाती है जिसमें वेबसाइट पर कुछ नया आरम्भ होने या किसी और बात की जानकारी दी जाती है। यहाँ तक तो सब ठीक है लेकिन समस्या आगे आती है। अब पता नहीं यह प्रबंधक समिति की समझदारी है या इस वेबसाइट के तकनीकी पक्ष संभालने वालों की, ये लोग ईमेल में अपना पता(जहाँ से ईमेल आई है) हमेशा गलत डालते हैं। पहले याहू/जीमेल जैसी मुफ़्त वाली ईमेल दिखाते थे और हर बार याहू के स्पैम फ़िल्टर उस ईमेल को स्पैम समझ इन्बॉक्स के बाहर बिठा देते थे।

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ग्लोबल वायसिस में हिन्दी

ग्लोबल वायसिस हॉर्वर्ड लॉ स्कूल के बर्कमैन सेन्टर फ़ॉर इंटरनेट एण्ड सोसाईटी द्वारा स्थापित एक अव्यवसायिक संस्था है जिसका उद्देश्य(कम शब्दों में) दुनिया के अलग अलग कोनों से लोगों के विचार ब्लॉग, पॉडकॉस्ट आदि द्वारा सभी तक पहुँचाना है। विश्व के अलग अलग हिस्सों के अलग अलग संपादक और लेखक हैं जो अपने अपने प्रांतों में हो रहे ब्लॉग संवाद आदि को अंग्रेज़ी में ग्लोबल वायसिस के ब्लॉग द्वारा बताते हैं।
(अब मैं उनके बारे में पूर्ण जानकारी का हिन्दी में अनुवाद नहीं कर पाऊँगा, इसलिए अंग्रेज़ी में उसे यहाँ पढ़ें)

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पर्वतों में नव वर्ष - भाग २

On 05, Jan 2007 | No Comments | In Wanderer, घुमक्कड़ | By amit

पिछले भाग से आगे …..

सुबह सवेरे मोबाईल में अलार्म बजते ही निद्रा खुल गई, ऐसा लगा कि जैसे अभी कुछ मिनट पहले ही तो सोए थे(4 घंटे पहले सोए थे)। नींद खुलने के बाद ठण्ड लगने लगी थी, रात को चढ़ाई गर्मी का असर समाप्त हो गया था, उस की वजह से रात निकल गई थी यही बहुत था वर्ना बहुत बुरा हाल हो सकता था। बाहर आकर हमने सुहावनी सुबह के दर्शन किए, सूर्य पर्वतों के पीछे से उदय हो रहा था और राहत की बात यह थी कि हल्की हल्की धूप दिखाई दे रही थी, कोहरा आदि कुछ भी नहीं था। हम सभी उठ कर लड़कियों के कमरे की ओर चल पड़े और जाकर देखा कि अभी तो वे भी नहीं उठे थे। बहरहाल क्योंकि हम लोगों का जल्दी निकलने का कार्यक्रम था इसलिए सभी फ़टाफ़ट तैयार होने लगे, रिसॉर्ट का एक कर्मचारी थोड़ी थोड़ी देर में हमको गर्म पानी लाकर दे रहा था और एक-एक कर सभी तैयार होते जा रहे थे। शीघ्र ही तैयार हो हम अपने रास्ते निकल लिए, मन्ज़िल थी कुछ दूरी पर स्थित ताड़केश्वर महादेव मंदिर जो कि भारत के सबसे पुराने सिद्धपीठों में से एक है।

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पर्वतों में नव वर्ष - भाग १

On 04, Jan 2007 | 8 Comments | In Wanderer, घुमक्कड़ | By amit

चार महीने से ऊपर हो गए थे पिछली यात्रा को, तब से कहीं घूमने फ़िरने नहीं गया था। तो इसलिए मन मचल रहा था, पैरों में खुजली हो रही थी कि कहीं घूम-फ़िर आया जाए। मोन्टू ने कहा कि नए साल का स्वागत कहीं बाहर करेंगे तो ऐसा ही करने की सोची। परन्तु यह इतना आसान कहाँ था, लोगबाग़ महीनों पहले कार्यक्रम बना और बुकिंग आदि करा के बैठे होते हैं, इसलिए हमने किसी लोकप्रिय जगह जाने का तो ख्याल ही छोड़ दिया। कम लोकप्रिय जगहों पर यात्रीनिवासों और होटलों में पता किया गया, लेकिन हर जगह निराशा ही मिली, गढ़वाल मण्डल वालों ने तो हाथ खड़े कर दिए, बोले कि उनके किसी भी यात्रीनिवास में जगह उपलब्ध नहीं है। बड़ी मुश्किल से लान्सडौन के जंगल रिसॉर्ट रिट्रीट आनंद में जगह का जुगाड़ हो पाया। 🙂 हम पाँच लोगों का प्रोग्राम था जाने का लेकिन यात्रा की तिथि निकत आते आते हम आठ हो गए, दो-तीन को तो मना करना पड़ा क्योंकि रहने के लिए ज़्यादा जुगाड़ नहीं था इसलिए समस्या हो जाती।

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नया समय ..... नए चिट्ठाकार

कल रात लगभग 11 बजे मैं लान्सडौन में 3 दिन की छुट्टी के बाद वापस लौटा। आते ही सबसे पहले कंप्यूटर चला के ईमेल देखी, तीन दिन की अनुपस्थिति के चलते इन्बॉक्स में ईमेलें ठसा ठस भरी हुई थी, तो मैं कचरा ईमेलों को मिटाने और अन्य ईमेलों को पढ़ने बैठ गया, कई नए साल की शुभकामनाओं वाली ईमेलें थीं जिनके उत्तर दिए और कुछेक अन्य ईमेलें थीं।

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नया साल ..... नया सफ़र

कल(रविवार) सुबह मैं दो दिनों के लिए मित्रों सहित लान्सडौन घूमने जा रहा हूँ। अपनी नव वर्ष की पहली सुबह वहीं होगी। 😉 यात्रा का विवरण आने के बाद|

आप सभी को नव वर्ष 2007 की शुभकामनाएँ, नया साल आप सब के किए मंगलमयी हो। 🙂

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