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बादलों के उस पार - भाग ३

On 01, Sep 2006 | 14 Comments | In Wanderer, घुमक्कड़ | By amit

गतांक से आगे …..

चोपटा से निकल हम उखीमठ की राह पकड़ी और उसके बाद रास्ता पूछ सियालसौर की ओर बढ़ चले। रास्ते भर सुन्दर पहाड़ी नज़ारे देखते हुए चल रहे थे, ऐसा लग रहा था कि मानो जन्नत में घूम रहे हैं। पर अब जन्नत बहुत ज़्यादा हो गई थी। कुछ देर को तो मैं गृहासक्त महसूस करने लगा, पहाड़ी नज़ारे कुछ अधिक ही हो गए थे, यात्रा का हमारा तीसरा दिन था, अभी घर पहुँचने में कम से कम एक पूरा दिन और दो रातें बाकी थी। पिछले एक-दो महीनों में कुछ अधिक ही पहाड़ देखे थे, इतने अभी तक के अपने जीवन में कुल मिलाकर ना देखे थे। हमारा पहले तो ऋषिकेश में भी रूकने का विचार था परन्तु फिर सभी ने निर्णय लिया कि बस सियालसौर में ही एक दिन रूकेंगे और उसके सीधे दिल्ली।

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बादलों के उस पार - भाग २

On 25, Aug 2006 | 9 Comments | In Wanderer, घुमक्कड़ | By amit

गतांक से आगे …..

चोपटा की ओर जाते समय मार्ग में एक से बढ़कर एक नज़ारे देखने को मिले। सुबह का समय था, कहीं कहीं हल्की धूप पड़ रही थी और सुहावना मौसम था। मन ही नहीं कर रहा था कि कहीं जाएँ, बस एकटक बैठे प्रकृति की सुन्दरता को निहारते रहें।

आखिरकार हम चोपटा पहुँच ही गए। सुबह के लगभग साढ़े नौ बजे थे और आस पास ऊपर देखने पर केवल धुंध एवं कोहरे के बादल ही दिखाई दे रहे थे। सामने के ढाबे पर हमको पिछली रात मिले अंकल एवं उनका परिवार बैठा दिखाई दिया, तो उनसे बचने के लिए साथी लोग दूसरी दुकान पर चाय के लिए चले गए। चाय आदि के बाद सभी चलने के लिए तैयार थे। ऊपर ठण्ड का मुकाबला करने के लिए हमने चॉकलेट आदि ली, मैंने ऊपर चढ़ने में सहायता के लिए एक डंडी ली और हम लोग अपनी 4 किलोमीटर की पैदल चढ़ाई पर निकल चले।

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बादलों के उस पार - भाग १

On 23, Aug 2006 | 11 Comments | In Wanderer, घुमक्कड़ | By amit

नया सवेरा और एक और नई यात्रा पर जाने का पिरोगराम। 😉 इस बार मंज़िल थी पंच केदारों में तृतीय केदार तुन्गनाथ। दिल्ली से लगभग 495 किलोमीटर का सड़क का सफ़र कर पहुँचना था चोपटा और वहाँ से 4 किलोमीटर का पैदल सफ़र कर और लगभग 3000 फ़ीट की चढ़ाई कर पहुँचना था तुन्गनाथ। वैसे वहाँ घोड़े आदि भी चलते हैं लेकिन हम लोग तो पैदल ही चलने का पिरोगराम बनाए थे। ज़्यादा नहीं, इस बार हम केवल 4 लोग ही थे यात्रा पर।

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स्वर्ग में या स्वर्ग के निकट - भाग २

On 09, Aug 2006 | 5 Comments | In Wanderer, घुमक्कड़ | By amit

गतांक से आगे …..

अब फ़ूलों इत्यादि की तस्वीरें ले चुके तो सोचा कि थोड़ा आराम किया जाए, लगभग आठ घंटे गाड़ी में सफ़र किया था, हाल थोड़े ढीले ढाले ही थे। तो वापस ऊपर पहुँचे, अरे अपने कमरों में भई, उससे ऊपर जाने का अभी टैम नहीं आया!! 😉 तो ऊपर पहुँच देखा कि यार लोग सुस्ता रहे हैं, हम सोचे कि हम भी थोड़ा सुस्ता लें। पर सुस्ता नहीं पाए, निश्चय किया कि तुरत फ़ुरत नहा धो तैयार हो लिया जाए और फ़िर घूमने फ़िरने का पिरोगराम सैट किया जाए। लेकिन उससे पहले पेट-पूजा का प्रश्न था, तो यात्री निवास में ही नाश्ते का निश्चय किया गया। तो दो कुड़ियाँ खटिया तोड़ अंदाज़ में अपने कमरे में सुस्ता रही थी, संतोष नाश्ता करने के आदि नहीं, तो हम बाकी के पाँच जन नीचे डाईनिंग हॉल में आ गए और पूरी-छोले तथा ब्रेड ऑमलेट के मजे लिए। तभी हमारी वार्ता यात्री निवास के मैनेजर साहब से हुई, सरल से व्यक्ति लगे। हम लोगों से पूछा कि हमारा कहाँ जाने का कार्यक्रम है, तो हमने उनसे पूछा कि हमें कहाँ जाना चाहिए। उन्होंने कई जगह बताई, कलसी में उपस्थित इतिहास की धरोहर के बारे में भी बताया(अरे बताते हैं, सब्र रखो भई), और बताया कि हम चक्राता पहाड़ पर भी जा सकते हैं, लेकिन चूंकि उसका एक तरफ़ा रास्ता लगभग 40 किलोमीटर के करीब है, तो सांय काल तक ही लौटना होगा। गर्मी कुछ बढ़ सी गई थी, तो हमने सोचा की पहाड़ की सैर कर ली जाए, बाकी जगह समय होने पर देख लेंगे। मैनेजर साहब हमारे साथ चलने को तैयार थे। तो पेट पूजा के बाद नहाने आदि की सुध ली, इतने में बाकी की दोनों देवियों ने भी अपना काम निबटा लिया और सज धज सभी नीचे पहुँचे। पर वहाँ तो एक नया सीन खड़ा हो गया था, हमारे सरदारजी, अरे ड्राईवर साहब, नदारद थे। कहाँ गए किसी को पता नहीं। मैं और दीपक बाहर आस पास की दुकानों और “शेर-ए-पंजाब” ढाबे पर भी देख आए कि कहीं बैठे मुर्गे वगैरह तो नहीं पाड़ रिये, पर वो तो गधे के सिर से सींग और सरकार की देशभक्ति की तरह गायब थे। हम लोग यात्री निवास के द्वार पर खड़े टेन्शन ले ही रहे थे कि दीपक को एक कर्मचारी ने कहा कि पीछे मौजूद खाली हॉलों में देख लें, सो हम उधर ही लपक लिए। एक हॉल के द्वार के बाहर दो कुत्ते बैठे रखवाली कर रहे थे, उसके अन्दर एक बिस्तर पर ड्राईवर साहब मौज से सो रहे थे, हमने उन्हें हिला-डुला के जगाया और चलने के लिए कहा। फ़ौरन पगड़ी बाँध वो तैयार हुए और हम निकल पड़े।

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स्वर्ग में या स्वर्ग के निकट - भाग १

On 03, Aug 2006 | 11 Comments | In Wanderer, घुमक्कड़ | By amit

ना, यह कोई धार्मिक अथवा आध्यात्मिक प्रवचन नहीं है, यह तो एक और यात्रा का विवरण है। हाँ, लगता है कि जुलाई का महीना मेरे लिए यात्राओं का महीना ही था, एक ही माह में दो-दो यात्राएँ!! अभी जयपुर यात्रा और ब्लॉगर भेंटवार्ता की यादें ताज़ा ही थीं कि मैं निकल पड़ा एक और यात्रा पर।

इस बार रूख था कलसी की ओर, प्रसिद्ध पांवटा साहिब से थोड़ा आगे, देहरादून से लगभग 50 किलोमीटर पहले, हिमाचल और उत्तरांचल की सीमाओं पर बसा एक छोटा सा कस्बा, जहाँ रखी है इतिहास की एक धरोहर। कौन सी धरोहर? बताएँगे भई, समय आने पर सब बताएँगे, सब्र रखो। 🙂

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जयपुर ब्लॉगर भेंटवार्ता - भाग २

गतांक से आगे …..

तो हम गाईड लिए किराए की जीप में आगे बढ़ चले। पर थोड़ा रूकें, एक बात तो बताना भूल ही गए!! गाईड और जीप लेकर चलने से पहले नीरज भाई तथा प्रतीक बाबू ने टशन में आ एक एक बीयर की बोतल पकड़ फ़ोटो खिंचवाने की फ़रमाईश की, तो हमने उन्हें निराश नहीं किया, आप भी मत करें और यह फ़ोटो देखें। 😉

किन्गफ़िशर ज़िन्दाबाद

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जयपुर ब्लॉगर भेंटवार्ता - भाग १

सभी जानने के लिए बेताब हैं कि क्या हुआ जयपुर की उस तथाकथित ब्लॉगर भेंटवार्ता में, जिसे कि यदि अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी ब्लॉगर भेंटवार्ता कहा जाए तो भी अतिश्योक्ति न होगा। पर क्या बताऊँ यह समझ नहीं आ रहा? क्या यह बताऊँ कि कदाचित जो आसार नज़र आ रहे थे उसके अनुसार तो यह ब्लॉगर भेंटवार्ता होनी ही नहीं थी, और एक गाँठ सी पड़ने का भी अन्देशा था!! 5 जुलाई तक सब ठीक ठाक था लेकिन गड़बड़ तो ऐन मौके पर ही होती है ना। पहले पहल जगदीश जी का फ़ोन आया और वे बोले कि वे नहीं जा सकेंगे क्योंकि उनकी मौसी की मृत्यु हो जाने के कारण उनका मौसी के घर जाना आवश्यक है। उन्होंने बड़ा अफ़सोस व्यक्त किया कि वे भेंटवार्ता में नहीं जा पाएँगे, परन्तु आखिर ऐसी स्थिति पर किसी का ज़ोर नहीं चलता, इसलिए कुछ कहा भी नहीं जा सकता। फ़िर प्रतीक बाबू को फ़ुनवा लगाया यह पूछने के लिए कि भाई चल रहे हो कि नहीं। इन्होंने 4 दिन पहले देर रात फ़ोन (और मुझे नींद से जगा) कर कहा था कि ये भी चलना चाहते हैं और दिल्ली से साथ चलेंगे। अब इन्होंने कहा कि सांय कुछ आवश्यक कार्य है आगरा में इसलिए दिल्ली से नहीं चलेंगे, जयपुर सीधे ही पहुँचेंगे!! मुझे अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ, मुझे लगा कि लो एक और बन्दा मुकर गया, ऐसा सोचा कि अब ये महाशय भी आने वाले नहीं और हमें गोली दे रहे हैं। हमने सोचा चलो कोई नहीं, देख लेंगे सबको!! 😉 पर अभी बस कहाँ थी, सांय काल होते होते पता चला कि संजय जी भी नहीं आ रहे अहमदाबाद से, क्योंकि उनके पिताजी का बुलावा आ गया था सूरत से और उनको वहाँ हाज़िरी देनी थी। अब तो वाकई टेन्शन हो गई, मिश्रा जी और नीरज भाई से फ़ोन पर पूछ डाला कि वे लोग तो चल रहे हैं ना या उन्हें भी कोई समस्या है!! शुक्र था कि उन लोगों को कोई समस्या नहीं थी। जीतू भाई ने एक बार सुझाव दिया कि जब वे लोग ही नहीं आ रहे जिनके लिए जयपुर में भेंटवार्ता रखी गई थी तो फ़िर इतनी गर्मी में वहाँ जा कर क्या करेंगे, इसके बजाय कहीं और चला जाए जैसे ऋषिकेश अथवा मसूरी आदि। पर मैंने कहा कि नहीं, हम तो जयपुर ही जाएँगे चाहे कुछ भी हो जाए और फ़ुल मजे ले उनको अपने छायाचित्रों में उतार ना जाने वाले लोगों को चिढ़ाएँगे कि देखो आप लोगों ने क्या छोड़ दिया!! 😉

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पीओ ठंडा, दूर रखो डंडा .....

On 04, Jul 2006 | 12 Comments | In Blogger Meetups | By amit

तीर कमान वाले खेमे के छोटे तीर, यानि अपने पंकज बेंगानी, शनिवार को दिल्ली आए। क्या कहा? कौन तीर? कौन पंकज? अरे वही फ़ोटू-शाप सिखाने वाले मास्साब!! हाँ ईब पहचान लिया ना!! 😀 हाँ तो वो दिल्ली आए थे अपने भाँजे की बारात निकालने, मतबल यार उनकी धर्मपत्नी की बहन के लड़के के विवाह में शिरकत करने। अहमदाबाद से चलने से पहले याहू पर मिले थे पिछले रोज़, बोले भाग रिया हूँ!! तो मैं बोला कि भाग रिये हो तो याहू पर क्या कर रिये हो? मोबाईल वगैरह से गठबंधन किए हैं का!! तो उत्तर दिया कि बस अभी लौह पथ गामिनी पकड़ने के लिए निकल रिये हैं। क्या कहा? लौह पथ गामिनी? अरे ई हिन्दी का बिलाग है, तो अब टिरेन का हिन्दी मा यही तो बोला जाएगा ना!! हाँ तो खैर, अगले दिन(शनिवार को) हमका फ़ोनवा लगाए रहे कि ऊ पहुँच गए हैं, हमार दर्शन करना चाहत हैं। तो हम बोले कि भई अभी तो मुमकिन नाही है, कल वल मिलेंगे। पर फ़िर पुनर्विचार किए और सोचे कि चलो दर्शन दे देते हैं, तबियत से फ़िर मिल लेंगे। तो हम पहुँच गए मिलने, पहले ही कहे दिए थे कि 10 मिनट से अधिक समय नहीं दे पाएँगे। हम पहुँचे तो ऊ भौजाई(अपनी नहीं, हमार, यानि उनकी शरीकेहयात) को ले हमसे मिलने आ गए। तो हम पंकज भाई से हाथ ही मिलाए, और कुछ नहीं मिलाया। 😉 तभी पता चला, कि जिस भाँजे के विवाह में आए हैं, ऊ और कोई नहीं बल्कि हमार साथ क्रिकेट खेला मित्र है, बल्ले भई!! तो समय अधिक नहीं था अण्टी में, इसलिए फ़िर लम्बे दर्शन का वर दे हम पतली गली से कट लिए।

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क्यों ना भागें पैसे के पीछे!!

जब कोई व्यक्ति यह कह किसी पर तंज कसता है कि फ़लाना बन्दा पैसों के पीछे भाग रहा है तो मुझे उस व्यक्ति की सोच और बोल पर तरस भी आता है और गुस्सा भी आता है। अरे भई, पैसों के पीछे कौन नहीं भाग रहा? क्या पैसों के बिना गुजर बसर संभव है? हर कोई यह चाहता है कि वह अच्छे मकान में रहे, अच्छा खाए, अच्छा पहने, बढ़िया जगहों पर घूमने फ़िरने जाए, थोड़ा अपने आने वाले कल के लिए बचा के रखे, अपने बच्चों को अच्छी परवरिश दे, अपने माता पिता के बुढ़ापे को सुखमयी बनाए। तो क्या यह सोचना और इस सोच को साकार करना बुरा है? और कोई क्यों ना पैसे कमाए? किसी दूसरे के पैसे कमाने से लोगों को क्यों चिढ़ होती है? क्या उन्हें पैसे कमाना बुरा लगता है? क्या वे फ़ोकट में नौकरी आदि करते हैं? अरे यदि आपको पैसे कमाना अच्छा लगता है तो क्यों नहीं आप समय का सदुपयोग कर अपना समय पैसे कमाने में लगाते बजाय दूसरे व्यक्ति से कुढ़ने और उसपर तंज कसने के?

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ए वीकेन्ड इन ॠषिकेश - भाग २

On 26, May 2006 | 13 Comments | In Wanderer, घुमक्कड़ | By amit

गतांक से आगे …..

सांय 5 बजे के करीब मेरे मोबाईल का अलार्म बज उठा और मैंने उठ के देखा कि मैं लगभग पाँच घंटे सोया हूँ, इसलिए काफ़ी हद तक तरोताज़ा महसूस कर रहा था। बाकि लोग पहले ही उठ गए थे। तत्पश्चात नीचे गंगा स्नान के लिए जाने का निर्णय हुआ। अब डुबकी लगाने के लिए मैं तैराकी के वस्त्र आदि तो लाया न था, इसलिए जो कपड़े रात को पहने सफ़र किया था, वो ही पहन लिए। जो लोअर पहन रखा था, घुटनों से उसकी ज़िप खोल दो तो वह बरमुडा बन जाता था, ठीक आशीष भाई की पैन्ट की तरह!! 😉 तो बस टखने से निचले हिस्से को अलग किया और चल दिए नीचे गंगा स्नान के लिए।

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