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शेर, जादूगरनी और अलमारी!!

On 25, Jan 2006 | 5 Comments | In Movies, फ़िल्में | By amit

नहीं, न ही मैं पागल हो गया हूँ न ही मैं कोई कहानी नहीं लिख रहा हूँ, अलबत्ता कहानी के बारे में बता अवश्य रहा हूँ!! और कहानी वो जोकि अब फ़िल्म बनकर आ रही है(वैसे तो पिछले दिसम्बर में ही आ चुकी है परन्तु यहाँ भारत में 26 जनवरी को सिनेमा में लग रही है)। मैं बात कर रहा हूँ वाल्ट डिज़नी द्वारा प्रस्तुत, सी.एस.लुईस के लिखे उपन्यास पर बनी फ़िल्म “द क्रानिकल्स आफ़ नारनिया – द लायन, द विच एण्ड द वार्डरोब” की, जो कि एक फ़ैन्टसी फ़िल्म है!!

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एक और दिल्ली ब्लॉगर भेंटवार्ता?

लगता है कि साकेत की तरह मेरे भी इस महीने मज़े आ रहे हैं, मैं भी इस मास दो ब्लॉगर भेंटवार्ताओं में भाग ले सकूँगा(साकेत जिन दो में भाग लेने वाले थे, वह अब एक हो गईं हैं)। इस रविवार, 29 जनवरी 2006, को संध्याकाल कनॉट प्लेस में एक बार पुनः दिल्ली के कुछ ब्लॉगर बंधुओं का जमावड़ा होगा, और ट्वाईलाईट फ़ेयरी द्वारा मुझे वहाँ आने का निमन्त्रण भी मिला है।

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मैजिक आई??

प्रस्तुत है मेरा नवीनतम ब्लॉग, magic-I, भोजन आँख और कान के लिए(दिमाग को कष्ट न दें, उसे थोड़ा आराम करने दें), जो कि एक देसी स्टाईल आडियो वीडियो ब्लॉग है। सुनें देखें और आनंद उठाएँ!! 🙂

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वीडियो ब्लॉगिंग .....

जब से मैंने डिजिटल कैमरा लिया है, मैं उसे प्रयोग करने का अवसर तलाशता रहता हूँ!! और ऐसा हो भी क्यों न, आख़िरकार आधे महीने के वेतन से भी ज्यादा का यह कैमरा आख़िरकार मुझे पड़ा, बुरा हो आलसी-निठल्ले कस्टम अधिकारियों का!!

बहरहाल, आजकल वीडियो ब्लॉगिंग का चलन निकल पड़ा है। इससे पहले आए आडियो ब्लॉग जहाँ ब्लॉगर कुछ लिखने के बजाय एक आडियो फ़ाईल अपने ब्लॉग पर डाल देता था जिसे कि लोग सुन सकें, तो ब्लॉगर के विचार पढ़ने के बजाय दर्शक उन्हे सुन सकते थे। परन्तु यदि ब्लॉगर चाहे तो कुछ लिख भी सकता था, न लिखने का कोई नियम नहीं है!! ठीक ऐसी ही प्रणाली वीडियो ब्लॉगिंग की है, फ़र्क सिर्फ़ इतना है कि आडियो की जगह ले लेता है वीडियो।

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डिजिटल टेक्नॉलोजी से लैस, अत्याधुनिक जेलखाना

नीडरलैंड में इस सप्ताह एक नया जेलखाना खुल रहा है जिससे टेक्नॉलोजी की महक आती है। यदि आप अंग्रेज़ी पढ़ सकते हैं, तो इसके बारे में पढ़िए डिजिट ब्लॉग पर!! क्षमा करें परन्तु मेरे पास हिन्दी अनुवाद का समय नहीं है। 🙂

इस अत्याधुनिक जेल के पीछे सोच तो अच्छी है, पर जो प्रणाली/प्रबन्ध जेल में अभी हैं, क्या वे पर्याप्त हैं? मेरे अनुसार तो नहीं हैं, पर यह एक शुरुआत है, एक नया चलन है और मैं पूर्ण विश्वास के साथ कह सकता हूँ कि यह प्रयोग बहुत आगे तक जाएगा!! 🙂

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कलयुग .....

कलयुग ….. टू हैल एण्ड बैक(अर्थात नर्क से वापसी)

फ़िल्म का शीर्षक तो ज़ोरदार लगा, इसलिए किसी स्टार भूमिका के न होने के बाद भी देख ही ली। है तो लाक्षणिक बॉलीवुड फ़िल्म लेकिन फ़िर भी कथा थोड़ी हट कर लगी। जिन लोगों ने यह नहीं देखी तो उन्हे बता दूँ कि कथा कुछ इस प्रकार है कि हीरो कुनाल खेमू अपनी नई नवेली दुलहन के साथ मधुचंद्र के लिए एक होटल में जाता है जहाँ आशुतोष राणा के कहने पर स्वागत कर्मचारी उन्हे हनीमून सुईट दे देता है जिसमे कैमरे छुपा रखें होते हैं और उनकी सुहागरात की पूरी फ़िल्म उतार ली जाती है। आशुतोष राणा एक दलाल की भूमिका में हैं जोकि एक विदेश में स्थापित देसी अश्लील वेबसाईट के लिए सुहागरात मनाने आए जोड़ों की चुपके से फ़िल्म उतार कर बेचता है। फ़िर वही लोग हीरो और उसकी पत्नी को पुलिस के हाथों पकड़वा देते हैं ताकि उन्हें मुफ़्त की लोकप्रियता मिल सके। अपने हीरो की बीवी आत्महत्या कर लेती है, पर हीरो जेल से जमानत पर छूट जाता है और विदेश में उन लोगों का सर्वनाश करने पहुँच जाता है जिन्होंने उसके जीवन को नर्क बना दिया। जैसा कि अपेक्षित होता है, वो सबकी छुट्टी कर देता है। 😉

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इंडिब्लॉगीज़ 2005, परिणाम घोषित!!

कुछ आशंकाओं, उलझनों और एक पुर्नमतदान के बाद आखिरकार इंडिब्लॉगीज़ 2005 के परिणाम देबाशीश ने घोषित कर ही दिए, और जैसी कि उम्मीद थी, अमित वर्मा सर्वश्रेष्ठ भारतीय ब्लॉग की बाज़ी मार ले गए!! 😉 पाकिस्तान में मज़े कर रहे अमित ने अवश्य बटर चिकन और तंदूरी बकरे के साथ इस जीत को मनाया होगा!! 😀 यह विचारणीय तथ्य है कि एक वर्ष पूर्व 2004 में अमित ने इसी ब्लॉग के लिए सर्वश्रेष्ठ नए भारतीय ब्लॉग का पुरस्कार जीता था(इंडिब्लॉगीज़ 2004)।

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प्रवासी या परमेश्वर?

हैदराबाद में चल रहे चौथे प्रवासी भारतीय दिवस का समापन निकट है, और पधारे हुए प्रवासी भारतीयों का असंतोष साफ़ तौर पर देखा जा सकता है!! और ऐसा हो भी क्यों न, आखिर ये प्रवासी भारतीय हज़ारों डॉलर ख़र्च करके यहाँ हमारे ख़ड़ूस नेताओं का भाषण सुनने तो नहीं आए हैं!! न ही वे यहाँ कोई नाच-गाने के कार्यक्रम देखने आए हैं। जैसा कि एक असंतुष्ट वसुधा सोंधी, एच.आर.एच. होटल समूह की उपाध्यक्ष का कहना है

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ये दिल माँगे मोर!!

अभी तक जीवन की (छोटी)यात्रा के मेरे जो अनुभव रहे हैं, उनका निचोड़ यह कहता है कि यदि आज के समय में भगवा वस्त्र पहने किसी व्यक्ति को खुद को साधु, संत या सन्यासी बताते हुए देख लो तो उस पर कतई विश्वास न करो क्यों कि आजकल तो भिख़ारी और ढ़ोंगी भी भगवा वस्त्र पहनते हैं। साथ ही मेरे अनुभवानुसार, आयुर्वेदिक चिकित्सा महज एक बकवास है क्यों कि जितने भी आयुर्वेद से चिकित्सा करने वाले हैं, उनमें से निन्यानवें प्रतिशत तो ढ़ोंगी और ठग हैं, और बाकी एक प्रतिशत आपको मिलेंगे नहीं!! मैंने बहुत से आयुर्वेद से चिकित्सा करने वालों के बारे में सुना, बहुत से लोग मिले जो कि शपथ उठा के कहते थे कि उन्हे लाभ हुआ है, पर अंत में जाके यही निकलता था कि वे सब ठग-बदमाश होते थे। इसलिए मेरा इस चिकित्सा पद्धति से विश्वास उठ गया है, और ऐसा ही होम्योपैथिक चिकित्सा पद्धति के साथ भी है। मैं तो केवल यह जानता व मानता हूँ कि एलॉपथी से चिकित्सा कराओ और झट-पट आराम पाओ!! 😉

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हल्ला बोल!!

तो फ़िर एक नया विवाद खड़ा हो गया है, लगता है कि हमारे यहाँ के राजनीतिक दलों को फ़ालतू के नए-नए विवाद खड़े करने के सिवाय कोई और काम नहीं है, वे बेकार के विवाद खड़े करते रहते हैं ताकि लोग वहीं उलझे रहें और आवश्यक मुद्दों(जैसे कि सरकार कैसे देश का बेड़ागर्क करने में लगी हुई है) की ओर ध्यान दे ही न पाएँ। 🙄

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